Uttarakhand : उत्तराखंड की राजनीति में अक्सर अस्थिरता और सत्ता परिवर्तन की चर्चा होती रही है, लेकिन बीते चार वर्षों में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में राज्य ने स्थायित्व की ओर एक ठोस कदम बढ़ाया है। भाजपा सरकार ने इन चार वर्षों में कई उतार-चढ़ाव देखे, राजनीतिक चुनौतियों का सामना किया और बावजूद इसके मुख्यमंत्री धामी ने अपनी नेतृत्व क्षमता से खुद को एक भरोसेमंद चेहरा साबित किया।
धामी को शुरू में चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में मुख्यमंत्री बनाया गया था। वह स्वयं शुरुआती विधानसभा चुनाव हार गए थे, लेकिन पार्टी ने उन पर विश्वास जताते हुए मुख्यमंत्री पद पर बरकरार रखा। यह निर्णय अपने आप में इस बात का संकेत था कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को धामी की नेतृत्व शैली और उनकी राजनीतिक परिपक्वता पर पूरा भरोसा है। उस समय यह फैसला कई लोगों को असामान्य लगा, लेकिन समय ने यह साबित कर दिया कि पार्टी का यह निर्णय दूरदर्शिता से भरा हुआ था।
आज की स्थिति में धामी उत्तराखंड के पहले ऐसे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुख्यमंत्री बन चुके हैं, जिन्होंने लगातार चार वर्ष मुख्यमंत्री पद पर रहकर एक नया रिकॉर्ड बनाया है। हालांकि, वह अब भी राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेता नारायण दत्त तिवारी के रिकॉर्ड से पीछे हैं, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था। भाजपा के लिए अब अगला लक्ष्य यह रिकॉर्ड भी धामी के नाम करना है।
राज्य की राजनीति में वर्षों से एक धारणा बनी हुई थी कि उत्तराखंड में हर पांच साल में सत्ता बदलना तय होता है — कभी कांग्रेस, तो कभी भाजपा। लेकिन धामी सरकार ने इस सोच को चुनौती दी है। उन्होंने न केवल शासन की निरंतरता को बनाए रखा, बल्कि विकास कार्यों, कानून व्यवस्था, युवाओं और महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर फोकस कर आम जनता के बीच विश्वास भी कायम किया।
पार्टी संगठन और सरकार के बीच तालमेल की बात करें तो यह धामी सरकार की एक प्रमुख उपलब्धि रही है। बीते समय में भाजपा की राज्य इकाई में गुटबाजी, नेतृत्व संघर्ष और असंतुलन के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन पिछले चार सालों में संगठन में अनुशासन, एकता और स्पष्ट दिशा देखने को मिली है। मुख्यमंत्री धामी की संवाद शैली, नेतृत्व कौशल और निर्णायक दृष्टिकोण ने पार्टी में स्थिरता लाने में बड़ी भूमिका निभाई है।
वहीं, कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं में यह भावना स्पष्ट दिखाई देती है कि धामी की छवि ईमानदार, मेहनती और धरातल से जुड़ी हुई है। उनकी कार्यशैली में दिखने वाली ऊर्जा और स्पष्टता ने उन्हें संगठन और जनता दोनों के बीच लोकप्रिय बना दिया है। चाहे बात रोजगार योजनाओं की हो, निवेश आकर्षित करने की हो या धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण की — धामी सरकार ने हर क्षेत्र में ठोस प्रयास किए हैं।
चार साल का यह कार्यकाल न सिर्फ प्रशासनिक दृष्टि से बल्कि राजनीतिक स्थायित्व के लिहाज से भी अहम रहा है। कोरोना काल की चुनौतियों के बाद राज्य को सामान्य स्थिति में लाने की जिम्मेदारी धामी सरकार के कंधों पर थी, जिसे उन्होंने कुशलता से निभाया। इसके साथ ही पर्यटन, बुनियादी ढांचा, सड़क निर्माण, महिला सशक्तिकरण और स्वरोजगार जैसे क्षेत्रों में भी उल्लेखनीय प्रगति देखने को मिली है।
भाजपा अब स्पष्ट रूप से यह चाहती है कि उत्तराखंड में स्थायी और विकासोन्मुख नेतृत्व की पहचान धामी के रूप में स्थापित की जाए। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि अगर मुख्यमंत्री धामी पांच साल का कार्यकाल पूरा करते हैं, तो यह न केवल एक रिकॉर्ड होगा, बल्कि यह उत्तराखंड की राजनीतिक मानसिकता में एक बड़ा बदलाव भी लाएगा। इससे यह संदेश जाएगा कि अब राज्य में विकास की निरंतरता ही प्रमुख मुद्दा है, न कि बार-बार सरकार बदलना।
भविष्य की दृष्टि से देखें तो भाजपा और मुख्यमंत्री धामी दोनों के लिए आगामी एक वर्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह समय न केवल उपलब्धियों को मजबूत करने का है, बल्कि जनता के विश्वास को बनाए रखने का भी है। अगर यह कार्यकाल बिना किसी बड़े विवाद या असंतोष के पूरा होता है, तो यह न केवल एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी, बल्कि 2027 के चुनावों की नींव भी आज ही मजबूत हो जाएगी।
निष्कर्षतः, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चार साल के कार्यकाल में न केवल राजनीतिक स्थिरता दी है, बल्कि एक नई कार्य संस्कृति की भी नींव रखी है। अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या वह राज्य के पहले भाजपा मुख्यमंत्री बन पाएंगे जो पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे — और क्या यह मिथक भी टूटेगा कि उत्तराखंड में हर पांच साल में स
रकार बदलना तय है।