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Dehradun Uttarakhand : देहरादून में बीते दिनों सड़क किनारे लावारिस अवस्था में मिली एक नवजात बच्ची के मामले ने शहर में सनसनी फैला दी थी। दो दिन पहले देर रात यह बच्ची क्लेमेंटाउन क्षेत्र में एक सुनसान जगह पर मिली थी, जिसके बाद पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए उसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया और मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए गहन जांच शुरू कर दी। अब इस रहस्यमयी मामले की परतें खुलने लगी हैं, और जो तथ्य सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं।

 

बच्ची को छोड़ने वाले ही निकले उसके माता-पिता

 

दरअसल, जिस व्यक्ति ने पुलिस और चाइल्ड हेल्पलाइन को बच्ची की सूचना दी थी, उसी ने अपनी प्रेमिका के साथ मिलकर उसे सुनसान स्थान पर छोड़ा था। प्रारंभिक जांच में पुलिस को इसकी भनक तब लगी जब आसपास के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई। इनमें एक युवक और युवती एक स्कूटी पर सवार होकर घटनास्थल की ओर आते और फिर नवजात को वहीं छोड़कर लौटते दिखे।

 

पुलिस ने जब सूचना देने वाले कॉलर की कॉल डिटेल्स और गतिविधियों की जांच की, तो कई संदिग्ध तथ्य सामने आए। गहन पूछताछ के दौरान युवक टूट गया और उसने कुबूल किया कि नवजात उसी की संतान है, जो उसकी प्रेमिका ने 2 जुलाई को जन्म दी थी।

 

प्रेम प्रसंग और सामाजिक दबाव बना वजह

 

युवक ने बताया कि वह और उसकी प्रेमिका पिछले 2-3 वर्षों से प्रेम संबंध में हैं। युवती देहरादून के एक निजी कॉलेज में पढ़ाई कर रही है। पारिवारिक और सामाजिक दबाव के चलते वे दोनों इस बच्चे को स्वीकार नहीं कर पाए। बच्ची के जन्म के बाद उन्होंने उसे किसी सुरक्षित स्थान पर छोड़ने का फैसला लिया और फिर खुद ही चाइल्ड हेल्पलाइन को कॉल कर दिया ताकि बच्ची को समय रहते मदद मिल सके।

 

बच्ची को सुरक्षित पहुंचाया गया

 

घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस टीम ने तत्परता दिखाते हुए नवजात को तत्काल अस्पताल पहुंचाया, जहां प्राथमिक उपचार के बाद उसे बाल संरक्षण गृह ‘शिशु निकेतन’, केदारपुरम में भेज दिया गया। चाइल्ड हेल्पलाइन और महिला एवं बाल विकास विभाग के समन्वय से बच्ची की देखभाल की व्यवस्था की गई है।

 

संवेदनशीलता के साथ जांच में जुटी पुलिस

 

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा मामले को पूरी संवेदनशीलता के साथ देखा गया। घटना के बाद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने टीम को निर्देश दिए कि नवजात को छोड़ने वालों की पहचान जल्द से जल्द की जाए। इसके तहत क्लेमेंटाउन थाने की एक विशेष टीम गठित की गई, जिसने सीसीटीवी फुटेज, कॉल रिकॉर्ड और अन्य डिजिटल माध्यमों से जांच को तेज किया।

 

युवक-युवती से चल रही काउंसलिंग

 

जांच में यह स्पष्ट हो गया कि नवजात को छोड़ने का निर्णय एक कठिन पारिवारिक परिस्थिति और सामाजिक दबाव के चलते लिया गया था। दोनों युवाओं से पुलिस द्वारा विस्तार से पूछताछ की जा रही है और उनके परिजनों को भी बुलाकर संयुक्त रूप से काउंसलिंग कराई जा रही है। इस दौरान यह प्रयास किया जा रहा है कि बच्ची की भविष्य की देखभाल को लेकर उपयुक्त निर्णय लिया जा सके।

 

आगे की वैधानिक कार्रवाई जारी

 

पुलिस द्वारा फिलहाल मामले में कोई आपराधिक मंशा नहीं पाई गई है, परंतु यह एक गंभीर सामाजिक और कानूनी विषय है। नवजात को इस प्रकार छोड़ना, भले ही बाद में सहायता दी गई हो, एक गैर-जिम्मेदाराना कदम माना जाता है। इसीलिए पुलिस कानूनी प्रक्रिया के तहत सभी पहलुओं की जांच कर रही है और जरूरत पड़ने पर संबंधित धाराओं में केस दर्ज किया जा सकता है।

 

 

 

निष्कर्ष

 

इस पूरे मामले ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि प्रेम संबंधों में उठाए गए कदम, जब सामाजिक दबाव और जिम्मेदारियों के बीच आते हैं, तो युवा किस हद तक असमंजस में पड़ सकते हैं। यह भी स्पष्ट हुआ कि पुलिस की सतर्कता, तकनीकी सहायता और मानवीय दृष्टिकोण किसी भी मामले की सच्चाई सामने लाने में कितना प्रभावी हो सकता है।

 

यह मामला न केवल एक पुलिसिया कार्रवाई का उदाहरण है, बल्कि समाज के लिए एक संदेश भी है कि नवजीवन के साथ कभी भी लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए। हर बच्चे का अधिकार है कि उसे प्यार, सुरक्षा और सम्मान मिले — और यह जिम्मेदारी सिर्फ माता-पिता की ही नहीं, पूरे समाज की है।

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