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 Uttarakhand :उत्तराखंड को यूं ही ‘देवभूमि’ नहीं कहा जाता। यहां की वादियां, पर्वत और नदियां जितनी रमणीय हैं, उतनी ही यहां की जलवायु भी खास है। खासतौर पर वर्षा के मामले में उत्तराखंड का स्थान देश के कई राज्यों से आगे है। यह राज्य न केवल हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख जैसे अन्य पर्वतीय क्षेत्रों से अधिक बारिश प्राप्त करता है, बल्कि दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे मैदानी इलाकों से भी कहीं ज़्यादा वर्षा का अनुभव करता है।

 

क्यों करते हैं बादल उत्तराखंड से मोहब्बत?

 

उत्तराखंड में दो मानसूनी शाखाएं सक्रिय होती हैं—एक बंगाल की खाड़ी से और दूसरी अरब सागर से। इनमें से बंगाल की खाड़ी से आने वाली शाखा अधिक प्रभावशाली होती है, जो पूर्वी भारत से होकर सीधी हिमालय की ओर बढ़ती है। चूंकि उत्तराखंड का भौगोलिक ढांचा पहाड़ी है और इसमें ऊँचाई वाले क्षेत्र अधिक हैं, इसलिए नमी युक्त हवाएं जब पर्वतों से टकराती हैं तो भारी बारिश होती है। यही वजह है कि राज्य में वर्षा का स्तर अन्य कई राज्यों की तुलना में अधिक है।

 

आँकड़ों में उत्तराखंड की बारिश

 

भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार उत्तराखंड में औसतन सालाना 1477.6 मिलीमीटर बारिश होती है। वहीं तुलना करें तो हिमाचल प्रदेश में यह औसत 1245.1 एमएम, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में 1232.3 एमएम है। इसके अलावा पंजाब में 565.5 एमएम, हरियाणा, चंडीगढ़ व दिल्ली में 527.1 एमएम और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 765.3 एमएम तक बारिश होती है।

 

उत्तराखंड में खासकर मानसून के दौरान यानी जून से सितंबर के बीच भारी वर्षा होती है। अकेले मानसून सीजन में राज्य में औसतन 1162.7 एमएम वर्षा दर्ज होती है, जिसमें जुलाई और अगस्त के महीने सर्वाधिक वर्षा वाले रहते हैं।

 

इस बार की बारिश का हाल

 

वर्ष 2025 के जून महीने की शुरुआत में ही उत्तराखंड ने बारिश का स्वाद चखना शुरू कर दिया। देहरादून में तीन जून को 23.2 एमएम, चार जून को 7.8 एमएम और पांच जून को 0.4 एमएम बारिश दर्ज की गई। हालांकि ये आंकड़े कम प्रतीत हो सकते हैं, परन्तु इससे गर्मी में उल्लेखनीय गिरावट आई है और लोगों को राहत मिली है। वर्षा के कारण तापमान में भी संतुलन बना रहा, जिससे लू या गर्म हवाओं का असर अपेक्षाकृत कम रहा।

 

बारिश का लंबा रिकॉर्ड

 

उत्तराखंड में पिछले 26 वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें तो तीन बार ऐसी स्थिति आई जब वार्षिक वर्षा औसत से अधिक हुई। ये वर्ष हैं 2000, 2007 और 2010। वहीं छह बार वर्षा का स्तर औसत से कम रहा और शेष 18 वर्षों में बारिश सामान्य रही। इससे यह स्पष्ट होता है कि राज्य में वर्षा की स्थिरता तो है, लेकिन कुछ वर्षों में अधिक या कम होने की प्रवृत्ति भी देखी गई है।

 

जिलावार बारिश का ट्रेंड

 

मौसम विभाग ने वर्ष 1989 से 2018 तक के दैनिक वर्षा के आंकड़ों का विश्लेषण किया है, जिससे यह पता चला है कि राज्य के अलग-अलग जिलों में वर्षा की प्रवृत्ति भिन्न रही है। खासकर नैनीताल, रुद्रप्रयाग, चमोली और बागेश्वर जैसे जिलों में वार्षिक वर्षा में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। इन क्षेत्रों में मानसून अब पहले से भी अधिक सक्रिय दिखता है। दूसरी ओर, पौड़ी जिले में वर्षा की मात्रा में गिरावट दर्ज की गई है—चाहे वह मानसून की हो या वार्षिक हो।

 

मानसून का बदलता मिजाज

 

जलवायु परिवर्तन का असर मानसून की प्रवृत्तियों पर भी पड़ रहा है। जहां कुछ जिलों में बारिश का स्तर बढ़ा है, वहीं कुछ क्षेत्रों में कमी दर्ज की गई है। वैज्ञानिकों के अनुसार, पर्वतीय क्षेत्रों में हरियाली, वनों की उपस्थिति और पर्वत श्रृंखलाओं की ऊँचाई वर्षा को प्रभावित करती है। उत्तराखंड का प्राकृतिक भूगोल वर्षा के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करता है, इसलिए यहां बादल बार-बार लौटकर आते हैं।

 

बारिश: एक वरदान, परंतु चुनौतियों के साथ

 

जहां एक ओर अधिक वर्षा उत्तराखंड के लिए प्राकृतिक संसाधनों को बनाए रखने, जल स्तर संतुलित रखने और कृषि के लिए लाभकारी है, वहीं अत्यधिक या अनियमित बारिश कभी-कभी आपदा का कारण भी बन जाती है। खासतौर पर भूस्खलन, बाढ़ और नदियों के किनारे बसे क्षेत्रों में जलभराव की समस्या उत्पन्न होती है।

 

इसलिए जरूरी है कि राज्य में वर्षा से जुड़ी नीतियों और आपदा प्रबंधन प्रणालियों को लगातार सुदृढ़ किया जाए, ताकि प्रकृति के इस वरदान को सं

तुलन में रखकर उपयोग किया जा सके।

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