उत्तराखंड में हाल ही में लोकसभा अध्यक्ष के आधिकारिक दौरे के दौरान प्रोटोकॉल नियमों के उल्लंघन का एक मामला तेजी से तूल पकड़ता जा रहा है। यह विवाद उस समय शुरू हुआ जब लोकसभा सचिवालय की ओर से शिकायत की गई कि देहरादून के जिलाधिकारी ने न केवल निर्धारित सरकारी सम्मान की अवहेलना की, बल्कि शिष्टाचार से जुड़े बुनियादी प्रावधानों का भी पालन नहीं किया।
लोकसभा सचिवालय ने जताई नाराजगी
सूत्रों के अनुसार, यह मामला तब प्रकाश में आया जब लोकसभा सचिवालय ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर शिकायत दर्ज कराई। शिकायत में कहा गया है कि उत्तराखंड दौरे के दौरान लोकसभा अध्यक्ष को वह सम्मान नहीं दिया गया जो संविधान और प्रोटोकॉल के तहत अपेक्षित होता है। इस शिकायत के बाद राज्य सरकार और प्रोटोकॉल विभाग ने इस पर संज्ञान लिया है।
भारत सरकार ने भी उठाए सवाल
इस पूरे प्रकरण में केंद्र सरकार ने भी कड़ा रुख अपनाया है। भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय ने 19 जून को एक आधिकारिक पत्र जारी किया, जिसमें स्पष्ट शब्दों में नाराजगी प्रकट की गई है। मंत्रालय ने प्रोटोकॉल के उल्लंघन को ‘गंभीर लापरवाही’ करार देते हुए राज्य सरकार से जवाब मांगा है।
डीएम से नहीं हो पाया संपर्क
शिकायत में यह भी उल्लेख किया गया है कि लोकसभा अध्यक्ष के दौरे के दौरान जब जिलाधिकारी से संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला। यह स्थिति तब और गंभीर हो गई जब यह बात सामने आई कि दौरे के महत्वपूर्ण समय में जिलाधिकारी उपस्थित नहीं थे और न ही उन्होंने कोई वैकल्पिक व्यवस्था की।
शासन ने इस चुप्पी को गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार बताया है और इसे प्रशासनिक संवेदनशीलता के खिलाफ माना है। राज्य सरकार ने तत्काल देहरादून के जिलाधिकारी से इस पूरे मामले में स्पष्टीकरण तलब किया है और स्पष्ट किया है कि इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों, इसके लिए कड़े दिशा-निर्देश दिए जाएंगे।
राज्य सरकार का सख्त रुख
उत्तराखंड सरकार ने इस मामले में सख्त रवैया अपनाया है। सरकार का कहना है कि प्रोटोकॉल से जुड़े नियमों को हल्के में लेना कतई स्वीकार्य नहीं है। अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि भविष्य में किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी के दौरे के समय सभी आवश्यक औपचारिकताओं और सम्मान प्रक्रिया का सख्ती से पालन किया जाए।
राज्य के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि “प्रोटोकॉल न केवल संवैधानिक पदों के प्रति सम्मान प्रकट करने का तरीका है, बल्कि यह प्रशासनिक अनुशासन का भी अहम हिस्सा है। अगर कोई अधिकारी इन नियमों का पालन नहीं करता, तो यह केवल अनदेखी नहीं बल्कि जिम्मेदारी से बचने की प्रवृत्ति मानी जाएगी।”
क्या कहते हैं नियम?
प्रोटोकॉल नियमों के तहत, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यपाल और मुख्यमंत्री जैसे उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को विशेष सरकारी सम्मान दिया जाना अनिवार्य है। इसमें न केवल स्वागत और सुरक्षा से जुड़ी व्यवस्था शामिल होती है, बल्कि संबंधित जिला प्रशासन का सक्रिय सहयोग और उपस्थिति भी जरूरी मानी जाती है।
जब कोई अधिकारी इस दायित्व का निर्वहन नहीं करता या उसमें शिथिलता बरतता है, तो यह स्पष्ट रूप से नियमों का उल्लंघन होता है।
राजनीतिक हलकों में हलचल
इस प्रकरण ने राज्य के राजनीतिक गलियारों में भी हलचल पैदा कर दी है। कुछ विपक्षी दलों ने इसे प्रशासनिक असंवेदनशीलता बताते हुए राज्य सरकार पर सवाल उठाए हैं, जबकि सत्तारूढ़ दल इस बात पर जोर दे रहा है कि दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।
अधिकारियों को अलर्ट मोड में रखा गया
राज्य शासन ने अब सभी जिलों के जिलाधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों को विशेष दिशा-निर्देश जारी किए हैं कि किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी के आगमन की सूचना मिलते ही त्वरित रूप से आवश्यक तैयारियां की जाएं। प्रोटोकॉल विभाग को भी सक्रिय कर दिया गया है ताकि किसी प्रकार की लापरवाही दोबारा न हो।
आगे क्या?
अब सबकी नजर इस बात पर टिकी है कि देहरादून के जिलाधिकारी इस मामले में क्या जवाब देते हैं और शासन उनके स्पष्टीकरण से कितना संतुष्ट होता है। यदि जवाब असंतोषजनक पाया गया तो राज्य सरकार अनुशासनात्मक कार्रवाई का रास्ता भी अपना सकती है।
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निष्कर्षतः, यह घटना प्रशासनिक कार्यप्रणाली में सजगता और संवैधानिक पदों के प्रति सम्मान की आवश्यकता की याद दिलाती है। प्रोटोकॉल का पालन न केवल औपचारिकता है, बल्कि यह हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की मर्यादा का प्रतीक भी है।