हाल ही में सुप्रसिद्ध लोकगायक पद्मश्री प्रीतम भरतवाण का नया गीत “कैमरा” सोशल मीडिया पर जबरदस्त लोकप्रियता हासिल कर रहा है। इस गीत ने न सिर्फ संगीत प्रेमियों का दिल जीत लिया है, बल्कि बुजुर्गों से लेकर युवाओं तक सभी को बचपन और गांव की भूली-बिसरी यादों में डुबो दिया है। लोकसंस्कृति की सादगी और ग्रामीण जीवन की मासूम झलकियों से भरे इस गीत ने यह साबित कर दिया है कि लोकगीतों की आत्मा आज भी लोगों के दिलों में गहराई से रची-बसी है।

एक साधारण यंत्र, असाधारण उत्सुकता

गीत “कैमरा” उस समय को दर्शाता है जब कैमरा एक विलक्षण वस्तु हुआ करता था। गांव के लोगों के लिए यह कोई जादुई यंत्र से कम नहीं था। महिलाएं झिझकतीं, बच्चे डरते, और बुजुर्ग विस्मित होकर उसे निहारते। जैसे ही किसी के हाथ में उसकी तस्वीर आती, वो कागज़ पर अपना चेहरा देख कर अचरज से भर जाता। भरतवाण इस गीत में उस दौर को बेहद आत्मीयता से पिरोते हैं, जब एक तस्वीर खिंचवाना किसी यादगार उत्सव से कम नहीं था।

“यू च फोटो खिंचणा मशीन”

इस गीत की प्रेरणा का एक दिलचस्प किस्सा खुद भरतवाण ने साझा किया। उन्होंने बताया कि जब वह छोटे थे, तो मामा की शादी में एक विदेशी मेहमान कैमरा लेकर आया था। उस समय गांव में शायद ही किसी ने ऐसा यंत्र देखा हो। बालमन में उत्सुकता जागी और उन्होंने अपनी नानी से पूछा, “ये क्या है?” नानी ने सहजता से जवाब दिया – “यू च फोटो खिंचणा मशीन।” यही मासूम सा संवाद इस गीत की आत्मा बन गया और आज लाखों लोगों के दिलों को छू रहा है।

पुरानी यादों की तस्वीर

“कैमरा” सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि एक समय यात्रा है। यूट्यूब पर गीत के नीचे लोग लगातार कमेंट कर रहे हैं – “ये गाना हमें बचपन में लौटा ले गया” या “जब पहली बार फोटो खिंचवाई थी, वो दिन याद आ गया।” कोई लिखता है कि दादी-नानी इस गाने को सुनकर रो पड़ीं, तो कोई अपने बच्चों को ये गीत सुनाकर गांव के किस्से सुनाने लगता है। यह गीत पुरानी पीढ़ियों की स्मृतियों को और नई पीढ़ी की जिज्ञासा को एक ही धागे में बाँधता है।

सोशल मीडिया पर धमाल

इस गीत की लोकप्रियता सिर्फ भावनात्मक स्तर तक सीमित नहीं है। इंस्टाग्राम पर महज़ तीन हफ्तों में “कैमरा” पर 4 लाख 86 हजार से ज्यादा रील बन चुकी हैं। बच्चे, युवा, बुजुर्ग – सभी वर्गों के लोग इस गाने पर अभिनय करते हुए, गांव के पुराने दृश्य दोहराते हुए नजर आ रहे हैं। फेसबुक, यूट्यूब और व्हाट्सएप पर भी इस गीत के वीडियो, मीम्स और भावुक प्रतिक्रियाएं लगातार शेयर हो रही हैं।

लोकसंस्कृति का दस्तावेज

प्रीतम भरतवाण वर्षों से उत्तराखंड की लोकधुनों और परंपराओं को अपने गीतों के माध्यम से सहेजते आए हैं। “कैमरा” भी इसी श्रृंखला की एक अहम कड़ी बन गया है। यह गीत सिर्फ एक स्मृति भर नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक दस्तावेज है, जो भविष्य की पीढ़ियों को यह बताएगा कि कैसे कभी एक कैमरे की क्लिक लोगों के लिए किसी जादू से कम नहीं थी।

एक बीते युग की झलक

भरतवाण बताते हैं कि यह गीत लगभग 48 साल पुराने उनके निजी अनुभव पर आधारित है। उस समय गांव में कोई मोबाइल, इंटरनेट या टीवी नहीं था। जब वह विदेशी मेहमान कैमरा निकालते और गांववालों की तस्वीरें खींचते, तो लोग डर और कौतूहल के बीच झूलते थे। लेकिन जब तस्वीरें सामने आतीं, तो उनकी आँखों में एक अलग ही चमक होती। आज वही चमक फिर से लोगों की आँखों में नजर आ रही है – इस गीत के माध्यम से।

क्यों खास है ये गीत?

भाषा और बोली की मिठास: गीत में स्थानीय पहाड़ी बोली का सहज प्रयोग है, जो सीधे दिल में उतरता है।

सच्ची घटनाओं पर आधारित: गीत की कहानी वास्तविक अनुभव से ली गई है, जिससे जुड़ाव महसूस होता है।

संस्कृति का दस्तावेजीकरण: यह सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि संस्कृति को सहेजने का एक माध्यम है।

निष्कर्ष:

“कैमरा” कोई भव्य फिल्मी गीत नहीं, बल्कि गांव की गलियों से उठी एक मधुर धुन है। यह गीत हमें बताता है कि कभी छोटी-छोटी चीजों में भी कितनी बड़ी खुशी छिपी होती थी। यह प्रीतम भरतवाण का संगीत नहीं, बल्कि गांव की यादों का दस्तावेज है, जिसे उन्होंने सादगी, आत्मीयता और अपार प्रेम से रचा है। आज की तेज़ रफ्तार दुनिया में जब लोग अपने बचपन और जड़ों से दूर हो रहे हैं, ऐसे में “कैमरा” जैसे गीत एक सेतु का

काम करते हैं – अतीत और वर्तमान के बीच।

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