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Dehradun uttrakhand :उत्तराखंड की राजनीति में दो पुराने नेताओं के बीच जुबानी जंग एक बार फिर सुर्खियों में है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बीच लंबे समय से चली आ रही तनातनी अब सोशल मीडिया पर खुलकर सामने आ रही है। एक बार फिर दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर तीखे आरोप लगाए हैं और 2016 में हुई राजनीतिक उठापटक को लेकर पुरानी यादों को ताजा कर दिया है।

 

विवाद की शुरुआत हरक सिंह रावत के एक वायरल बयान से हुई, जिसमें उन्होंने 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के लिए हरीश रावत को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि अगर हरीश रावत चुनाव नहीं लड़ते, तो कांग्रेस की स्थिति बेहतर हो सकती थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि हरीश रावत ने सिर्फ लालकुआं और हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा में प्रचार किया, बाकी जगहों पर नहीं गए। हरक सिंह ने कहा कि उन्होंने खुद हरीश रावत को फोन कर कहा था कि “मेरे-तेरे के चक्कर में मत पड़ो, जो जीतने लायक है, उसे टिकट दो।”

 

हरक सिंह ने यह भी कहा कि राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। उन्होंने तीखे शब्दों में कहा, “परिवार के लोग ही अपने नहीं होते, राजनीति में तो मेरा-तेरा दूर की बात है। यहां एक ही फंडा चलता है — जो जीता वही सिकंदर।” उन्होंने कांग्रेस में अपनी वापसी को भी 2022 का निर्णय बताया, यह कहते हुए कि वह अपनी मर्जी से नहीं, बल्कि परिस्थितियों की वजह से लौटे थे। साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि 2016 की घटना उन लोगों के लिए एक आईना थी, जो सत्ता के नशे में चूर थे।

 

इस बयान पर हरीश रावत ने भी करारा जवाब दिया। उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने कोशिश न की होती, तो हरक सिंह कांग्रेस में दोबारा शामिल नहीं हो पाते। रावत ने यह भी कहा कि उन्होंने हरक सिंह के आग्रह का सम्मान किया और उन्हें पार्टी में वापस लाने में भूमिका निभाई। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि हरक सिंह को पहले खुद को साबित करना चाहिए और कम से कम एक सीट जिताकर दिखानी चाहिए, तभी 2016 की कटुता दूर हो सकती है।

 

हरीश रावत ने हरक सिंह को याद दिलाया कि 2016 में जो कुछ हुआ, वह सिर्फ एक राजनीतिक साजिश नहीं थी, बल्कि उत्तराखंडियत और लोकतंत्र की हत्या थी। उन्होंने कहा कि उस घटना के घाव आज भी उनके दिल में हैं और उसी कारण आज भाजपा सत्ता में है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि उनकी “न्याय यात्रा” भाजपा के “झूठ, लूट और अन्याय” के खिलाफ है, और यह यात्रा उस पीड़ा से निकली है जो 2016 में हुई घटनाओं के बाद आज तक कायम है।

 

इस पूरे घटनाक्रम के बीच दोनों नेताओं की तल्खी ने एक बार फिर उत्तराखंड कांग्रेस में अंतर्विरोधों को उजागर कर दिया है। एक तरफ जहां पार्टी हाईकमान राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में संगठन को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहा है, वहीं दूसरी ओर वरिष्ठ नेताओं के बीच टकराव पार्टी की छवि को नुकसान पहुँचा सकता है। हालांकि, दिल्ली में हुई कांग्रेस की हालिया बैठक में दोनों नेता एक साथ नजर आए, लेकिन उनके बयानों से यह साफ है कि अंदरूनी मतभेद अभी भी गहराए हुए हैं।

 

विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में जब दो कद्दावर नेता सार्वजनिक मंच पर एक-दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप करते हैं, तो उसका सीधा असर पार्टी की जमीनी पकड़ और कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ता है। हरक सिंह रावत और हरीश रावत दोनों ही प्रदेश राजनीति के अनुभवी चेहरे हैं, लेकिन उनके बीच यह कटुता अगर नहीं सुलझी तो आगामी चुनावों में कांग्रेस को बड़ा नुकसान हो सकता है।

 

कुल मिलाकर, यह विवाद केवल दो नेताओं के बीच व्यक्तिगत कटुता का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड की राजनीतिक दिशा और कांग्रेस पार्टी के भीतर तालमेल की कमी को भी दर्शाता है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी नेतृत्व इस विवाद को कैसे सुलझाता है और क्या दोनों नेताओं के बीच सुलह की कोई गुं

जाइश बची है।

 

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