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26 जून 2025 का दिन भारतीय अंतरिक्ष इतिहास में एक गौरवपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज हो गया है। इस दिन भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष में कदम रखकर पूरे देश का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया। यह उपलब्धि सिर्फ एक अंतरिक्ष यात्रा नहीं है, बल्कि भारत की वैज्ञानिक सोच, तकनीकी क्षमता और वैश्विक अंतरिक्ष साझेदारी का प्रतीक बन गई है।

 

“नमस्कार फ्रॉम स्पेस” – एक आवाज़ जो दिलों तक पहुंची

 

शुभांशु शुक्ला ने जैसे ही इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) से जुड़ते हुए संपर्क साधा, उन्होंने कहा – “नमस्कार फ्रॉम स्पेस!”। यह शब्द केवल स्पेसक्राफ्ट से नहीं आए, बल्कि करोड़ों भारतीयों के दिलों तक पहुंचे। यह ऐतिहासिक पल इसलिए भी खास है क्योंकि 1984 में राकेश शर्मा के बाद पहली बार किसी भारतीय ने अंतरिक्ष में कदम रखा है।

 

Axiom Mission-4: एक नई शुरुआत

 

Axiom Mission-4 एक कमर्शियल अंतरिक्ष मिशन है जो नासा, इसरो और Axiom Space के सहयोग से संभव हो पाया। शुभांशु शुक्ला इस मिशन के प्रमुख सदस्य हैं और उनके साथ तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री भी शामिल हैं। 25 जून 2025 को दोपहर 12 बजे उन्होंने धरती से अपनी यात्रा शुरू की, और लगभग 28 घंटे की रोमांचक यात्रा के बाद 26 जून को शाम 4 बजे ISS पर सफलतापूर्वक डॉकिंग की।

 

डॉकिंग का मतलब क्या होता है?

 

डॉकिंग का अर्थ है कि अंतरिक्ष यान (इस केस में ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट) इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से पूरी तरह जुड़ चुका है। इसके बाद सभी अंतरिक्ष यात्री सुरक्षित रूप से स्टेशन के अंदर प्रवेश कर सकते हैं। यह एक बेहद सटीक और तकनीकी रूप से जटिल प्रक्रिया होती है, जिसमें समय, दिशा और गति का पूर्ण संतुलन जरूरी होता है।

 

अब शुरू हुआ असली मिशन – 14 दिनों का विज्ञान-यात्रा

 

अब जब अंतरिक्ष यात्री ISS पर पहुंच चुके हैं, असली मिशन की शुरुआत हो चुकी है। अगले 14 दिनों तक शुभांशु शुक्ला और उनकी टीम अंतरिक्ष में रहकर करीब 60 वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे। इनमें प्रमुख शोध ये होंगे:

 

अंतरिक्ष में मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन

 

माइक्रोग्रैविटी में मेडिकल रिसर्च

 

नई स्पेस टेक्नोलॉजी का परीक्षण

 

 

यह मिशन अब तक के किसी भी Axiom मिशन से ज्यादा वैज्ञानिक प्रयोगों से भरपूर है। इन प्रयोगों से मिलने वाले नतीजे गगनयान मिशन समेत भविष्य के मानव मिशनों की नींव तैयार करेंगे।

 

छह बार टला लॉन्च, लेकिन नहीं टूटा हौसला

 

इस मिशन की लॉन्चिंग पहले 6 बार टाली गई थी, लेकिन टीम का हौसला कभी कम नहीं हुआ। आखिरकार 25 जून को मिशन ने उड़ान भरी और 26 जून को अंतरिक्ष में सफलता पूर्वक प्रवेश किया। यह कहानी केवल तकनीक की नहीं, बल्कि धैर्य, समर्पण और प्रेरणा की भी है।

 

शुभांशु शुक्ला – दूसरा भारतीय अंतरिक्ष यात्री

 

भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा थे, जिन्होंने 1984 में सोवियत संघ के साथ उड़ान भरी थी। शुभांशु अब उनके बाद अंतरिक्ष में कदम रखने वाले दूसरे भारतीय बने हैं। उनकी यह उपलब्धि इसलिए भी अहम है क्योंकि यह न सिर्फ भारतीय अंतरिक्ष यात्राओं को दोबारा जीवंत करती है, बल्कि भारत के पहले स्वतंत्र मानव मिशन ‘गगनयान’ की नींव भी मजबूत करती है।

 

भारत की नई पहचान: तकनीक और आत्मनिर्भरता

 

शुभांशु शुक्ला की यह यात्रा केवल अंतरिक्ष की नहीं, बल्कि भारत की बदलती पहचान की प्रतीक भी है। जहां एक ओर भारत तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर वह वैश्विक अंतरिक्ष मिशनों में एक मजबूत भागीदार के रूप में उभर रहा है।

 

“हमारा बेटा अब सितारों के बीच है”

 

पूरे देश के लिए यह एक भावुक और गर्व का क्षण है। शुभांशु शुक्ला आज हर युवा के लिए प्रेरणा हैं, जो सपनों को साकार करना चाहते हैं। उनकी यह उपलब्धि न केवल अंतरिक्ष की ऊँचाइयों को छूने की कहानी है, बल्कि यह बताती है कि जब इच्छा, मेहनत और विज्ञान का मेल होता है, तो कुछ भी असंभव नहीं रह जाता।

 

 

 

निष्कर्ष:

26 जून 2025 को इतिहास ने करवट ली, जब एक भारतीय ने फिर से अंतरिक्ष को छुआ। यह उपलब्धि सिर्फ शुभांशु शुक्ला की नहीं, हर उस भारतीय की है जो विज्ञान में विश्वास रखता है और भारत को नई ऊँचाइयों पर देखना चाहता है। आने वाले समय में, जब गगनयान जैसी और उपलब्धियाँ सामने आएंगी, यह दिन याद

किया जाएगा – एक नई उड़ान की शुरुआत के तौर पर।

 

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