उत्तराखंड में हो रही लगातार बारिश अब जनजीवन के लिए खतरा बनती जा रही है। पर्वतीय क्षेत्रों में तेज़ बारिश के कारण नदियाँ उफान पर हैं और इससे जुड़े कई दर्दनाक हादसे सामने आ रहे हैं। ऐसा ही एक दुखद मामला उत्तरकाशी जिले के भटवाड़ी तहसील क्षेत्र से सामने आया है, जहां शनिवार देर शाम को जालंधरी नदी की तेज धारा में दो बकरीपालक बह गए। घटना क्यारकोटि गांव के पास की बताई जा रही है, जो हर्षिल से करीब 14 से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, दोनों व्यक्ति अपने जानवरों के साथ नदी किनारे चराई के लिए गए थे। इसी दौरान अचानक नदी में पानी का बहाव तेज हो गया और दोनों व्यक्ति उसकी चपेट में आ गए। यह पूरा इलाका दुर्गम और अत्यंत संवेदनशील माना जाता है, जहां सड़क की सुविधा नहीं है। वहां तक पहुंचने के लिए सिर्फ पैदल मार्ग ही उपलब्ध है। यही कारण है कि राहत और बचाव कार्यों में अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
घटना की सूचना मिलते ही प्रशासन ने तेजी से कार्रवाई शुरू की। स्थानीय पुलिस, एसडीआरएफ (राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल), वन विभाग और राजस्व विभाग की टीमें तुरंत सक्रिय हो गईं। सभी संबंधित विभागों को अलर्ट पर रखा गया और एक संयुक्त बचाव दल घटनास्थल के लिए रवाना किया गया। हालांकि रास्ता दुर्गम होने के कारण टीम को मौके तक पहुंचने में समय लग रहा है।
बचाव दल में कुल मिलाकर एसडीआरएफ के छह सदस्य, वन विभाग के चार कर्मचारी, स्थानीय पुलिस के चार जवान, दो राजस्व अधिकारी और दर्जनों ग्रामीण शामिल हैं। इस टीम ने नदी के किनारे सघन खोज अभियान शुरू कर दिया है। अब तक लापता व्यक्तियों का कोई सुराग नहीं मिल सका है। नदी का बहाव अत्यधिक तेज होने के कारण तलाशी अभियान में भी कठिनाइयाँ आ रही हैं।
प्रशासन की ओर से स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी नागरिक को नदी या अन्य जलस्रोतों के पास न जाने दिया जाए। इसके साथ ही लोगों से अपील की गई है कि वे खराब मौसम के दौरान अनावश्यक यात्रा से बचें और विशेष रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में जाने से परहेज करें। प्रशासन का कहना है कि वर्तमान मौसम की स्थिति को देखते हुए खतरा लगातार बना हुआ है।
उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में पिछले कुछ दिनों से लगातार बारिश हो रही है, जिससे भूस्खलन, सड़कों का बंद होना और जलभराव जैसी समस्याएं बढ़ गई हैं। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में छोटे-छोटे नाले भी अचानक उफान पर आ जाते हैं, जिससे जानमाल का खतरा बढ़ जाता है। जालंधरी नदी की घटना इसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा की ओर इशारा करती है, जो मानसून सीजन में आम हो गई है।
हर्षिल घाटी और उससे सटे क्यारकोटि जैसे इलाके पहले से ही संवेदनशील घोषित किए जा चुके हैं। यह क्षेत्र न केवल दुर्गम है, बल्कि संचार सुविधाएं भी बेहद सीमित हैं। हादसे के समय इलाके में कोई मोबाइल नेटवर्क उपलब्ध नहीं था, जिसके कारण स्थानीय लोगों को प्रशासन तक सूचना पहुंचाने में भी कठिनाई हुई। फिर भी, ग्रामीणों की सतर्कता और प्रयासों के कारण राहत दल को समय रहते घटना की जानकारी मिल सकी।
इस तरह की घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि राज्य में आपदा प्रबंधन तंत्र को और अधिक मजबूत करने की आवश्यकता है। विशेषकर दुर्गम क्षेत्रों में त्वरित संचार और राहत पहुंचाने की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि किसी भी आपात स्थिति में जानें बचाई जा सकें।
प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से उत्तराखंड अत्यंत संवेदनशील राज्य है। यहां हर साल मानसून के दौरान कई ऐसे हादसे होते हैं, जिनमें जनहानि होती है। ऐसे में प्रशासन और जनता दोनों की सतर्कता बेहद जरूरी है। पहाड़ी इलाकों में रह रहे लोगों को मौसम पूर्वानुमान की जानकारी समय-समय पर दी जानी चाहिए और संकट के समय सुरक्षित स्थानों तक पहुंचने की तैयारी पहले से होनी चाहिए।
इस घटना ने एक बार फिर से चेतावनी दी है कि प्रकृति के सामने लापरवाही नहीं की जा सकती। प्रशासन जहां लगातार राहत व बचाव कार्यों में जुटा है, वहीं आम लोगों को भी पूरी सतर्कता बरतनी होगी। नदियों, झीलों और अन्य जल स्रोतों से दूर रहकर ही इस मौसम में सुरक्षित रहा जा सकता है।
फिलहाल, जालंधरी नदी में बहे दोनों बकरीपालकों की तलाश जारी है। उम्मीद की जा रही है कि बचाव दल जल्द ही कोई सुराग हासिल कर पाएगा। स्थानीय ग्रामीण भी राहत टीम की मदद कर रहे हैं और प्रशासन हर स्थिति
पर नजर बनाए हुए है।