इस साल मानसून ने उत्तराखंड की सड़कों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। भारी बारिश और भूस्खलन की वजह से अब तक 2500 से ज्यादा सड़कें क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। कई जगह सड़कें पूरी तरह बह गईं, तो कहीं हालात इतने खराब हैं कि आवाजाही नामुमकिन हो गई है। अकेले लोक निर्माण विभाग (लोनिवि) को 300 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है।
गढ़वाल में हालात सबसे खराब
गढ़वाल क्षेत्र में तबाही सबसे ज्यादा देखने को मिली है। यहां 1193 सड़कें टूट गईं, जबकि कुमाऊं मंडल में 492 सड़कें प्रभावित हुईं।
जिलों का हाल इस तरह है:
टिहरी – 295 सड़कें
पौड़ी – 378 सड़कें
चमोली – 106 सड़कें
रुद्रप्रयाग – 94 सड़कें
उत्तरकाशी – 120 सड़कें
देहरादून – 119 सड़कें
हरिद्वार – 31 सड़कें
अल्मोड़ा – 197 सड़कें
पिथौरागढ़ – 100 सड़कें
बागेश्वर – 73 सड़कें
नैनीताल – 93 सड़कें
चम्पावत – 40 सड़कें
ऊधमसिंहनगर – 08 सड़कें
238 मार्ग अब भी बंद
वर्तमान में राज्य में 238 रास्ते अभी भी अवरुद्ध हैं। इसका असर स्थानीय लोगों के साथ-साथ बाहर से आने वाले पर्यटकों पर भी पड़ रहा है। खासतौर पर दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से आने वाले यात्रियों को सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। कई सड़कें ऐसी हैं, जिन्हें फिर से बनाना मुश्किल माना जा रहा है।
राहत कार्य जारी
राज्य में 690 जेसीबी और पोकलेन मशीनें लगातार मलबा हटाने में लगी हुई हैं। फिलहाल अस्थायी रूप से रास्ते खोलने की कोशिश की जा रही है। स्थायी मरम्मत का काम तभी शुरू होगा जब सरकार से पूरा बजट जारी होगा। विभाग के मुताबिक, सिर्फ मार्ग खोलने में ही करीब 34.98 करोड़ रुपये, और पूरी मरम्मत के लिए 343.02 करोड़ रुपये की आवश्यकता है।
गांव कट गए दुनिया से
पहाड़ों में सड़क टूटने का मतलब है – गांव का बाकी दुनिया से कट जाना।
उत्तरकाशी (दुर्बिल गांव): बच्चे रोज जान जोखिम में डालकर स्कूल जा रहे हैं।
बड़कोट क्षेत्र: यमुनोत्री हाईवे बंद होने से आसपास के गांवों के बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।
पिथौरागढ़ (घंटाकरण-रई लिंक रोड): पुनेड़ी और लिंठ्यूड़ा गांवों के लोग रोजमर्रा की जरूरतों के लिए परेशान हैं।
बीमार और बुजुर्गों को सड़क तक पहुंचाने के लिए लोगों को कंधे या कंडी (बांस की डंडी) का सहारा लेना पड़ रहा है। यह स्थिति पहाड़ों की असल कठिनाइयों को उजागर करती है।