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उत्तराखंड से एक बड़ी खबर सामने आ रही है खबर के मुताबिक बताया जा रहा है कि भू-बैकुंठ बदरीनाथ धाम में जल्द ही दुर्लभ प्रजाति के भोजपत्र का जंगल लहलहाएगा। यहां अलकनंदा के किनारे धनतोली तोक में भोजपत्र के 450 पौधे रोपे गए हैं। देश के प्रथम गांव माणा और आईटीबीपी के जवान यहां पौधों की देखरेख करेंगे।

 

बताया जा रहा है कि पेड़ वाले गुरुजी धन सिंह घरिया की पहल पर बदरीनाथ धाम में भोजपत्र के पौधों का रोपण किया गया है। घरिया ने बताया, भोजपत्र हिमालय क्षेत्र में 4500 मीटर की ऊंचाई पर उगता है। इसका वानस्पतिक नाम बेतुला यूटिलिस है। इसे स्थानीय बोली में स्यागपात के नाम से जाना जाता है। नमामि गंगे, इंटेक और एचसीएल फाउंडेशन के सहयोग से भोजपत्र का जंगल तैयार किया जा रहा है।

 

वहीं,पौधों का संरक्षण देश के प्रथम गांव माणा के ग्रामीण और चीन सीमा क्षेत्र की निगरानी कर रहे आईटीबीपी के जवान करेंगे। बताया, पहले चरण में भोजपत्र के 450 पौधे रोपे गए हैं। कहा, भगवान बदरीनाथ की पवित्र की भूमि को पर्यावरणीय सरोकारों से जोड़ते हुए आस्था रूपी वन तैयार किया जा रहा है।

 

भोजपत्र से बनता है कागज

भोजपत्र से कागज का निर्माण किया जाता है। प्राचीनकाल में भोजपत्र को ग्रंथों की रचना के लिए उपयोग में लाया जाता था। धार्मिक आयोजनों में भोजपत्र पर ही वेदपाठ लिखे जाते थे। मौजूदा समय में स्थानीय ग्रामीण भोजपत्र पर बदरीनाथ की स्तुति लिखने के साथ ही स्मृति चिह्न बनाकर श्रद्धालुओं को बिक्री कर रहे हैं।

 

 

आपको बता दें कि भोजपत्र की पत्तियां आयुर्वेदिक दवा बनाने में काम आती हैं। भारतीय वन अनुसंधान केंद्र देहरादून के वैज्ञानिकों के मुताबिक, भोजपत्र का उपयोग दमा और मिर्गी जैसे रोगों के इलाज में किया जाता है। इसका पेड़ करीब 20 मीटर की ऊंचाई तक होता है। चोट लगने पर बहते खून और घाव को साफ करने में भी भोजपत्र का उपयोग किया जाता है।

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