उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश में शराब की नई दुकानें खोलने पर फिलहाल पूर्ण रोक लगा दी है। यह निर्णय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा तब लिया गया जब उन्हें प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से शराब की दुकानों को लेकर लगातार शिकायतें और आपत्तियां प्राप्त हो रही थीं। खासकर धार्मिक स्थलों और शिक्षण संस्थानों के समीप शराब की दुकानें खोले जाने के विरोध में जिलाधिकारियों के समक्ष बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों ने आपत्ति दर्ज कराई थी।
मुख्यमंत्री धामी ने इन शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए मुख्य सचिव आनंद बर्द्धन को निर्देश जारी किए कि जब तक स्थिति की पूरी तरह समीक्षा नहीं हो जाती, तब तक प्रदेश में किसी भी नई शराब की दुकान को खोलने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
जिलों में विरोध के स्वर तेज
सूत्रों के अनुसार, कई जिलों में नई आबकारी नीति के तहत प्रस्तावित शराब दुकानों के विरोध में स्थानीय निवासियों, जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों ने जिलाधिकारियों को ज्ञापन सौंपकर तीव्र आपत्ति जताई थी। इन्हीं विरोधों के चलते मुख्य सचिव ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देशित किया है कि नई दुकानों के आवंटन की प्रक्रिया पर तत्काल पुनर्विचार किया जाए और जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए ही कोई निर्णय लिया जाए।
पहले ही धार्मिक स्थलों के आसपास था प्रतिबंध
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने नई आबकारी नीति 2025 के अंतर्गत पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि धार्मिक स्थलों और शिक्षण संस्थानों के आसपास शराब की दुकानें नहीं खोली जाएंगी। इसके बावजूद, कुछ प्रस्तावित दुकानों को लेकर विवाद खड़े हो गए, जिसके बाद मुख्यमंत्री ने स्थिति का संज्ञान लेते हुए नई दुकानें खोलने की प्रक्रिया पर रोक लगाने का स्पष्ट आदेश जारी कर दिया।
जनता की भावना सर्वोपरि
मुख्यमंत्री ने अपने निर्देशों में कहा कि, सरकार का प्राथमिक दायित्व जनहित है और जनता की भावना सर्वोपरि है। यदि किसी निर्णय से जनता आहत होती है तो उस पर पुनर्विचार किया जाना आवश्यक है।”
जिलाधिकारियों को कार्रवाई के निर्देश
मुख्य सचिव द्वारा जारी आदेश में यह भी कहा गया है कि सभी जिलाधिकारी अपने-अपने क्षेत्रों में प्रस्तावित शराब दुकानों के स्थलों की जांच करें और स्थानीय जनता की आपत्तियों का पूर्ण संज्ञान लेते हुए कार्यवाही करें।
इस निर्णय के बाद उम्मीद की जा रही है कि सरकार शराब दुकानों के संबंध में जनता की सहभागिता और राय को प्राथमिकता देते हुए आगे की नीति तय करेगी। उत्तराखंड में इस फैसले को जनभावनाओं के सम्मान और उत्तरदायी प्रशासन की मिसाल** के रूप में देखा जा रहा है।