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नैनीताल*: उत्तराखंड लोक सेवा आयोग (UKPSC) द्वारा सहायक प्रोफेसर (रसायन विज्ञान) के पद के लिए आयोजित परीक्षा में अनारक्षित/सामान्य श्रेणी की सीट पर आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थी के चयन को नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए आयोग और चयनित अभ्यर्थियों को नोटिस जारी किया है। सभी पक्षों को चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए गए हैं।

याचिका का आधार

याचिकाकर्ता कुलदीप चौहान, जो कि बरेली निवासी हैं, ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि आरक्षित श्रेणी (एससी और ओबीसी) के अभ्यर्थियों को अनारक्षित/सामान्य श्रेणी में चयनित किया गया है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि जिन अभ्यर्थियों ने प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षित श्रेणी के तहत कम कट-ऑफ अंक का लाभ उठाया है, उन्हें अनारक्षित श्रेणी में चयनित नहीं किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया उत्तराखंड लोक सेवा आयोग परीक्षा तैयारी प्रक्रिया विनियम, 2012 और 2022 के नियमों का उल्लंघन करती है, जिसमें कहा गया है कि यदि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार किसी प्रकार की छूट का लाभ उठाते हैं, तो उन्हें अनारक्षित श्रेणी में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।

आरक्षण के ‘ओवरलैपिंग’ पर सवाल

याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि इस तरह की चयन प्रक्रिया से आरक्षण का ‘ओवरलैपिंग’ होगा, जिससे सार्वजनिक पदों पर अत्यधिक आरक्षण हो सकता है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि सामान्य श्रेणी में तीन पदों में से एक महिला, एक ओबीसी और एक एससी अभ्यर्थी का चयन किया गया है, जो कि गलत है।

कट-ऑफ अंकों पर विवाद

याचिकाकर्ता ने बताया कि उनके प्रारंभिक परीक्षा में कट-ऑफ अंक 95.5 थे, जबकि एससी वर्ग के लिए कट-ऑफ 35 और ओबीसी वर्ग के लिए 73 थे। अंतिम चयन में सामान्य श्रेणी के कट-ऑफ अंक 55 थे, जबकि एससी के 65 थे। इसके बावजूद एससी के एक अभ्यर्थी को सामान्य सीट पर चयनित किया गया, जबकि प्रारंभिक परीक्षा में एससी अभ्यर्थी के अंक केवल 35 थे।

कोर्ट की सुनवाई और आदेश

नैनीताल हाईकोर्ट ने इस मामले में उत्तराखंड लोक सेवा आयोग को नोटिस जारी किया है और चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने साथ ही चयनित अभ्यर्थी देवकी नंदन और गिरीश सिंह बिष्ट को भी नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। इस मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर को होगी।

 निष्कर्ष

यह याचिका भारतीय आरक्षण प्रणाली और उसके तहत लागू नियमों को चुनौती देने वाला एक महत्वपूर्ण मामला है। नैनीताल हाईकोर्ट का फैसला इस संबंध में एक मिसाल कायम कर सकता है कि आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों को अनारक्षित श्रेणी में स्थानांतरित करने के नियम क्या होने चाहिए, विशेषकर जब वे प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षित श्रेणी के तहत कट-ऑफ का लाभ उठाते हैं।

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