उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर तैयारियां अब अंतिम दौर में हैं। राज्य सरकार ने पंचायतों में आरक्षण प्रक्रिया पूरी कर ली है और इससे जुड़े सभी आवश्यक दस्तावेज राज्य निर्वाचन आयोग को सौंप दिए हैं। अब पूरे प्रदेश की निगाहें आयोग की ओर टिकी हैं, जो जल्द ही पंचायत चुनाव की तारीखों की घोषणा कर सकता है।
आरक्षण प्रक्रिया पूरी, सरकार की बड़ी जिम्मेदारी निभाई
राज्य सरकार ने पंचायत चुनावों से पहले सबसे अहम प्रक्रिया — यानी पदों और स्थानों के आरक्षण निर्धारण — को समय पर पूरा कर लिया है। इस प्रक्रिया के तहत यह तय किया जाता है कि किस क्षेत्र में कौन-सा पद (प्रधान, बीडीसी, जिला पंचायत सदस्य आदि) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, महिलाओं या सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित रहेगा।
सरकार ने तय आरक्षण की सूची राज्य निर्वाचन आयोग को सौंप दी है, जिससे यह साफ हो गया है कि वह आगामी महीने में चुनाव करवाने के पक्ष में है। इस कदम से चुनावी तैयारियों को एक नई दिशा मिली है और सभी प्रशासनिक इकाइयों में हलचल तेज हो गई है।
हरिद्वार को छोड़ 12 जिलों में चुनाव तय
हालांकि हरिद्वार जिले में पंचायत चुनाव नहीं होंगे, लेकिन राज्य के बाकी 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की संभावना अब बेहद मजबूत हो गई है। हरिद्वार में पहले ही शहरी निकायों का गठन हो चुका है, जिस कारण वहां पंचायती राज व्यवस्था लागू नहीं है।
उत्तराखंड में पंचायती चुनाव तीन स्तरों पर होते हैं — ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत (ब्लॉक स्तर) और जिला पंचायत। इन तीनों स्तरों पर प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाता है, जो ग्रामीण विकास और स्थानीय प्रशासन की रीढ़ माने जाते हैं।
आयोग कर रहा कानूनी पहलुओं की समीक्षा
राज्य निर्वाचन आयोग इस समय चुनाव की अधिसूचना जारी करने से पहले कानूनी और प्रशासनिक पहलुओं की गहराई से समीक्षा कर रहा है। आयोग राज्य सरकार से लगातार संपर्क में है ताकि आरक्षण, परिसीमन, मतदान केंद्रों की तैयारी, सुरक्षा व्यवस्था और अन्य बिंदुओं पर स्पष्टता बनी रहे।
चुनाव आयोग की जिम्मेदारी केवल मतदान करवाना ही नहीं होती, बल्कि निष्पक्ष और शांतिपूर्ण माहौल सुनिश्चित करना भी उसकी प्राथमिकता होती है। इसलिए वह किसी भी तरह की जल्दबाज़ी से बचते हुए पूरे तंत्र को मजबूत आधार देना चाहता है।
हाईकोर्ट की सुनवाई पर भी नजरें टिकीं
एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि आरक्षण निर्धारण से जुड़ी एक याचिका हाईकोर्ट में विचाराधीन है, जिस पर 23 जून को सुनवाई होनी है। यह याचिका कुछ पंचायत क्षेत्रों में आरक्षण के आधार को लेकर दाखिल की गई है। ऐसे में आयोग और सरकार दोनों की निगाहें अदालत के फैसले पर हैं।
अगर अदालत से कोई दिशा-निर्देश आता है तो चुनाव कार्यक्रम में बदलाव की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। हालांकि प्रशासन का मानना है कि आरक्षण प्रक्रिया को विधिक रूप से सही तरीके से पूरा किया गया है, जिससे चुनाव समय पर कराना संभव होगा।
प्रशासनिक तैयारियां जोरों पर
राज्य के सभी जिलों में जिला प्रशासनिक इकाइयों ने भी अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन, ईवीएम की जांच, पोलिंग पार्टी का गठन, मतदान केंद्रों की पहचान और सुरक्षा की रूपरेखा जैसे काम तेजी से किए जा रहे हैं।
चुनाव आयोग की ओर से जल्द ही प्रशिक्षण सत्र भी आयोजित किए जाएंगे, जिसमें पोलिंग कर्मचारियों को पूरी प्रक्रिया की जानकारी दी जाएगी। इसके साथ ही महिलाओं, युवाओं और वरिष्ठ नागरिकों को मतदान के लिए जागरूक करने का अभियान भी चलाया जाएगा।
राजनीतिक सरगर्मियां भी तेज
जैसे-जैसे चुनाव की घोषणा करीब आ रही है, गांवों में राजनीतिक गतिविधियां भी तेज हो गई हैं। संभावित उम्मीदवारों ने जनसंपर्क शुरू कर दिया है। कई जगहों पर बैठकें हो रही हैं, स्थानीय मुद्दे उठाए जा रहे हैं और जातीय-सामाजिक समीकरणों की गणना शुरू हो गई है।
पंचायत चुनाव भले ही गैर-राजनीतिक कहे जाते हों, लेकिन इनमें राजनीतिक दलों का अप्रत्यक्ष प्रभाव रहता है। कई क्षेत्रीय दलों और सामाजिक संगठनों ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है।
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निष्कर्ष:
उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तैयारियां अब अंतिम दौर में हैं। सरकार ने अपनी ओर से जिम्मेदारी निभाते हुए आरक्षण निर्धारण की प्रक्रिया पूरी कर ली है और अब राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से तारीखों की घोषणा का इंतजार है। हालांकि 23 जून को होने वाली हाईकोर्ट की सुनवाई भी बेहद अहम होगी, जो आगे की दिशा तय कर सकती है। यदि सब कुछ सुचारू रूप से चलता रहा, तो अगले माह उत्तराखंड के 12 जिलों में पंचायत चुनाव का बिगुल बज जाएगा और गांव-गांव में लोकतंत्र की नई शुरुआत होगी।