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उत्तराखंड में मोटे अनाज का क्रांति काल: मंडुवा बने किसानों की नई उम्मीद

उत्तराखंड में मोटे अनाज, विशेष रूप से मंडुवा (रागी) को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयास में अब सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। जो मंडुवा कभी उपेक्षित था, वह अब बाजार में तेजी से बिक रहा है। इस साल राज्य सरकार ने 3100 टन मंडुवा की खरीद की है, जो साध्य दुकानदारों और किसान संघों के माध्यम से किसानों से खरीदी गई।

42.46 रुपये प्रतिकिलो समर्थन मूल्य

सरकार ने मंडुवा का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 42.46 रुपये प्रति किलो तय किया है। यह पिछले वर्ष की तुलना में 68 प्रतिशत अधिक है। इस समर्थित मूल्य पर मंडुवा में राज्यभर में 270 केंद्र स्थापित किये गये हैं।

पारंपरिक खेती को नया जीवन

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में मंडुवा की खेती लंबे समय से की जा रही है। हालाँकि, आधुनिक कृषि पद्धतियों और निजीकरण के प्रयोग का यह लाभकारी उपेक्षित हो गया था। लेकिन केंद्र और राज्य सरकार द्वारा मिलेट को बढ़ावा देने के लक्ष्य ने इस फसल को फिर से प्रमुखता दी है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन का सहारा

मंडुवा को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत शामिल किया गया है। इस पहल के तहत किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है और उनके उत्पादों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जा रहा है। इससे न केवल किसानों की आय में वृद्धि हुई है, बल्कि पारंपरिक अर्थव्यवस्था को भी नई पहचान मिली है।

मंडुवा की प्यासी मांग

स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और मिलेट के पोषण आहार के साथ मंडुवा की मांग तेजी से बढ़ रही है। यह न केवल राज्य के अंदर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी लोकप्रिय हो रहा है।

सरकार के इस प्रयास में न केवल किसानों को आर्थिक क्षेत्र दिए जा रहे हैं, बल्कि पारंपरिक कृषि को संरक्षित करने में भी अहम भूमिका निभाई जा रही है। उत्तराखंड में मंडुवा की इस सफलता ने मोती अनाज की खेती को एक नई दिशा दी है।

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