देहरादून से एक चौंकाने वाली हकीकत सामने आई है। उत्तराखंड में वक्फ बोर्ड को बने हुए 22 साल हो चुके हैं, लेकिन आज तक इसके लिए न तो स्थायी पदों का ढांचा स्वीकृत हो पाया है और न ही पर्याप्त कर्मचारी नियुक्त किए जा सके हैं। जबकि वक्फ कानून में समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं, लेकिन व्यवस्थाओं की नींव मजबूत करने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
सिर्फ चार कर्मचारियों के भरोसे 5388 संपत्तियों का प्रबंधन
उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के पास वर्तमान में कुल 2146 औकाफ और उनसे जुड़ी करीब 5388 संपत्तियां हैं। लेकिन इन सभी संपत्तियों के रख-रखाव और निगरानी के लिए मात्र चार कर्मचारी कार्यरत हैं—एक वक्फ निरीक्षक, एक रिकॉर्ड कीपर, एक कनिष्ठ लिपिक और एक अनुसेवक। यह स्थिति वर्ष 2004 से चली आ रही है, जब सरकार से विशेष अनुमति लेकर अस्थायी तौर पर ये नियुक्तियां की गई थीं। तब से लेकर आज तक कर्मचारियों की संख्या नहीं बढ़ाई गई है।
विभाजन के बाद मिला वक्फ बोर्ड, लेकिन नहीं मिला आधारभूत ढांचा
पांच अगस्त 2003 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड वक्फ बोर्ड का गठन किया गया था। उस समय प्रदेश को 2032 सुन्नी और 21 शिया वक्फ संपत्तियां मिली थीं। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़कर 2146 औकाफ और 5388 संपत्तियों तक पहुंच गई। लेकिन दुर्भाग्यवश, इस विशाल व्यवस्था के प्रबंधन के लिए कभी भी स्थायी पदों की स्वीकृति नहीं मिली।
भर्ती प्रस्ताव कई बार तैयार हुए, लेकिन स्वीकृति अधर में
बोर्ड ने समय-समय पर 36 कर्मचारियों की भर्ती के लिए प्रस्ताव तैयार किए, लेकिन वे सिर्फ फाइलों तक ही सीमित रह गए। विभिन्न सरकारों को बार-बार पद सृजन का प्रस्ताव भेजा गया, लेकिन किसी भी स्तर पर इसे मूर्त रूप नहीं दिया गया। इस दौरान राज्य में विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारें आईं और गईं, लेकिन बोर्ड की स्थिति जस की तस बनी रही।
बोर्ड के नेतृत्व में भी बार-बार बदलाव
2004 से अब तक वक्फ बोर्ड को चार अध्यक्ष मिले हैं और तीन बार यह बोर्ड प्रशासकों के हवाले रहा है। रईस अहमद पहले अध्यक्ष रहे, फिर डीएम देहरादून प्रशासक बने। इसके बाद हाजी राव शराफत अली, राव काले खां और हाजी मोहम्मद अकरम अध्यक्ष पद पर रहे। बाद में आईएएस डॉ. अहमद इकबाल ने प्रशासक की भूमिका निभाई। वर्तमान में शादाब शम्स 2022 से अध्यक्ष पद संभाल रहे हैं।
नई उम्मीदें, लेकिन कब तक इंतज़ार?
वर्तमान अध्यक्ष शादाब शम्स ने संकेत दिए हैं कि वक्फ कानून में हालिया संशोधन के चलते नियुक्तियों की प्रक्रिया कुछ समय के लिए रोकी गई थी। अब सेवा नियमावली और पदों की स्वीकृति की प्रक्रिया को दोबारा शुरू किया जाएगा। हालांकि यह कब तक होगा, और क्या यह केवल एक और आश्वासन बनकर रह जाएगा—यह सवाल बना हुआ है।