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K kamraj : तमिलनाडु कांग्रेस समिति के अध्यक्ष चुने जाने के तुरंत बाद सत्यमूर्ति ने कामराज से अपनी एक व्यक्तिगत पेचीदा समस्या के बारे में सलाह मांगी। राजा जी मन्त्रिपरिषद् के त्यागपत्र के बाद मद्रास में गवर्नर प्रशासन की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। उन्होंने सत्यमूर्ति से मद्रास विश्वविद्यालय के उपकुलपति का पद देने की पेशकश की। सत्यमूर्ति हमेशा से विश्वविद्यालय शिक्षा में रुचि रखते थे और इसलिए इस प्रस्ताव को स्वीकार करना चाहते थे क्योंकि यह एक गैर-राजनीतिक शैक्षणिक ओहदा था। लेकिन जब उन्होंने कामराज ( K kamraj ) से सलाह मांगी तो उन्होंने इस प्रस्ताव को सीधे नकार देने की सलाह दी।

कामराज ( K kamraj ) ने इसके दो जरूरी कारण बताए। पहला कि उस समय गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस एक युद्ध-विरोधी सत्याग्रह पर विचार कर रहा था। अगर सत्यमूर्ति ने यह पद स्वीकार कर लिया तो उन पर आनेवाले राष्ट्रीय संघर्ष से खुद को अलग रखने का आरोप लग सकता था। कामराज ( K kamraj ) का दूसरा तर्क तो और भी सटीक था और उनकी राजनीतिक शुचिता की भावना को दर्शाता था। उन्होंने तर्क दिया कि सत्यमूर्ति को अंग्रेज गवर्नर से इस तोहफे की स्वीकार नहीं करना चाहिए क्योंकि अगर वह चाहते तो कांग्रेस मंत्रिपरिषद् के कार्यकाल में ही इस पद को प्राप्त कर सकते थे। इससे उनकी राजनीतिक छवि को धक्का लग सकता था। सत्यमूर्ति को कामराज की बातों में दम लगा और उन्होंने इस पद को स्वीकार करने से मना कर दिया।

जैसा कि कामराज ( K kamraj ) का अनुमान था, गांधीजी ने शीघ्र ही युद्ध की रजामंदी के बिना इसे शामिल किए जाने के विरोध में व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की। गांधीजी के द्वारा सोच विचार कर चुने गए नेताओं ने युद्ध विरोधी नारे लगाकर सत्याग्रह की शुरुआत की। तमिलनाडु में सत्यमूर्ति और राजाजी सहित अन्य लोगों ने इस अभियान में गिरफ्तारियां दीं। कामराज ( K kamraj ) को दिसंबर में ‘भारतीय सुरक्षा नियमों के तहत युद्ध-कोष में योगदान का विरोध करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें अन्य दक्षिण भारतीय नेताओं के साथ वेल्लोर जेल में रखा गया।

कामराज 1 नवम्बर, 1941 को रिहा हुए। सरकार ने सफाई दी कि कामराज ( K kamraj ) और जिन अन्य नेताओं को बिना सुनवाई के हिरासत में लिया गया था उन्हें इसलिए रिहा किया जा रहा था क्योंकि वह युद्ध-विरोधी कार्यों के लिए मुकर्रर सजा से अधिक दिन हिरासत में बिता चुके थे।

अगस्त 1942 में एक बार फिर गिरफ्तार होने के पहले बहुत थोड़े समय के लिए कामराज ने आजादी की हवा में सांस ली। इसी दौरान उन्हें एक दिन के लिए विरुदुनगर नगर समिति का अध्यक्ष बनने का अनूठा सम्मान प्राप्त हुआ। 1940 में समिति के चुनावों में कांग्रेस को केवल दो सीटें छोड़कर सभी सीटों पर विजय प्राप्त हुई। कामराज ( K kamraj ) समिति के लिए चुने गए थे, हालांकि वह जेल में थे। एक बार पहले भी 1937 में कांग्रेस ने जस्टिस पार्टी को हराकर इस समिति पर कब्जा किया था। पिछले कई सालों से जस्टिस पार्टी का समिति पर नियंत्रण रहा था। पार्टी ने कामराज को उस समय भी अध्यक्ष बनाने की पेशकश की थी। उन्होंने यह कहते हुए इस प्रस्ताव से इंकार कर दिया था कि वह अपने को स्थानीय नागरिक कार्यों में नहीं बांधना चाहते थे। जब 1940 में यह अवसर फिर उपस्थित हुआ तो समिति के अंदर कांग्रेस बहुमत ने कामराज ( K kamraj ) को फिर अध्यक्ष बनाने का फैसला किया। इस फैसले के पीछे कामराज के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करने की भावना तो थी ही, सरकार को भी ठेंगा दिखाने की मंशा थी जो हिरासत में रख रही थी।

