हल्द्वानी के एक स्कूल में पढ़ने वाला 14 साल का बच्चा लंबे समय से अपने सहपाठियों की बॉडी शेमिंग का शिकार हो रहा था। लगातार चिढ़ाने और मज़ाक उड़ाने से वह गुस्से और बदले की भावना से भर गया। हालात इतने बिगड़े कि उसने छोटे-छोटे जानवरों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया।
काउंसलिंग में खुली सच्चाई
काउंसलिंग के दौरान सामने आया कि बच्चा लगभग तीन साल से इस समस्या से जूझ रहा था। उसकी शारीरिक बनावट अन्य बच्चों से अलग थी, जिसके कारण साथी अक्सर उसका अपमान करते थे। इसका असर उसकी मानसिक स्थिति पर गहराई से पड़ा।
अजीब हरकतों से हुआ पता
गुस्से में वह कभी जानवरों की आंखें नुकसान पहुंचाता, कभी उनके पैर बांध देता। यहां तक कि वह कागज़ पर जानवरों जैसी आकृतियां बनाकर उन पर सहपाठियों के नाम लिख देता और फिर उन्हें जला देता। शुरुआत में परिवार ने इसे सामान्य शरारत समझा, लेकिन स्थिति बिगड़ने पर उसे डॉक्टर के पास ले जाया गया।
सुशीला तिवारी अस्पताल के मनोविज्ञानी डॉ. युवराज पंत ने बताया कि बॉडी शेमिंग बच्चों की मानसिकता को गहराई तक प्रभावित करती है। इसलिए माता-पिता को बच्चों के बदलते व्यवहार पर ध्यान देना चाहिए।
मोबाइल न मिलने पर किशोरी का कदम
इसी अस्पताल में एक और केस सामने आया। एक किशोरी ने एंड्रॉइड फोन न मिलने पर गुस्से में अपने हाथ की नसें ब्लेड से काट डालीं। उसके दोनों हाथ कोहनी तक जख्मी हो गए थे। चौंकाने वाली बात यह रही कि उसे न तो दर्द का एहसास हुआ और न ही कोई पछतावा।
जांच में सामने आया कि वह कई महीनों से मोबाइल फोन की मांग कर रही थी। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उसकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी। नतीजतन, गुस्से में उसने खुद को ही चोट पहुंचा ली। हालांकि काउंसलिंग के बाद अब उसमें सुधार देखा जा रहा है।
अभिभावकों के लिए सुझाव
बच्चों के व्यवहार में आने वाले बदलावों को नज़रअंदाज़ न करें।
न तो अति लाड़-प्यार करें और न ही अत्यधिक सख्ती बरतें।
माता-पिता को बच्चों के लिए आदर्श बनना चाहिए।
बच्चों को खेल, संगीत और सांस्कृतिक गतिविधियों से जोड़ें।
धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी कराएं।
किसी भी समस्या के संकेत मि
लने पर तुरंत काउंसलिंग कराएं।