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पंचायती चुनावों की प्रक्रिया में एक बड़ा और निर्णायक मोड़ उस समय आया जब उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए पंचायत मतदाता सूची को लेकर राज्य सरकार द्वारा जारी सर्कुलर पर रोक लगा दी। इस निर्णय ने चुनावी रणनीतियों पर गहरा प्रभाव डाला है, खासकर उन प्रत्याशियों पर जिनकी योजना बाहरी मतदाताओं पर आधारित थी।

 

अब तक की प्रथा यह थी कि कई उम्मीदवार ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी मतदाताओं को बुलाकर पंचायत चुनावों में मतदान करवाते थे। ये वे मतदाता होते थे जिनका संबंध गांव से होता था लेकिन उनका नाम नगर निकाय यानी शहरी क्षेत्र की मतदाता सूची में पंजीकृत होता था। प्रत्याशी इन्हें गांव बुलाकर पंचायत चुनाव के दिन मतदान करवाते थे, जो कि अब संभव नहीं रह गया है।

 

कोर्ट का स्पष्ट रुख: दोहरी सूची से बचाव अनिवार्य

 

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि किसी मतदाता का नाम पहले से ही नगर निकाय यानी शहरी मतदाता सूची में दर्ज है, तो उसे पंचायत की मतदाता सूची में शामिल नहीं किया जा सकता। यह कदम मतदाता सूची में दोहराव और अनियमितता को रोकने के उद्देश्य से उठाया गया है।

 

हाईकोर्ट ने पंचायती राज अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि एक ही व्यक्ति का नाम दो अलग-अलग मतदाता सूचियों में नहीं होना चाहिए। इससे चुनाव की निष्पक्षता बनी रहती है और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर जनता का विश्वास मजबूत होता है।

 

इस फैसले के बाद वह सर्कुलर भी अमान्य हो गया है जिसमें नगर निकाय सूची में नाम होने के बावजूद पंचायत की सूची में नाम जोड़ने की अनुमति दी गई थी।

 

चुनावी रणनीतियों में हड़कंप

 

हाईकोर्ट के इस आदेश ने प्रत्याशियों की चुनावी तैयारियों में भारी बदलाव ला दिया है। जो प्रत्याशी बाहरी या शहरी मतदाताओं को गांव बुलाकर अपने पक्ष में वोट डलवाने की योजना बना रहे थे, उन्हें अब केवल गांव में ही सक्रिय और पंजीकृत मतदाताओं पर ध्यान देना होगा।

 

इस बदलाव से ग्रामीण क्षेत्रों में चुनावी समीकरण तेजी से बदलते नजर आ रहे हैं। कई उम्मीदवारों को अब अपनी रणनीतियों पर फिर से विचार करना पड़ रहा है। मतदाता सूची में बाहरी नाम हटने से कई प्रत्याशियों के संभावित वोट बैंक में गिरावट आई है।

 

पुरानी प्रथा पर रोक: अब सिर्फ “स्थानीय” ही निर्णायक

 

वर्षों से यह देखने को मिलता रहा है कि पंचायत चुनावों के दौरान प्रत्याशी गांव से बाहर रह रहे लोगों, विशेषकर शहरों में बसे लोगों को गांव बुलाकर उनसे वोट डलवाते रहे हैं। कई बार ये मतदाता वर्षों से गांव में नहीं रहते, लेकिन वोट डालने के लिए बुलाए जाते हैं, जिससे स्थानीय मुद्दों से अनभिज्ञ लोग भी पंचायत गठन में भूमिका निभाते रहे हैं।

 

अब इस पर प्रभावी रोक लग गई है। यानी गांव का प्रतिनिधि अब वास्तव में गांव के निवासियों द्वारा ही चुना जाएगा, न कि बाहर रह रहे किसी प्रभावशाली व्यक्ति के प्रभाव से।

 

लोकतंत्र में पारदर्शिता की ओर एक कदम

 

इस आदेश को पंचायत चुनावों को अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने की दिशा में एक सकारात्मक पहल माना जा रहा है। लोकतंत्र की बुनियाद तभी मजबूत होती है जब चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता हो।

 

अब प्रत्याशियों को केवल उन मतदाताओं पर भरोसा करना होगा जो गांव में रहते हैं, स्थानीय समस्याओं को जानते हैं और पंचायत प्रतिनिधि से अपेक्षाएं रखते हैं।

 

प्रत्याशियों के लिए नई चुनौती

 

इस फैसले के बाद प्रत्याशियों के सामने नई चुनौती खड़ी हो गई है। उन्हें अब नए सिरे से अपनी चुनावी गणना करनी होगी। पुराने फॉर्मूलों और गठजोड़ों की जगह अब स्थानीय जुड़ाव, सेवा भाव और वास्तविक कार्यक्षमता ही निर्णायक साबित होंगी।

 

मतदाताओं के बीच खुद को साबित करना अब पहले से अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। जो प्रत्याशी वास्तव में गांव के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं, उन्हें इसका फायदा मिलेगा। वहीं जो लोग केवल बाहरी प्रभाव के भरोसे जीतना चाहते थे, उनके लिए यह फैसला झटका साबित हुआ है।

 

राजनीतिक हलकों में मिलेजुले संकेत

 

इस आदेश को लेकर राजनीतिक हलकों में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कुछ लोग इसे स्वागत योग्य बता रहे हैं, जबकि कुछ इसे ग्रामीण-शहरी संबंधों में बाधा मान रहे हैं। लेकिन अधिकांश जानकार इस निर्णय को लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के रूप में देख रहे हैं।

 

इस निर्णय से पंचायत चुनावों की दिशा और दशा बदल सकती है। अब गांव के मतदाता ही गांव के नेतृत्व का फैसला करेंगे, जिससे स्थानीय शासन व्यवस्था में जनभागीदारी और जवाबदेही दोनों मजबूत होंगी।

 

 

 

निष्कर्ष:

हाईकोर्ट का यह फैसला पंचायत चुनावों में एक नए युग की शुरुआत की ओर संकेत करता है। यह न केवल चुनावी पारदर्शिता को बढ़ावा देगा, बल्कि राजनीतिक जवाबदेही भी सुनिश्चित करेगा। प्रत्याशियों को अब अपने गांव के लोगों के बीच रहकर काम करना होगा, जि

ससे पंचायत का असली स्वरूप मजबूत होकर उभरेगा।

 

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