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Uttrakhand उत्तराखंड सरकार ने राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 15 जुलाई 2025 तक कराने की प्रतिबद्धता जताते हुए हाईकोर्ट में शपथ पत्र दाखिल किया है। इस सिलसिले में आज होने वाली कैबिनेट बैठक में पंचायत चुनावों को लेकर विशेष चर्चा होनी है। माना जा रहा है कि बैठक में एक संशोधित अध्यादेश का प्रस्ताव भी पेश किया जाएगा, जिसे फिर से राज्यपाल के पास भेजा जाएगा।

 

प्रदेश सरकार की योजना के अनुसार, हरिद्वार को छोड़कर राज्य के शेष 12 जिलों में पंचायत चुनाव कराए जाने हैं। इससे पहले सरकार ने एक अध्यादेश लाकर पंचायत चुनावों को संचालित करने की कोशिश की थी, लेकिन राज्यपाल द्वारा यह अध्यादेश यह कहकर वापस कर दिया गया कि इसमें कुछ बिंदुओं पर स्पष्टता का अभाव है। राज्यपाल की ओर से कहा गया कि प्रस्ताव में मुख्यमंत्री, संबंधित मंत्री और विधायी विभाग की स्पष्ट संस्तुति होनी चाहिए, ताकि इसे आगे स्वीकृति मिल सके।

 

क्या है सरकार की योजना?

 

सरकार की मंशा है कि आगामी 45 दिनों के भीतर पंचायत चुनाव संपन्न करा दिए जाएं। इसको देखते हुए पंचायतों में वर्तमान में नियुक्त प्रशासकों का कार्यकाल, जो मूल रूप से छह महीने के लिए निर्धारित था, उसे अब अगले डेढ़ महीने तक बढ़ाने की संभावना है। संशोधित अध्यादेश में इस तिथि का स्पष्ट उल्लेख किया जाएगा कि चुनाव किस दिन या किस समयावधि में कराए जाएंगे।

 

कैबिनेट में आज इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा की उम्मीद है। विशेष रूप से इस बात पर विचार किया जाएगा कि राज्यपाल द्वारा लौटाए गए अध्यादेश में उठाई गई आपत्तियों का कैसे समाधान किया गया है, और उसे नए रूप में दोबारा मंजूरी के लिए कैसे भेजा जाए।

 

क्यों जरूरी हैं पंचायत चुनाव?

 

राज्य में पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत तीन स्तरीय प्रणाली—ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत—का गठन होता है। यह चुनाव ग्रामीण प्रशासन को सुदृढ़ करने और जनता को सीधे भागीदारी देने के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। वर्तमान में प्रशासक ही पंचायतों का संचालन कर रहे हैं, लेकिन लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करने के लिए चुनाव अनिवार्य हैं।

 

क्या है अदालत की भूमिका?

 

हाईकोर्ट में दाखिल शपथ पत्र में सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह 15 जुलाई 2025 तक पंचायत चुनाव कराने को तैयार है। इससे पहले अदालत ने भी सरकार से चुनाव की संविधानिक प्रक्रिया को समय पर पूर्ण करने को कहा था। शपथ पत्र दाखिल करना इस दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।

 

राज्यपाल की आपत्तियाँ

 

राज्यपाल द्वारा लौटाए गए पुराने अध्यादेश में यह कहा गया था कि उसमें पर्याप्त कानूनी और प्रशासनिक औचित्य नहीं दर्शाया गया। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव कराने की प्रक्रिया और समयसीमा को स्पष्ट नहीं किया गया था। इसके अलावा, प्रस्ताव में संबंधित विभागों की संस्तुति भी नहीं थी, जो कि किसी भी अध्यादेश को मंजूरी दिलवाने के लिए आवश्यक होती है।

 

आगे की प्रक्रिया

 

यदि कैबिनेट में आज संशोधित अध्यादेश को मंजूरी मिलती है, तो उसे फिर से राजभवन भेजा जाएगा। वहाँ से सहमति मिलने के बाद राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की जा सकती है। आयोग को चुनाव की घोषणा करने से पहले सरकारी स्वीकृति और अधिसूचना की आवश्यकता होती है।

 

इसके बाद राज्य में आचार संहिता लागू हो जाएगी और चुनाव प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो जाएगी। उम्मीद की जा रही है कि जुलाई के पहले या दूसरे सप्ताह तक चुनाव हो जाएंगे और पंचायतें फिर से सक्रिय रूप से कार्य करने लगेंगी।

 

 

 

निष्कर्ष

उत्तराखंड सरकार पंचायत चुनाव को समय पर कराने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है। कैबिनेट बैठक में होने वाली चर्चा और संशोधित अध्यादेश की मंजूरी चुनाव प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में निर्णायक साबित हो सकती है। अब देखना यह है कि कैबिनेट के फैसले और राजभवन की सहमति के बाद राज्य निर्वाचन आयोग किस तारीख को

चुनाव कार्यक्रम घोषित करता है।

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