उत्तराखंड का उत्तरकाशी जिला एक बार फिर भूकंप के झटकों से दहल उठा। मंगलवार दोपहर करीब 1:07 बजे जिले के कई हिस्सों में धरती कांप उठी। भूकंप हल्का था, लेकिन इसके बावजूद लोगों में दहशत फैल गई। लोग अपने घरों, दुकानों और कार्यालयों से अचानक बाहर की ओर दौड़ पड़े। हालांकि, राहत की बात यह रही कि इस भूकंप से अब तक किसी तरह की जनहानि या संपत्ति के नुकसान की कोई सूचना नहीं मिली है।
आपदा कंट्रोल रूम से प्राप्त जानकारी के अनुसार, भूकंप का केंद्र उत्तरकाशी जिले के मोरी ब्लॉक क्षेत्र में स्थित जखोल के जंगलों में था। रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 3.2 मापी गई। भूकंप के झटके कुछ ही सेकंड तक महसूस किए गए, लेकिन इनका प्रभाव इतना था कि लोग घबराकर तुरंत घरों से बाहर निकल आए। कई इलाकों में लोगों ने सोशल मीडिया पर भी अपनी चिंताओं को साझा किया और जानकारी दी कि उन्होंने कंपन को महसूस किया।
भूकंप की पुष्टि होते ही स्थानीय प्रशासन ने सतर्कता बरतते हुए पुलिस वायरलेस और तहसील कंट्रोल रूम के जरिए पूरे जिले में अलर्ट जारी कर दिया। जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी शार्दुल गुसाईं ने संबंधित सभी विभागों को किसी भी संभावित आपात स्थिति के लिए तैयार रहने के निर्देश दिए हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि लगातार भूकंपीय गतिविधियों को देखते हुए आपदा विभाग पूरी तरह से अलर्ट मोड पर है।
क्यों संवेदनशील है उत्तरकाशी?
उत्तरकाशी जिला भूगर्भीय दृष्टिकोण से उत्तराखंड के अति संवेदनशील क्षेत्रों में गिना जाता है। हिमालयी क्षेत्र में स्थित होने के कारण यह ज़ोन-5 में आता है, जिसे भूकंप के लिहाज से सबसे अधिक संवेदनशील जोन माना जाता है। यही कारण है कि उत्तरकाशी में समय-समय पर छोटे या मध्यम स्तर के भूकंप आते रहते हैं।
1991 का वो भयानक हादसा आज भी लोगों के ज़हन में ताज़ा है। उस साल 20 अक्टूबर को रात के समय आए भूकंप ने पूरे उत्तरकाशी जिले को हिला कर रख दिया था। उस भूकंप की तीव्रता 6.6 थी और उसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी। हजारों मकान मलबे में तब्दील हो गए थे और लंबे समय तक जनजीवन अस्त-व्यस्त रहा था। उस हादसे ने उत्तरकाशी को भूकंप के खतरे की गंभीरता का अहसास करा दिया था।
इस साल जनवरी से अब तक 9 झटके
2025 की शुरुआत से ही उत्तरकाशी में भूकंपीय गतिविधियां तेज़ बनी हुई हैं। आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष जनवरी महीने में ही जिले में 9 बार भूकंप के झटके दर्ज किए गए। हालांकि अधिकतर की तीव्रता कम थी, लेकिन इनकी निरंतरता चिंता का विषय बनती जा रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालय क्षेत्र में टेक्टोनिक प्लेट्स की हलचल अक्सर सतह के नीचे ऊर्जा इकट्ठा करती रहती है, जो समय-समय पर भूकंप के रूप में बाहर निकलती है। यह गतिविधि भविष्य में बड़े भूकंप का संकेत भी हो सकती है, इसलिए सतर्कता और जागरूकता बेहद जरूरी है।
सतर्कता ही बचाव
आपदा प्रबंधन विभाग ने आम जनता से अपील की है कि वे भूकंप की स्थिति में घबराने के बजाय सतर्कता बरतें और निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन करें। जिला प्रशासन की ओर से स्कूलों, सरकारी दफ्तरों और सार्वजनिक स्थलों पर नियमित तौर पर भूकंप से बचाव के मॉक ड्रिल आयोजित किए जा रहे हैं ताकि लोग आपदा की स्थिति में सही प्रतिक्रिया दे सकें।
सरकार ने भी भूकंप-संवेदनशील इलाकों में निर्माण कार्य के लिए विशेष दिशा-निर्देश जारी किए हैं। भवन निर्माण के समय भूकंप-रोधी तकनीकों का इस्तेमाल अनिवार्य किया गया है ताकि भविष्य में बड़े हादसों से बचा जा सके।
निष्कर्ष
हालांकि मंगलवार को आए भूकंप की तीव्रता कम थी और इससे कोई नुकसान नहीं हुआ, लेकिन यह एक चेतावनी की तरह जरूर है। उत्तरकाशी जैसे अति संवेदनशील क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को हर वक्त सतर्क रहने की ज़रूरत है। प्रशासन और आपदा प्रबंधन एजेंसियां जहां अपनी भूमिका निभा रही हैं, वहीं आम लोगों को भी जागरूक और सजग रहना होगा।
भविष्य में किस समय कितनी तीव्रता का भूकंप आएगा, यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता, लेकिन सतर्कता और तैयारी ही किसी भी प्राकृतिक आपदा से होने वा
ले नुकसान को कम कर सकती है।