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उत्तराखंड में टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से, भारतीय मृदा और जल संरक्षण संस्थान (आईसीएआर) ने प्रदेश के किसानों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले गेहूं के आधार बीजों का वितरण किया है। इन उन्नत बीजों के माध्यम से किसानों को अधिक पैदावार प्राप्त करने में मदद मिलेगी, जो कि सिंचित और वर्षा आधारित दोनों प्रकार की खेती के लिए अनुकूल हैं। इस पहल के तहत, मैदानी क्षेत्रों में 35-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और अनुकूल परिस्थितियों में 60-70 क्विंटल तक की उपज प्राप्त की जा सकती है।

आईसीएआर की ‘फार्मर्स फर्स्ट’ परियोजना के तहत, रायपुर ब्लॉक में आयोजित इस कार्यक्रम में प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. बांके बिहारी ने किसानों को गेहूं की नई किस्मों के लाभों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि इन किस्मों की आनुवंशिक क्षमता और क्षेत्रीय अनुकूलता से किसानों को उनकी परंपरागत उपज से कई गुना अधिक उत्पादन प्राप्त हो सकता है।

 

उन्नत बीजों से टिकाऊ कृषि का विकास

कार्यक्रम में बीज वितरण के दौरान, किसानों को टिकाऊ कृषि के महत्व और गुणवत्ता वाले बीजों की आवश्यकता पर जोर दिया गया। किसानों को वितरित बीजों का उपयोग उनके खेतों को एक प्रकार के उत्पादन केंद्र और प्रयोगशाला के रूप में किया जा रहा है, ताकि समुदाय को इसका लाभ मिल सके। किसानों से आग्रह किया गया है कि वे समय पर बुवाई करें ताकि अधिकतम उत्पादन प्राप्त कर सकें।

 

बीज वितरण और बाय-बैक व्यवस्था

उत्तराखंड सीड्स एंड तराई डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड के साथ समझौता ज्ञापन के तहत बीजों का वितरण किया गया। इस प्रक्रिया में प्रत्येक किसान को 20-40 किलोग्राम बीज दिए गए, और 21 क्विंटल बीज 90 किसानों के बीच वितरित किए गए। इस माडल के तहत किसानों को बाजार दर पर प्राप्त बीजों की दोगुनी मात्रा वापस करनी होगी। वापसी में प्राप्त बीजों को यूकेएस और टीडीसी से प्रमाणित बीज के रूप में संसाधित किया जाएगा, जबकि शेष बीजों का उपयोग किसान अपनी आवश्यकता अनुसार कर सकते हैं।

 

नई किस्मों का विस्तार और सिंचाई में कमी

इस परियोजना में किसानों को पहली बार पेश की गई गेहूं की नई किस्मों से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की बेहतर उपज प्राप्त होने की संभावना है। इन किस्मों में विस्तारित बुवाई अवधि (15 से 25 नवंबर) भी शामिल है, जिससे सिंचाई की आवश्यकता कम होगी और जल संसाधनों पर दबाव कम पड़ेगा। विशेषकर पीबीडब्ल्यू 343 (सिंचित क्षेत्रों के लिए) और वीएल 967 (वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए) बीज वितरित किए गए हैं।

 

किसानों के पिछले अनुभव और उन्नत किस्मों की सफलता

पिछले तीन वर्षों में इसी परियोजना के तहत डीबीडब्ल्यू 222, डीबीडब्ल्यू 303, डीबीडब्ल्यू 187, और वीएल 953 जैसी उन्नत किस्में भी वितरित की गई थीं, जिन्हें किसानों ने बहुत सराहा और इनसे उन्हें उत्कृष्ट उपज प्राप्त हुई। किसानों ने बताया कि इन बीजों को पुन: उपयोग करके वे अपनी फसलों की उत्पादकता में सुधार कर रहे हैं और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा दे रहे हैं।

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