उत्तराखंड के दुर्गम सीमावर्ती इलाकों में बसने वाले गांव अब सिर्फ नक्शों तक सीमित नहीं रहेंगे। केंद्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी योजना ‘वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम’ इन गांवों को एक नई पहचान और दिशा देने की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है। इस योजना का उद्देश्य सिर्फ सीमा सुरक्षा को मज़बूत करना नहीं है, बल्कि वहां बसे लोगों को बुनियादी सुविधाएं, रोजगार और सम्मानजनक जीवन देना भी है।
पहला चरण: चीन सीमा से लगे गांवों पर विशेष फोकस
पहले चरण में चीन सीमा से सटे 10 गांवों को चुना गया है जिन्हें विशेष थीम पर आधारित मॉडल टूरिस्ट विलेज के रूप में विकसित किया जाएगा। इस विकास कार्य के लिए लगभग 75 करोड़ रुपये की योजना तैयार की गई है।
इन गांवों में बुनियादी सुविधाओं के साथ-साथ पर्यटक आकर्षण के केंद्र भी बनाए जाएंगे। स्थानीय संस्कृति, धर्म और परंपराओं को ध्यान में रखते हुए हर गांव को एक खास थीम दी जाएगी। उदाहरण के तौर पर:
पिथौरागढ़ जिले का गुंजी गांव अब ‘शिवधाम’ के रूप में विकसित होगा।
चमोली जिले का नीती गांव ‘शैव सर्किट’ का हिस्सा बनेगा।
पहले चरण में शामिल गांव
जिला गांवों के नाम
उत्तरकाशी जादूंग, बगौरी
चमोली माणा, नीती
पिथौरागढ़ गुंजी, गर्ब्यांग, नपलच्यू, नाभी, राककांग, कुटी
इन गांवों में होमस्टे सुविधाएं, ट्रेकिंग मार्ग, सांस्कृतिक केंद्र, हस्तशिल्प बाजार और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने जैसे कई कार्य होंगे। इसका उद्देश्य यह है कि स्थानीय निवासी पर्यटन से सीधे तौर पर जुड़ें और उन्हें स्थायी आय का स्रोत मिल सके।
सीएसआर के तहत बड़े प्रोजेक्ट भी शामिल
चमोली जिले के माणा और नीती गांवों के लिए 131 करोड़ रुपये की लागत से एक व्यापक मास्टर प्लान तैयार किया गया है। इसे कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) के अंतर्गत क्रियान्वित किया जाएगा। इससे इन इलाकों में बुनियादी ढांचे के साथ-साथ सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
दूसरा चरण: नेपाल सीमा से लगे गांवों पर ध्यान
‘वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम 2.0’ के अंतर्गत अब नेपाल सीमा से सटे 40 नए गांवों को भी इस योजना में शामिल किया गया है। इन गांवों में विभिन्न मूलभूत सुविधाओं के विकास पर काम होगा, जैसे—
रोजगार के अवसर
बिजली और पानी की व्यवस्था
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं
आवागमन के साधनों का विकास
इन 40 गांवों में शामिल हैं:
चंपावत जिले के 11 गांव
पिथौरागढ़ के 24 गांव
ऊधम सिंह नगर के 5 गांव
प्रत्येक गांव की ज़रूरतों के अनुसार अलग-अलग विकास योजनाएं बनाई जा रही हैं, ताकि क्षेत्र विशेष की भौगोलिक और सामाजिक आवश्यकताओं का सही समाधान हो सके।
कार्य की निगरानी और पारदर्शिता सुनिश्चित
योजना की निगरानी और समीक्षा के लिए एक संयुक्त आयुक्त स्तर के अधिकारी को प्रत्येक जिले के लिए तैनात किया गया है। ये अधिकारी संबंधित मुख्य विकास अधिकारियों (CDO) के साथ मिलकर काम करेंगे।
इसके साथ ही एक डिजिटल डैशबोर्ड सिस्टम भी विकसित किया गया है, जिसके ज़रिए हर 10 दिन में परियोजना की प्रगति की समीक्षा की जाएगी। इससे योजनाओं को समयबद्ध ढंग से पूरा करने में मदद मिलेगी और पारदर्शिता भी बनी रहेगी।
स्थानीय लोगों को मिलेगा रोज़गार, लौटेगी रौनक
इस योजना का सबसे बड़ा उद्देश्य है सीमावर्ती गांवों में रहने वाले लोगों को रोज़गार और आजीविका के साधन उपलब्ध कराना। पर्यटन, हस्तशिल्प, कृषि, और लोक-संस्कृति से जुड़े कार्यों को बढ़ावा दिया जाएगा जिससे युवाओं को गांव में ही बेहतर अवसर मिलें।
वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम न सिर्फ सीमाओं को सुरक्षित बनाएगा, बल्कि वहां की सांस्कृतिक धरोहर को संजोते हुए उसे देश-दुनिया के सामने लाने का भी माध्यम बनेगा।