1941 में जेल से छूटने के बाद कामराज ( K kamraj ) को नगर परिषद् के कार्यालय में ले जाया गया जहां उस वक्त एक मीटिंग चल रही थी। उप-सभापति उस सभा की अध्यक्षता कर रहे थे। कामराज को देखते ही उन्होंने उनके लिए अपनी कुर्सी छोड़ दी। कामराज ने पार्षदों को उन्हें अध्यक्ष चुनने के लिए धन्यवाद दिया लेकिन कांग्रेस की गतिविधियों में व्यस्तता के कारण इस पद पर रहकर इसके साथ न्याय कर पाने में उन्होंने अपनी असमर्थता जाहिर की। उन्होंने लोगों से त्यागपत्र देने की अनुमति मांगी।

एजेंडा में शामिल एक दो मुद्दों में भाग लेने के बाद कामराज ( K kamraj ) मीटिंग से चले गए। उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

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भारत छोड़ो आंदोलन और के कामराज

अप्रैल 1942 में क्रिप्स-मिशन की विफलता के बाद कांग्रेस के पास नए सिरे से संघर्ष की शुरुआत करने के सिवा कोई चारा नहीं रह गया। इस संभावना को देखते हुए राजाजी ने प्रस्ताव किया था कि कांग्रेस मुस्लिम लीग द्वारा प्रस्तावित पाकिस्तान की मांग को स्वीकार कर ले और इसके बदले मुस्लिम लीग राष्ट्रीय सरकार बनाने में कांग्रेस को सहयोग दे। भारत के पूर्वी तट पर जापानी हमले की बढ़ती आशंका के मद्देनजर वह मद्रास में लोकप्रिय सरकार की स्थापना के भी पक्ष में थे। इन प्रस्तावों के लिए उन्होंने मद्रास में कांग्रेस विधायक दल की आनन फानन में बुलाई गई मीटिंग में समर्थन भी प्राप्त कर लिया। लेकिन कांग्रेस कार्य समिति ने इस प्रस्ताव को एक सिरे से खारिज कर दिया। परिणामस्वरूप, राजाजी ने मद्रास विधानसभा की सदस्यता के साथ ही कांग्रेस के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया ताकि वह अपना अभियान चला सकें।

इसी बीच कांग्रेस कार्यसमिति की एक और बैठक हुई जिसमें ब्रिटेन को चेतावनी देने जैसा एक प्रस्ताव पारित किया गया। यही वह प्रसिद्ध ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव था जिसे अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी ने बंबई में 8 अगस्त को पारित किया। मीटिंग के अंत में गांधीजी ने कांग्रेस के लोगों को कहा कि देश के सामने जो नया संघर्ष खड़ा था उसमें हर देशभक्त के लिए एक ही नारा था ‘करो या मरो’ ।

बंबई से सभी नेता यह कठोर प्रण लेकर विदा हुए कि इस परीक्षा में चाहे जिस परिस्थिति का सामना करना पड़े वह उसे स्वीकार करेंगे।

यह सबको पता था कि सरकार ने गिरफ्तारी के लिए नेताओं और अन्य लोगों की सूची बना रखी थी और यह निर्देश भी जारी कर दिया था कि बंबई से लौटने के बाद उन्हें किस स्थान पर गिरफ्तार किया जाएगा।

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के कामराज ( K kamraj ) के हमेशा याद रहने वाले भाषण

(9 जनवरी 1964 को भुवनेश्वर में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 68वें अधिवेशन में कामराज ( K kamraj ) द्वारा दिए गए अध्यक्षीय भाषण के कुछ अंश) आपने एक सामान्य कार्यकर्ता को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के क्रियाकलापों

को संचालित करने की जिम्मेदारी दी है। इस महान पद को पहले सुशोभित कर चुके प्रख्यात राजनेताओं, विद्वानों और स्वतंत्रता सेनानियों की कतार में मैं खुद को पाकर विनीत अनुभव कर रहा हूं। यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि इस महान पद के दायित्व को स्वीकार करने में हिचकिचा रहा था। लेकिन मैंने कांग्रेस के अंदर अपने सहयोगियों तथा साथी कार्यकर्ताओं की आज्ञा को स्वीकार करने का निर्णय किया है।

हम भारतवासियों के लिए लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता दोनों सिद्धांत अत्यंत प्रिय हैं। हम यह चाहते हैं कि देश का राजनीतिक और आर्थिक संगठन लोगों की सम्मति से चले। तभी हम व्यवहार में एक सच्चे समाजवादी लोकतंत्र की स्थापना कर सकते हैं।

कुछ लोग ऐसा सोचते हैं कि तानाशाही के बगैर समाजवाद की स्थापना नहीं की जा सकती। हमें विश्वास है कि हम वर्ग संघर्ष के बिना ही एक समाजवादी व्यवस्था स्थापित कर सकेंगे और इस प्रचलित मान्यता को समाप्त कर पाएंगे कि समाजवादी व्यवस्था के अंदर लोगों की स्वाभाविक स्वतंत्रता छिन जाती है।

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