उत्तराखंड सरकार ने दवाओं के सुरक्षित, वैज्ञानिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से जिम्मेदार निस्तारण को लेकर एक ठोस योजना पर काम शुरू कर दिया है। यह कदम केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) के दिशा-निर्देशों को लागू करते हुए उठाया जा रहा है। राज्य सरकार का मानना है कि एक्सपायर्ड या अप्रयुक्त दवाओं के निस्तारण के लिए अब तक कोई एकीकृत और प्रभावी प्रणाली नहीं थी, जिसके कारण कई बार ये दवाएं गलत हाथों में चली जाती थीं या फिर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली प्रक्रियाओं से फेंक दी जाती थीं।
मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री की पहल
स्वास्थ्य सचिव एवं आयुक्त, खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA), डॉ. आर. राजेश कुमार के अनुसार, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के स्पष्ट निर्देशों के बाद इस व्यवस्था को राज्य में लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाया गया है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड जैसे पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील राज्य में यह कदम बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां की पारिस्थितिकी किसी भी रासायनिक प्रदूषण से जल्दी प्रभावित हो सकती है।
दवाओं के पूरे जीवनचक्र पर निगरानी
नई प्रणाली के तहत दवाओं के निर्माण से लेकर उपभोग और निस्तारण तक के हर चरण को कवर किया जाएगा। यानी, फार्मास्युटिकल कंपनियों से लेकर थोक विक्रेता, खुदरा दवा दुकानदार, अस्पताल, और यहां तक कि आम उपभोक्ता – सभी की जिम्मेदारियां तय की जाएंगी। इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी के लिए एक स्पष्ट ढांचा तैयार किया गया है, जो पारदर्शी और उत्तरदायित्व आधारित होगा।
थर्ड पार्टी मॉनिटरिंग और ई-ड्रग लॉग सिस्टम
अपर आयुक्त एफडीए एवं राज्य ड्रग कंट्रोलर ताजबर सिंह जग्गी ने बताया कि अब तक राज्य में दवाओं के निस्तारण की प्रक्रिया बिखरी हुई और असंगठित थी। अब इसे एक सुव्यवस्थित प्रणाली के अंतर्गत लाया जाएगा। इसके लिए थर्ड पार्टी मॉनिटरिंग सिस्टम, स्थानीय ड्रग इन्फोर्समेंट यूनिट्स, और ई-ड्रग लॉग जैसी डिजिटल प्रणाली का उपयोग किया जाएगा, ताकि किसी भी स्तर पर गड़बड़ी की गुंजाइश न रहे।
ई-ड्रग लॉग सिस्टम के माध्यम से हर दवा की बिक्री, समाप्ति तिथि और निस्तारण की जानकारी को ट्रैक किया जाएगा। यह प्रणाली न केवल निगरानी को आसान बनाएगी बल्कि दवा के दुरुपयोग या गलत इस्तेमाल को भी रोकने में सहायक होगी।
जन-जागरूकता अभियान और टेक-बैक सिस्टम
सरकार इस योजना को सफल बनाने के लिए जन-जागरूकता अभियान भी चलाएगी, ताकि आम लोग भी इस पहल में भागीदारी करें। इसके तहत ड्रग टेक-बैक साइट्स स्थापित की जाएंगी, जहां आम नागरिक अपने घरों में पड़ी पुरानी, एक्सपायर्ड या अप्रयुक्त दवाएं जमा करा सकेंगे। ये केंद्र शहरी, अर्द्ध-शहरी और पर्वतीय क्षेत्रों में चरणबद्ध तरीके से स्थापित किए जाएंगे।
ड्रगिस्ट्स एंड केमिस्ट्स एसोसिएशन को इस प्रक्रिया से जोड़ा जाएगा, जिससे दवा विक्रेताओं को भी टेक-बैक सिस्टम का हिस्सा बनाया जा सके। इन केंद्रों पर जमा की गई दवाओं को वैज्ञानिक रूप से संग्रह कर विशेष अनुमोदित प्रोसेसिंग यूनिट्स में सुरक्षित रूप से नष्ट किया जाएगा।
प्रशासनिक निगरानी और जिम्मेदारियां तय
इस योजना की निगरानी राज्य औषधि नियंत्रण विभाग द्वारा की जाएगी। इसके लिए प्रत्येक जिले में टास्क फोर्स गठित किए जाएंगे, जो स्थानीय स्तर पर योजना के क्रियान्वयन और निगरानी की जिम्मेदारी निभाएंगे। साथ ही, सभी हितधारकों – दवा निर्माता कंपनियों, वितरकों, खुदरा विक्रेताओं, अस्पतालों और उपभोक्ताओं – की जवाबदेही तय की जाएगी।
पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य सुरक्षा दोनों का ध्यान
उत्तराखंड सरकार की यह पहल न केवल पर्यावरण की रक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। कई बार एक्सपायर्ड दवाएं अनजाने में या जानकारी के अभाव में इस्तेमाल कर ली जाती हैं, जिससे गंभीर स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं। इसके अलावा, दवाओं को खुले में फेंकने से मिट्टी, जल और पशुओं पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
निष्कर्ष
उत्तराखंड सरकार की यह नई नीति न केवल दवाओं के सुरक्षित निस्तारण को सुनिश्चित करेगी, बल्कि एक स्थायी और उत्तरदायित्वपूर्ण स्वास्थ्य व्यवस्था की नींव भी रखेगी। यह पहल अन्य राज्यों के लिए भी एक मॉडल बन सकती है, विशेष रूप से उन राज्यों के लिए जो पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में आते हैं। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस नीति को ज़मीनी स्तर पर कितनी सफलता मिलती है और आम जनता किस हद तक इ
स व्यवस्था में भागीदारी करती है।