Uttarakhand : उत्तराखंड सरकार ने राज्य में जनता को गुणवत्तापूर्ण और सुरक्षित दवाएं उपलब्ध कराने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) विभाग ने प्रदेशभर में एक विशेष जांच अभियान शुरू किया है। इस अभियान का उद्देश्य दवा निर्माण और बिक्री की पूरी प्रक्रिया में किसी भी स्तर पर गुणवत्ता से समझौता न होने देना है।
फार्मा कंपनियों और दवा दुकानों की हो रही सघन जांच
इस अभियान के तहत राज्य की फार्मास्युटिकल कंपनियों, थोक विक्रेताओं, दवा दुकानों, गोदामों और निर्माण इकाइयों की गहन निगरानी और जांच की जा रही है। यदि किसी स्थान पर गुणवत्ता मानकों की अवहेलना पाई जाती है, तो वहां तुरंत कार्रवाई की जाएगी।
इस विशेष अभियान का नेतृत्व स्वयं स्वास्थ्य सचिव एवं एफडीए आयुक्त डॉ. आर. राजेश कर रहे हैं। उनके निर्देशों के अनुसार, वरिष्ठ औषधि निरीक्षकों को प्रदेशभर के विभिन्न जिलों में सक्रिय किया गया है। उन्हें निर्देशित किया गया है कि वे विभिन्न प्रतिष्ठानों से औषधियों के नमूने लें और उन्हें राजकीय विश्लेषक के पास परीक्षण के लिए भेजें।
गुणवत्ता में गड़बड़ी पर होगी सख्त कार्रवाई
अगर किसी दवा की गुणवत्ता निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं पाई जाती, तो उस दवा को बाजार से तत्काल हटाया जाएगा और संबंधित निर्माता या विक्रेता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई तय मानी जाएगी। यह कार्रवाई जुर्माने से लेकर लाइसेंस रद्द करने तक हो सकती है।
एफडीए अधिकारियों का कहना है कि यह कदम पूरी तरह से जनता की स्वास्थ्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है। राज्य सरकार का स्पष्ट निर्देश है कि औषधि जैसे संवेदनशील क्षेत्र में किसी भी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
दूसरे राज्यों के साथ मिलकर हो रही है संयुक्त कार्रवाई
एफडीए के अपर आयुक्त ताजबर सिंह जग्गी ने बताया कि कुछ असामाजिक तत्व उत्तराखंड की फार्मा कंपनियों के नाम का दुरुपयोग कर रहे हैं। इन तत्वों द्वारा उत्तराखंड की विश्वसनीयता का फायदा उठाकर नकली दवाएं बनाई जा रही हैं, जो देशभर में वितरित की जा रही हैं।
इस खतरे को रोकने के लिए एफडीए उत्तराखंड ने तेलंगाना, महाराष्ट्र, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के औषधि नियंत्रकों के साथ समन्वय किया है। इन राज्यों के साथ मिलकर संयुक्त छापेमारी अभियान भी चलाया जा रहा है, ताकि उन ठिकानों तक पहुंचा जा सके जहाँ से नकली दवाओं का उत्पादन हो रहा है।
जनस्वास्थ्य के साथ समझौता नहीं
राज्य औषधि प्रशासन का कहना है कि किसी भी स्थिति में जनस्वास्थ्य के साथ समझौता नहीं किया जाएगा। विभाग ने स्पष्ट कर दिया है कि जो कंपनियां या दुकानदार गुणवत्ता से खिलवाड़ करेंगे, उनके खिलाफ सख्त और त्वरित कार्रवाई की जाएगी।
पिछले कुछ महीनों में ऐसे कई मामलों में कार्रवाई की जा चुकी है, जहां दवाओं के सैंपल गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरे। इन मामलों में संबंधित कंपनियों पर जुर्माना लगाया गया है, कई की लाइसेंस रद्द किए गए हैं, और कुछ पर एफआईआर दर्ज करवाई गई है।
आगे भी चलेगा निगरानी अभियान
एफडीए ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह कोई एक बार का अभियान नहीं है, बल्कि यह लंबे समय तक चलने वाली निगरानी प्रक्रिया का हिस्सा है। विभाग का मकसद है कि राज्य में केवल उन्हीं दवाओं की बिक्री और निर्माण हो जो पूरी तरह से सुरक्षित और प्रभावशाली हों।
इस संदर्भ में आम जनता को भी जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है। एफडीए का कहना है कि यदि किसी व्यक्ति को दवा के संबंध में कोई शिकायत हो — जैसे असर न करना, संदिग्ध पैकिंग, या किसी और प्रकार की समस्या — तो वह विभाग की हेल्पलाइन या वेबसाइट के माध्यम से शिकायत दर्ज कर सकता है।
नकली दवाएं: एक बड़ा खतरा
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि नकली और घटिया दवाएं किसी भी बीमारी को ठीक करने की बजाय और अधिक नुकसान पहुंचा सकती हैं। कई बार मरीजों को गलत दवाओं से गंभीर साइड इफेक्ट होते हैं, और कभी-कभी यह स्थिति जानलेवा भी हो जाती है।
इसी वजह से राज्य सरकार और एफडीए का यह प्रयास न केवल सराहनीय है, बल्कि आवश्यक और समयानुकूल भी है। दवाओं की गुणवत्ता की निगरानी से राज्य में जनता का स्वास्थ्य बेहतर रहेगा और फार्मा सेक्टर की विश्वसनीयता भी बनी रहेगी।
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निष्कर्ष
उत्तराखंड में चलाया जा रहा यह निरीक्षण अभियान केवल एक सरकारी कार्रवाई नहीं, बल्कि एक जनस्वास्थ्य सुरक्षा अभियान है। इसका उद्देश्य स्पष्ट है — दवा की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं होगा। ऐसे में राज्य सरकार का यह कदम आम जनता के लिए एक सकारात्मक संकेत है कि उनकी सुरक्षा सर्वोपरि है।
आने वाले समय में यदि यह सघन निगरानी अभियान इसी दृढ़ता से जारी रहा, तो उत्तराखंड दवा क्षेत्र में एक आदर्श राज्य के रूप में उभर सकता है, जहाँ हर नागरिक को सिर्फ सुरक्षित और भरोसेमंद औषधि ही मिलती है।