Demo

उत्तर प्रदेश में लागू किए गए “विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2020” को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। इस बार मामला सीधे सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर पहुंचा है, जहां एक सामाजिक कार्यकर्ता ने इस कानून को चुनौती देते हुए गंभीर सवाल उठाए हैं। याचिका में दावा किया गया है कि यह कानून न केवल नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को खतरे में डालता है, बल्कि संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है।

 

याचिका की पृष्ठभूमि

 

लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा द्वारा दाखिल की गई इस याचिका में विशेष रूप से यह कहा गया है कि उक्त कानून का प्रयोग अंतरधार्मिक जोड़ों को प्रताड़ित करने और उन्हें डराने के लिए किया जा रहा है। उनका तर्क है कि यह कानून बिना पर्याप्त सबूत के किसी भी व्यक्ति को जबरन धर्मांतरण के आरोप में फंसाने का रास्ता खोलता है।

 

याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि यह अधिनियम भारतीय संविधान के तहत मिले धर्म की स्वतंत्रता, निजी जीवन के अधिकार और स्वतंत्रता की गारंटी का उल्लंघन करता है।

 

सुप्रीम कोर्ट ने मांगा राज्य सरकार से जवाब

 

सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है। कोर्ट ने यह याचिका पहले से लंबित अन्य समान प्रकृति की याचिकाओं के साथ जोड़ दी है, जिससे साफ है कि अब इस मुद्दे पर अदालत विस्तृत और गहन सुनवाई करेगी।

 

याचिकाकर्ता की ओर से मांग की गई है कि जब तक अंतिम निर्णय नहीं आ जाता, तब तक अदालत राज्य सरकार को इस कानून के तहत किसी भी व्यक्ति पर दंडात्मक कार्रवाई करने से रोके। उन्होंने कहा कि कई निर्दोष लोगों को इस कानून के तहत झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है।

 

कानून का मूल उद्देश्य और विवाद

 

उत्तर प्रदेश सरकार ने यह कानून 2020 में लागू किया था। इसे लागू करने के पीछे सरकार की दलील थी कि इसका उद्देश्य कथित “लव जिहाद” जैसे मामलों को रोकना है, यानी ऐसे विवाह जिनमें एक धर्म विशेष का व्यक्ति, दूसरे धर्म की महिला से शादी कर धर्मांतरण करवाता है।

 

हालांकि, इसके लागू होते ही मानवाधिकार संगठनों, कानूनी विशेषज्ञों, और कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस पर कड़ा विरोध जताया। उनका कहना है कि इस कानून का इस्तेमाल खास तौर पर अल्पसंख्यक समुदायों और अंतरधार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों के खिलाफ किया जा रहा है।

 

विशेषज्ञों का मानना है कि यह कानून उन लोगों की निजी पसंद और स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता है जो अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनते हैं, भले ही उनका धर्म अलग हो। इससे लोगों में डर और असुरक्षा की भावना भी बढ़ी है।

 

अंतरिम राहत की मांग

 

याचिका में अदालत से यह अनुरोध भी किया गया है कि जब तक इस मामले की पूरी सुनवाई न हो जाए, तब तक कोई गिरफ्तारी या कानूनी कार्रवाई न की जाए। वर्मा ने कहा कि इस कानून के तहत दर्ज किए गए कई मामलों में कोई ठोस सबूत नहीं होते, और केवल सामाजिक या राजनीतिक दबाव के चलते लोगों को टारगेट किया जाता है।

 

व्यापक असर और देशभर की निगाहें

 

अब जबकि यह मामला देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंच चुका है, यह सिर्फ एक राज्य का मसला न रहकर एक राष्ट्रीय बहस का रूप ले चुका है। भारत जैसे बहुधार्मिक और लोकतांत्रिक देश में जहां नागरिकों को अपने धर्म का पालन करने और जीवनसाथी चुनने की आजादी है, वहां इस कानून की वैधता पर अदालत का फैसला नजीर बन सकता है।

 

इस याचिका और सुनवाई से यह तय होगा कि क्या राज्य सरकारें ऐसे कानून बना सकती हैं जो नागरिकों की व्यक्तिगत आजादी को प्रभावित करें, या फिर संविधानिक मूल्यों को सर्वोपरि माना जाएगा।

 

निष्कर्ष

 

उत्तर प्रदेश का धर्मांतरण कानून एक बार फिर सुर्खियों में है, और अब इसकी संवैधानिक वैधता की परीक्षा सुप्रीम कोर्ट में होगी। यह केवल एक कानून की कानूनी समीक्षा नहीं, बल्कि देश की लोकतांत्रिक परंपराओं, नागरिक स्वतंत्रता, और समानता के मूल सिद्धांतों की कसौटी भी है।

 

अदालत क्या निर्णय देती है, यह भविष्य बताएगा, लेकिन इतना तय है कि इस मुद्दे पर आने वाले समय में देशभर में सामाजिक

और राजनीतिक विमर्श और भी गहरा होगा।

Share.
Leave A Reply

Live Almora

Stay connected with Live Almora – your trusted source for local news, events, and updates from Almora and across Uttarakhand. Real stories, real voices, right from the hills.

Contact Us-  
Aryan Sharma
Kalli mitti gaon
Thano road
Raipur dehradun
Phone – 91934 28304