उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के एक छोटे से गांव कंसेरु में बीती रात एक दुखद घटना घटी, जब एक आवासीय मकान में अचानक आग लग गई। यह हादसा बुधवार और गुरुवार की दरम्यानी रात करीब तीन बजे का है। आग ऐना देवी नामक एक स्थानीय महिला के मकान में लगी, जिसने पूरे गांव में हड़कंप मचा दिया। उस समय अधिकांश लोग गहरी नींद में थे, लेकिन जैसे ही आग की लपटें दिखाई दीं और धुआं फैलना शुरू हुआ, गांव के लोग सतर्क हो गए।

 

आग की सूचना मिलते ही स्थानीय ग्रामीण बिना देरी किए घटनास्थल पर पहुंचे। उन्होंने बिना किसी औपचारिक अग्निशमन यंत्र के, स्थानीय साधनों से ही आग पर काबू पाने की कोशिश शुरू की। बाल्टी, पानी के टैंक और रेत की मदद से ग्रामीणों ने लगातार दो घंटे तक कड़ी मशक्कत की। आखिरकार सुबह तक आग पर काबू पा लिया गया।

 

मवेशियों की मौत से परिवार पर दुःख का पहाड़

 

हालांकि, ग्रामीणों की समय पर की गई कार्रवाई से मकान का ऊपरी हिस्सा और पास के अन्य मकान बचा लिए गए, लेकिन ऐना देवी के मकान के निचले हिस्से में बंधे तीन मवेशियों की दम घुटने से मौत हो गई। धुएं का स्तर इतना अधिक था कि वे खुद को बचा नहीं पाए।

 

यह घटना उस गरीब परिवार के लिए गहरा आघात लेकर आई है, जिसकी जीविका इन मवेशियों पर ही निर्भर थी। ऐना देवी का परिवार पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहा था और अब यह दुर्घटना उनके लिए और भी भारी साबित हो रही है।

 

प्रशासन मौके पर पहुंचा, नुकसान का आंकलन जारी

 

घटना की सूचना मिलते ही राजस्व विभाग की टीम मौके पर पहुंच गई। नायब तहसीलदार खजान सिंह असवाल ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और बताया कि भवन को आंशिक रूप से नुकसान पहुंचा है। उन्होंने प्रारंभिक रिपोर्ट में यह भी कहा कि आग लगने के कारणों की जांच की जा रही है, हालांकि प्रारंभिक तौर पर शॉर्ट सर्किट या चूल्हे की आग संभावित कारण मानी जा रही है।

 

नायब तहसीलदार ने यह भी पुष्टि की कि तीनों मवेशियों की मौत संभवतः धुएं के कारण दम घुटने से हुई है। प्रशासन ने घटना की गंभीरता को देखते हुए विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए हैं और मुआवजे की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है।

 

गांव ने दिखाई एकजुटता, मदद की अपील

 

गांव के निवासी अनिल रावत ने स्थानीय प्रशासन से मांग की है कि पीड़ित महिला को आर्थिक सहायता शीघ्र दी जाए। उनका कहना है कि यह घटना एक ऐसे परिवार के साथ हुई है, जिसकी आजीविका सीमित संसाधनों पर निर्भर है और ऐसे समय में सरकारी सहायता बेहद जरूरी है।

 

गांव के अन्य लोग भी इस कठिन समय में पीड़ित परिवार के साथ खड़े हैं। उन्होंने सामूहिक रूप से प्रशासन से राहत सामग्री, आवास मरम्मत और मवेशियों की क्षति की भरपाई की अपील की है। गांव के बुजुर्गों और युवाओं ने मिलकर पीड़ित परिवार को अस्थायी सहायता प्रदान की और उन्हें अस्थायी रूप से पास के एक रिश्तेदार के घर में शरण दिलाई।

 

ग्रामीणों की सतर्कता ने बचाई कई जानें

 

इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि आपातकालीन परिस्थितियों में स्थानीय समुदाय की तत्परता कितनी कारगर हो सकती है। यदि ग्रामीण समय पर सक्रिय नहीं होते, तो यह आग आसपास के अन्य मकानों को भी अपनी चपेट में ले सकती थी, जिससे बड़े स्तर पर जान-माल का नुकसान हो सकता था।

 

ग्रामीणों की सूझबूझ और साहसिक कदमों ने एक बड़ी अनहोनी को टाल दिया। हालांकि आग से हुई क्षति पीड़ित परिवार के लिए भारी है, लेकिन यह राहत की बात है कि कोई मानवीय हानि नहीं हुई।

 

अंतिम निष्कर्ष

 

यह घटना उत्तराखंड के दुर्गम और पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों के जीवन की कठिनाइयों को उजागर करती है। जहां एक ओर संसाधनों की कमी है, वहीं दूसरी ओर समुदाय का आपसी सहयोग ही सबसे बड़ा सहारा बन जाता है। प्रशासन को चाहिए कि वह इस तरह की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन और अग्निशमन प्रशिक्षण की व्यवस्था करे ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं में जान-माल का नुकसान कम से कम हो सके।

 

आशा है कि प्रशासन द्वारा जल्द ही पीड़ित परिवार को मुआवजा और पुनर्वास की व्यवस्था की जाएगी, जिससे वे दोबा

रा सामान्य जीवन की ओर लौट सकें।

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