प्रसिद्ध यात्रा लेखक ह्यूग गैंटजर को हाल ही में देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें उनके लंबे और प्रभावशाली लेखन जीवन के लिए प्रदान किया गया, जिसने भारत की सांस्कृतिक विविधता, ऐतिहासिक धरोहरों और जीवनशैली को न केवल देशवासियों बल्कि वैश्विक पाठकों और दर्शकों तक पहुँचाया। यह सम्मान उन्होंने अपनी दिवंगत पत्नी और लेखन साथी कोलेन गैंटजर के साथ साझा किया, जिनका योगदान उनकी रचनाओं में हमेशा जीवंत और बराबरी का रहा।
ह्यूग गैंटजर को यह पुरस्कार मसूरी स्थित उनके निवास पर प्रदान किया गया, जहाँ वे वर्तमान में अस्वस्थता के चलते दिल्ली में होने वाले राष्ट्रीय कार्यक्रम में सम्मिलित नहीं हो सके। वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शैलेश बाघौली ने मसूरी जाकर यह पुरस्कार उन्हें सौंपा। यह क्षण बेहद भावुक और गरिमामय था, जिसमें न केवल ह्यूग बल्कि उनके चाहने वालों के लिए भी एक गौरवपूर्ण अनुभूति जुड़ी रही।
साहित्यिक जीवन की शुरुआत और योगदान
ह्यूग और कोलेन गैंटजर की जोड़ी ने 1950 के दशक में यात्रा लेखन की दुनिया में कदम रखा। उस समय भारत आजादी के बाद खुद को पहचानने और पुनः गढ़ने की प्रक्रिया में था। ऐसे समय में इन दोनों लेखकों ने देश को नए नजरिए से देखने और दिखाने की मुहिम शुरू की। उनके लेख सिर्फ गंतव्यों का वर्णन नहीं करते थे, बल्कि वे वहाँ के लोगों, जीवनशैली, कहानियों, संघर्षों और सांस्कृतिक बुनावट को भी शब्दों में ढालते थे।
उनका लोकप्रिय स्तंभ “गैंटजर का यात्रा वृत्तांत” वर्षों तक राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित होता रहा, जिसने लाखों पाठकों को भारत के कोने-कोने से जोड़ा। उन्होंने न केवल हिमालय की चोटियों से लेकर दक्षिण के समुद्र तटों तक, बल्कि छोटे-छोटे गाँवों से लेकर भीड़भाड़ वाले शहरों तक के अनुभव साझा किए। उनके दृष्टिकोण की खास बात यह रही कि वे हमेशा उस धरातल पर जाकर अनुभव करते थे, जहाँ आम पर्यटक शायद कभी न पहुँचता।
दूरदर्शन पर यात्रा वृत्तांतों का प्रभाव
लेखन के अलावा, ह्यूग और कोलेन ने दूरदर्शन पर यात्रा वृत्तांतों की एक सीरीज़ भी तैयार की थी, जिसने भारत के हर कोने को टेलीविजन के माध्यम से देशवासियों के ड्राइंग रूम तक पहुँचाया। उस दौर में जब टेलीविजन सीमित था और जानकारी के स्रोत गिने-चुने थे, तब गैंटजर दंपती के कार्यक्रमों ने दर्शकों को न केवल दृश्यात्मक आनंद दिया, बल्कि एक भावनात्मक जुड़ाव भी स्थापित किया।
उनके एपिसोड्स में दिखाया गया हर स्थल, हर संवाद और हर चित्रण एक गहरी संवेदना और शोध के साथ तैयार किया जाता था। यही कारण रहा कि उनके बनाए कार्यक्रम आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं।
लेखन शैली और साहित्यिक दृष्टि
ह्यूग गैंटजर की लेखनी को तीक्ष्ण पत्रकारिता दृष्टि के लिए जाना जाता है, जबकि कोलेन की शैली को कोमल, भावनात्मक और अभिव्यक्तिपूर्ण माना गया। यह संगम भारतीय यात्रा साहित्य में एक दुर्लभ संतुलन लेकर आया। जहाँ ह्यूग तथ्यों, सामाजिक मुद्दों और विश्लेषणों को सामने रखते, वहीं कोलेन उसकी आत्मा, भावनाएं और रंग भर देतीं। इसी संतुलन ने उन्हें पाठकों के बीच इतना प्रिय बना दिया।
उनका लेखन केवल स्थल-वर्णन या यात्रा टिप्स नहीं था। उन्होंने भारत को एक जीवंत संस्कृति के रूप में देखा और दर्शाया। चाहे वो राजस्थान के रेगिस्तान हों या पूर्वोत्तर की घाटियाँ, उनके विवरणों में न केवल दृश्य आते थे बल्कि उनकी आत्मा भी झलकती थी।
प्रेरणा और विरासत
आज जब देशभर में युवा यात्रा लेखक, ब्लॉगर और कंटेंट क्रिएटर इस क्षेत्र में आ रहे हैं, ह्यूग और कोलेन की लेखनी उनके लिए एक प्रेरणा स्रोत है। उन्होंने यह दिखाया कि यात्रा केवल मनोरंजन नहीं बल्कि समझ, आत्मीयता और जुड़ाव का माध्यम भी हो सकती है। उनके लेखन ने भारत को भारत से ही मिलवाया — एक ऐसा भारत जो विविध है, रंगीन है और भावनाओं से भरा है।
उनकी लेखनी ने न केवल पाठकों को भारत को बेहतर ढंग से समझने का अवसर दिया, बल्कि एक नई पीढ़ी को भी अपनी संस्कृति और विरासत की खोज में निकलने की प्रेरणा दी।
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निष्कर्ष
ह्यूग गैंटजर और कोलेन गैंटजर की जोड़ी ने भारतीय यात्रा साहित्य को वह ऊँचाई दी, जहाँ आज भी बहुत कम लोग पहुँच पाए हैं। उनका पद्मश्री से सम्मानित होना सिर्फ एक व्यक्ति की उपलब्धि नहीं, बल्कि भारतीय यात्रा लेखन की दशकों की साधना और समर्पण का राष्ट्रीय स्तर पर दिया गया सम्मान है। यह पुरस्कार उस लेखन शैली का भी सम्मान है, जिसने भारत की आत्मा को शब्दों में
बाँधा और उसे हर कोने तक पहुँचाया।