उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी भराड़ीसैंण में 11वां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस ऐतिहासिक क्षणों का साक्षी बना। इस अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देश की पहली “योग नीति” का औपचारिक शुभारंभ किया। यह नीति न केवल योग को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह राज्य को विश्व योग मानचित्र पर एक नई पहचान भी दिलाने जा रही है।
दो योग नगरों की घोषणा
मुख्यमंत्री धामी ने इस मौके पर राज्य में दो नए योग नगरों की स्थापना की घोषणा की। ये योग नगर उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में बसाए जाएंगे। इनका उद्देश्य केवल योग प्रशिक्षण तक सीमित नहीं होगा, बल्कि ये आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा और आध्यात्मिक गतिविधियों के समग्र केंद्र बनेंगे।
इन नगरों में अंतरराष्ट्रीय स्तर के योग गुरु, आयुर्वेद विशेषज्ञ, वेलनेस ट्रेनर और आध्यात्मिक संस्थाएं आमंत्रित की जाएंगी, जिससे राज्य को एक वैश्विक वेलनेस डेस्टिनेशन के रूप में विकसित किया जा सके।
आध्यात्मिक आर्थिक क्षेत्र (Spiritual Economic Zones)
सरकार की इस नई पहल में एक और बड़ा कदम है — गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों में एक-एक “आध्यात्मिक आर्थिक क्षेत्र” की स्थापना। इन क्षेत्रों को आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, योग और आध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा।
इन क्षेत्रों में निवेश, रोजगार, स्थानीय उत्पादों और सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक बाजार से जोड़ने की योजना भी तैयार की जा रही है। इससे न केवल स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे, बल्कि पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को भी नया जीवन मिलेगा।
योग नीति की मुख्य बातें
नई योग नीति में कई अहम बिंदुओं को शामिल किया गया है, जिनमें प्रमुख हैं:
2030 तक पांच नए योग हब स्थापित किए जाएंगे
उत्तराखंड सरकार का लक्ष्य है कि अगले पाँच वर्षों में राज्य में पाँच ऐसे योग केंद्र विकसित किए जाएं जो अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरे उतरें।
आयुष हेल्थ और वेलनेस सेंटरों में योग सेवाएं अनिवार्य होंगी
मार्च 2026 तक राज्य के सभी आयुष हेल्थ और वेलनेस सेंटरों में योग सेवाएं उपलब्ध कराई जाएंगी ताकि हर नागरिक को इसका लाभ मिल सके।
स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण और रोजगार
योग नीति के तहत स्थानीय युवाओं को योग, आयुर्वेद, पंचकर्म और वेलनेस टूरिज्म से जुड़े कोर्सों में प्रशिक्षित किया जाएगा जिससे वे अपने क्षेत्र में स्वरोजगार की दिशा में कदम बढ़ा सकें।
अंतरराष्ट्रीय सहभागिता
इस ऐतिहासिक अवसर पर आठ मित्र देशों के राजदूत, उच्चायुक्त और अन्य प्रतिनिधियों ने भी कार्यक्रम में भाग लिया। उनकी उपस्थिति ने यह संदेश दिया कि योग केवल भारत की विरासत नहीं, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य और शांति का प्रतीक बन चुका है।
मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में कहा, “उत्तराखंड की पर्वतीय जीवनशैली में सदियों से योग रचा-बसा है। यह केवल व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। अब समय आ गया है कि इस संजीवनी को हम पूरी दुनिया तक पहुँचाएं।”
पर्यटन और निवेश को मिलेगा प्रोत्साहन
राज्य सरकार का मानना है कि योग और आध्यात्मिकता के साथ पर्यटन को जोड़कर उत्तराखंड को एक समृद्ध और आत्मनिर्भर राज्य के रूप में खड़ा किया जा सकता है। योग नगरों और आध्यात्मिक आर्थिक क्षेत्रों में पर्यटन सुविधाएं, रिसॉर्ट, प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र और शोध संस्थान स्थापित किए जाएंगे।
इसके साथ ही राज्य में “वेलनेस टूरिज्म” को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष योजनाएं बनाई जा रही हैं, जिससे देश-विदेश के पर्यटक शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ के लिए उत्तराखंड का रुख करें।
पारंपरिक ज्ञान को मिलेगा मंच
उत्तराखंड की संस्कृति, लोक परंपराएं, जड़ी-बूटियां और आयुर्वेद से जुड़ा ज्ञान सदियों पुराना है। योग नीति के माध्यम से इस ज्ञान को संरक्षित कर वैज्ञानिक रूप से विकसित करने पर भी बल दिया जाएगा। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पाद आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा और परंपरा से जुड़े लोगों को नई पहचान मिलेगी।
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निष्कर्ष
उत्तराखंड की यह योग नीति राज्य के लिए एक नई दिशा और अवसरों का द्वार खोलने वाली है। यह न केवल योग और आयुर्वेद को प्रोत्साहित करेगी, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था, पर्यटन, शिक्षा और वैश्विक पहचान को भी नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की इस पहल से उत्तराखंड एक बार फिर योग की भूमि के रूप में दुनिया के सामने एक मजबूत छवि प्रस्तुत करेगा।