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उत्तरकाशी के धराली गांव में आपदा का खतरा अब भी टला नहीं है। श्रीकंठ पर्वत पर भूस्खलन के बाद हजारों टन मलबा और बड़े-बड़े पत्थर जमा हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारी बारिश हुई तो ये खीरगंगा नदी के जरिए नीचे आकर बड़ी तबाही मचा सकते हैं। खीरगंगा की बाढ़ से पहले ही प्रभावित धराली पर एक और संकट मंडरा रहा है।

 

सरकार ने हालात का आकलन करने के लिए एनडीआरएफ और एमआरटी की संयुक्त टीम को पर्वत का सर्वे करने भेजा था। टीम ने अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि दो विशाल बोल्डर और भारी मात्रा में मलबा अब भी ऊपरी हिस्से में फंसा हुआ है, जो किसी भी समय खिसक सकता है। धराली की पिछली तबाही का कारण बादल फटना नहीं, बल्कि एवलांच था। पर्यावरणविद् डॉ. रवि चोपड़ा ने कहा कि ग्लोबल वॉर्मिंग से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे एवलांच का खतरा बढ़ा है। उनके अनुसार यदि सरकार ने वैज्ञानिक सुझावों पर ध्यान दिया होता, तो इतना बड़ा नुकसान टल सकता था।

 

टीम ने पाया कि धराली से लगभग 10.7 किलोमीटर दूर झंडा बुग्याल के पास खीरगंगा में दोनों ओर हुए भूस्खलन से दो बड़े बोल्डर अटके हुए हैं। ये ढीले हो चुके हैं और तेज बारिश में नीचे खिसकने का खतरा है। साथ ही, यहां 15 मीटर ऊंचा मलबे का ढेर भी जमा है, जो भविष्य में खीरगंगा की बाढ़ को और खतरनाक बना सकता

है।

 

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