उत्तराखंड के चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ मंदिर के कपाट आज तड़के सुबह 4 बजे धार्मिक परंपराओं के अनुसार विधिविधान से खोले गए। इस शुभ अवसर पर मंदिर को गेंदे के फूलों से भव्य रूप से सजाया गया, जिससे सम्पूर्ण परिसर आध्यात्मिक ऊर्जा से भर उठा। कपाट खुलने के साथ ही शिवभक्तों ने “जय रुद्रनाथ” के जयकारों से वातावरण को भक्तिमय कर दिया।
भगवान रुद्रनाथ के कपाट खुलने के इस विशेष मौके पर 500 से अधिक श्रद्धालु उपस्थित रहे और उन्होंने इस पावन दृश्य के साक्षी बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। कपाट खुलते ही मंदिर में गूंजते मंत्रोच्चार, घंटियों की ध्वनि और भक्तों की आस्था से पूरा क्षेत्र शिवमय हो गया। श्रद्धालुओं ने सुबह-सुबह दर्शन कर भगवान रुद्रनाथ का आशीर्वाद प्राप्त किया।
इससे एक दिन पूर्व, शुक्रवार को भगवान रुद्रनाथ की उत्सव डोली शीतकालीन गद्दीस्थल गोपीनाथ मंदिर (गोपेश्वर) से रवाना हुई थी। डोली ने रात्रि प्रवास के लिए पुंग बुग्याल में विश्राम किया और शनिवार देर शाम रुद्रनाथ मंदिर परिसर में पहुंची। डोली यात्रा के दौरान श्रद्धालु ‘बोल बम’ और ‘हर हर महादेव’ के जयघोष करते हुए भगवान की भक्ति में लीन रहे।
शनिवार सुबह मंदिर में पूजा-अर्चना और आरती का आयोजन पुजारी सुनील तिवारी द्वारा सम्पन्न हुआ। इस पूजा में स्थानीय तीर्थ पुरोहितों, प्रशासनिक अधिकारियों और दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं ने भाग लिया। विशेष पूजा-अर्चना के बाद कपाटों को भक्तों के लिए खोला गया।
रुद्रनाथ मंदिर समुद्रतल से लगभग 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यह पंचकेदारों में से चौथा प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है। यहां भगवान शिव की मुख रूप में पूजा की जाती है। यह मंदिर धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। चारों ओर फैले बुग्याल, हिमालय की चोटियाँ और शुद्ध वातावरण श्रद्धालुओं को अध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं।
मंदिर के कपाट हर वर्ष शीतकाल में बंद कर दिए जाते हैं और भगवान की गद्दीस्थल गोपीनाथ मंदिर में पूजा होती है। गर्मियों में जब मौसम अनुकूल होता है, तब डोली यात्रा के माध्यम से भगवान को पुनः मूल मंदिर में लाया जाता है और कपाट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोले जाते हैं। यही परंपरा इस वर्ष भी निभाई गई।
स्थानीय प्रशासन और देवस्थानम बोर्ड द्वारा सुरक्षा और व्यवस्थाओं की विशेष निगरानी की गई। यात्रियों की सुविधा के लिए रात्रि विश्राम, भोजन और चिकित्सा की उचित व्यवस्था की गई थी। साथ ही, यात्रा मार्ग की साफ-सफाई और पर्यावरण संरक्षण को भी प्राथमिकता दी गई।
- यह पावन अवसर न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। स्थानीय लोगों के लिए यह गर्व और भक्ति का प्रतीक है, जबकि देश-विदेश से आए पर्यटकों को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।