उत्तराखंड में शिक्षकों के तबादलों को लेकर शिक्षा विभाग ने एक नई और स्पष्ट नियमावली तैयार कर ली है, जिसे जल्द ही राज्य कैबिनेट की मंजूरी के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। इस नियमावली का उद्देश्य तबादला प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, निष्पक्ष और सुव्यवस्थित बनाना है। खास बात यह है कि इस नियमावली के तहत बोर्ड परीक्षाओं के परिणामों को भी तबादलों से जोड़ा गया है।
खराब परीक्षा परिणाम पर होगा सख्त एक्शन
नए नियमों के अनुसार, यदि किसी शिक्षक के विषय में लगातार दो वर्षों तक 10वीं या 12वीं की बोर्ड परीक्षा का परिणाम खराब रहता है, तो उन्हें अनिवार्य रूप से पर्वतीय क्षेत्र में स्थानांतरित किया जाएगा। इस कदम का मकसद शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाना और शिक्षकों को उनकी जिम्मेदारियों के प्रति अधिक सजग बनाना है।
राज्य को दो भागों में बांटा गया
तबादला नियमावली में राज्य को “पर्वतीय” और “मैदानी” दो प्रमुख भागों में बांटा गया है। पुराने “सुगम” और “दुर्गम” स्थानों की अवधारणा को हटाकर यह नई श्रेणी बनाई गई है। इसके अनुसार शिक्षकों को उनके सेवाकाल में पहाड़ और मैदान में कार्य अनुभव के आधार पर अंक दिए जाएंगे। ये अंक तबादलों की पात्रता सूची तैयार करने में निर्णायक होंगे।
ऑनलाइन प्रक्रिया से होंगे तबादले
अब शिक्षकों के तबादले पूरी तरह ऑनलाइन प्रक्रिया के माध्यम से होंगे। इसके लिए एक विशेष सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है, जो गुणांक आधारित सूची के आधार पर तबादलों का निर्धारण करेगा। इससे पारदर्शिता सुनिश्चित होगी और अनावश्यक सिफारिश या हस्तक्षेप से बचा जा सकेगा।
उच्च पर्वतीय और निम्न पर्वतीय जिलों की सूची
राज्य के चार जिलों — पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, चमोली और बागेश्वर को “उच्च पर्वतीय” जिलों की श्रेणी में रखा गया है। वहीं, टिहरी, रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा, चंपावत, नैनीताल, पौड़ी और देहरादून के गैर-मैदानी क्षेत्रों को “निम्न पर्वतीय” जिले माना जाएगा।
इस श्रेणीकरण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कठिन क्षेत्रों में कार्य कर चुके शिक्षकों को उनके अनुभव के अनुसार अंक मिलें और उनका तबादला उनकी सेवा की निष्पक्ष गणना के आधार पर हो।
अंक के आधार पर होगी पात्रता
तबादला प्रक्रिया में शामिल होने के लिए शिक्षकों को कम से कम 16 अंक अर्जित करने होंगे। ये अंक पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में सेवा के वर्षों के अनुसार तय किए जाएंगे।
संवर्ग परिवर्तन की सुविधा
इस नियमावली में शिक्षकों को उनके पूरे सेवाकाल में एक बार अपने संवर्ग (कैडर) को बदलने की छूट दी गई है। लेकिन इसके लिए यह आवश्यक है कि संबंधित शिक्षक ने वर्तमान संवर्ग में कम से कम तीन वर्ष की सेवा की हो। यह छूट शिक्षकों को अपने करियर विकास की दिशा में एक अवसर देने के लिए दी गई है।
विशेष छूट – विवाह उपरांत तबादला
एक महत्वपूर्ण प्रावधान के तहत अविवाहित महिला शिक्षकों को विवाह के बाद अपने पति के कार्यस्थल या गृह जिले में स्थानांतरण के लिए अपने पूरे सेवाकाल में एक बार विशेष छूट दी जाएगी। इससे महिला शिक्षकों को पारिवारिक जीवन और पेशेवर जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने में सहायता मिलेगी।
एससीईआरटी व प्रशिक्षण संस्थानों के लिए भी नियम लागू
एससीईआरटी, सीमैट और जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों (DIET) के शिक्षकों के लिए जब तक अलग कैडर का गठन नहीं हो जाता, तब तक ये सभी शिक्षक भी इसी नियमावली के अंतर्गत तबादला प्रक्रिया में सम्मिलित होंगे।
जनवरी से मार्च तक चलेगी प्रक्रिया
नए नियमों के तहत तबादला प्रक्रिया हर वर्ष 1 जनवरी से शुरू होगी और 31 मार्च तक पूरी की जाएगी। यह सुनिश्चित करने के लिए कि शैक्षणिक सत्र बाधित न हो, प्रक्रिया को एक सीमित समयावधि में पूर्ण किया जाएगा।
मूल अधिकार नहीं होगा तबादला
नियमावली में यह भी स्पष्ट किया गया है कि तबादला किसी शिक्षक का मूल अधिकार नहीं माना जाएगा। हालांकि, विभागीय स्तर पर यदि किसी बिंदु पर व्यवहारिक दिक्कत आती है, तो शिक्षा विभाग या सरकार उस पर अंतिम निर्णय लेगी।
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निष्कर्ष
उत्तराखंड सरकार द्वारा तैयार की गई यह नई तबादला नियमावली न केवल शिक्षकों की स्थिति को अधिक व्यवस्थित बनाएगी, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर करने में भी सहायक होगी। परीक्षा परिणाम, सेवा क्षेत्र, संवर्ग परिवर्तन और तकनीकी पारदर्शिता जैसे प्रावधानों से यह व्यवस्था ज्यादा सशक्त नजर आ रही है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कैबिनेट की मंजूरी के
बाद यह नियमावली किस तरह से अमल में लाई जाती है।