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फिल्मी दुनिया की जानी-मानी अभिनेत्री ईशा देओल अपने पति भरत तख्तानी के साथ हाल ही में उत्तराखंड के ऋषिकेश स्थित विश्वप्रसिद्ध परमार्थ निकेतन आश्रम पहुंचीं। इस अवसर पर दोनों ने पावन गंगा नदी के तट पर स्थित इस आध्यात्मिक स्थल की गरिमा को न केवल महसूस किया, बल्कि गहन श्रद्धा और समर्पण के साथ धार्मिक गतिविधियों में भी भाग लिया।

 

आश्रम में पहुंचने पर ईशा देओल और उनके पति ने सबसे पहले पवित्र गंगा तट पर पहुँचकर विधिवत पूजा-अर्चना की। संध्या समय की आरती के दौरान दोनों ने भावभीनी सहभागिता दिखाई। मंत्रोच्चार, दीपों की रौशनी और नदी की लहरों के मधुर स्वर के बीच गंगा आरती ने न सिर्फ श्रद्धालुओं का मन मोह लिया, बल्कि ईशा और भरत भी उस भक्तिमय वातावरण में पूरी तरह खोए हुए नजर आए। आश्रम के शांत वातावरण और दिव्य ऊर्जा ने उन्हें आत्मिक स्तर पर गहराई से छुआ।

 

इस विशेष अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती और साध्वी भगवती सरस्वती ने उन्हें रुद्राक्ष का पौधा भेंट कर सम्मानित किया और उनके जीवन में आध्यात्मिक उन्नति व शांति की कामना की। रुद्राक्ष का यह पौधा पर्यावरण और अध्यात्म दोनों का प्रतीक माना जाता है, जो आत्मिक ऊर्जा के साथ-साथ प्रकृति से जुड़ाव का भी संदेश देता है।

 

अपने अनुभव साझा करते हुए ईशा देओल ने कहा,

“परमार्थ निकेतन में आकर जो आत्मिक शांति का अनुभव हुआ, वह शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। यह स्थान केवल एक साधारण आश्रम नहीं, बल्कि एक ऐसा आध्यात्मिक केंद्र है जहाँ मन, बुद्धि और आत्मा – तीनों को गहन विश्राम और सुकून मिलता है। यहाँ की ऊर्जा, यहाँ का वातावरण और यहाँ के लोग, सब कुछ मन को छू जाता है।”

 

स्वामी चिदानंद सरस्वती ने भी इस अवसर पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि,

“सिनेमा एक सशक्त माध्यम है, जिसके जरिए समाज को सकारात्मक संदेश दिए जा सकते हैं। जब कलाकार और प्रसिद्ध हस्तियां अध्यात्म, सेवा और संस्कृति से जुड़ते हैं, तो समाज पर उसका असर कई गुना बढ़ जाता है। यह समाज के लिए एक प्रेरणादायक संदेश है।”

 

साध्वी भगवती सरस्वती ने कहा,

“जब सार्वजनिक जीवन में सक्रिय व्यक्ति जैसे कलाकार या अन्य सेलिब्रिटी आत्मिक जागरूकता, सेवा, और पर्यावरण संरक्षण जैसे मूल्यों को अपनाते हैं, तो वे लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनते हैं। उनके कार्य और सोच समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक सिद्ध होते हैं।”

 

परमार्थ निकेतन की यह यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं थी, बल्कि ईशा देओल और उनके पति के लिए यह एक आत्मिक पुनर्जन्म जैसा अनुभव था। आश्रम में उन्हें न केवल आध्यात्मिक विचारों को समझने और आत्मनिरीक्षण करने का अवसर मिला, बल्कि समाज, संस्कृति और पर्यावरण से जुड़ने की प्रेरणा भी मिली।

 

गौरतलब है कि परमार्थ निकेतन ऋषिकेश का एक प्रमुख आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र है, जहाँ प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु देश-विदेश से आकर ध्यान, योग, सत्संग और गंगा आरती में भाग लेते हैं। यह आश्रम न केवल आध्यात्मिक साधना का केंद्र है, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय कार्यों में भी अग्रणी भूमिका निभाता है।

 

ईशा देओल की यह यात्रा एक उदाहरण है कि कैसे फिल्मी दुनिया की हस्तियां भी अध्यात्म की ओर झुकाव रखती हैं और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए अपने प्रभाव का उपयोग करती हैं। इस यात्रा ने न सिर्फ उन्हें आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान की, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित किया कि वे भी अपने व्यस्त जीवन में कुछ पल आत्मचिंतन और सेवा के लिए निकालें।

 

इस तरह की यात्राएं न केवल आत्मा को सुकून देती हैं, बल्कि व्यक्ति को अपने अस्तित्व और कर्तव्यों के प्रति जागरूक भी बनाती हैं। परमार्थ निकेतन का संदेश यही है कि “जीवन केवल भौतिक सुख-सुविधाओं तक सीमित नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा और सेवा ही सच्ची सं

तुष्टि का मार्ग है।”

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