चारधाम यात्रा के शुभारंभ के साथ ही उत्तराखंड के प्रमुख तीर्थ स्थलों—गंगोत्री और यमुनोत्री धाम—के आसपास नकली जड़ी-बूटियों और दुर्लभ वस्तुओं की अवैध बिक्री का सिलसिला तेज हो गया है। नकली कस्तूरी, शेर के पंजे, शिलाजीत, और विभिन्न प्रकार के रुद्राक्ष खुलेआम बेचे जा रहे हैं, लेकिन प्रशासन और वन विभाग की उदासीनता के चलते इन गतिविधियों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है।
चारधाम यात्रा के दौरान लाखों श्रद्धालु इन पवित्र स्थलों पर पहुंचते हैं। इस मौके का फायदा उठाते हुए कुछ लोग नकली उत्पादों को असली बताकर श्रद्धालुओं को भ्रमित कर रहे हैं। खासकर गंगोत्री, यमुनोत्री और जनपद मुख्यालयों के पास, मंदिर परिसरों, मुख्य पड़ावों और पार्किंग स्थलों पर ऐसे विक्रेताओं की भीड़ देखी जा सकती है। ये लोग अपने को उत्तराखंड या नेपाल का निवासी बताकर तीर्थयात्रियों को विश्वास में लेते हैं और फिर उन्हें महंगे दामों पर नकली जड़ी-बूटियां और वस्तुएं बेच देते हैं।
नकली कस्तूरी और शिलाजीत का छलावा
कस्तूरी, जिसे हिमालयी कस्तूरी मृग से प्राप्त किया जाता है, एक अत्यंत दुर्लभ और संरक्षित उत्पाद है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत कस्तूरी मृग को संरक्षित जीवों की श्रेणी में रखा गया है। बावजूद इसके, बाजारों में नकली कस्तूरी बेची जा रही है। इन नकली उत्पादों में इत्र मिलाकर उसे असली जैसा दिखाने की कोशिश की जाती है, और यात्रियों को बताया जाता है कि यह उच्च हिमालयी क्षेत्रों से लाया गया है।
शिलाजीत, जो एक प्राकृतिक औषधीय तत्व है और आयुर्वेद में बेहद मूल्यवान माना जाता है, उसे भी नेपाल या उच्च हिमालय से लाया गया बताकर बेचा जा रहा है। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, यह शिलाजीत असल में सस्ते रसायनों से तैयार की गई होती है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है।
रुद्राक्ष और धार्मिक वस्तुओं में भी धोखाधड़ी
एक मुखी से लेकर पंचमुखी रुद्राक्ष के नाम पर भी श्रद्धालुओं से धोखाधड़ी की जा रही है। रुद्राक्ष की असली पहचान करना आम व्यक्ति के लिए मुश्किल होता है, और इसी कमजोरी का फायदा उठाकर नकली रुद्राक्ष को अत्यंत पवित्र और दुर्लभ बताकर बेचा जा रहा है।
स्थानीय निवासी सतेंद्र सेमवाल बताते हैं कि इन व्यापारियों में से कई महाराष्ट्र, हैदराबाद, हरिद्वार आदि स्थानों से आते हैं और खुद को उत्तराखंड का स्थानीय निवासी बताकर भरोसा जीतते हैं। वहीं, शिलाजीत और अन्य सामग्रियों को नेपाल से लाया गया बताकर उनकी कीमतों को कई गुना बढ़ा दिया जाता है।
प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल
इन अवैध गतिविधियों के कारण न केवल प्रदेश की छवि को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि दुर्लभ वन्य जीवों, औषधीय पौधों और प्राकृतिक संसाधनों की अस्मिता भी खतरे में पड़ रही है। इसके बावजूद प्रशासन और वन विभाग की ओर से ठोस कार्रवाई न होना चिंता का विषय है।
वन विभाग के डीएफओ डीपी बलूनी का कहना है कि यह सच है कि कुछ लोग नकली सामान बेचते हैं और विभाग द्वारा समय-समय पर कार्रवाई की जाती है। हालांकि, स्थानीय लोगों का मानना है कि ये कार्रवाइयाँ पर्याप्त नहीं हैं और इनकी निरंतरता पर भी सवाल उठते हैं।
जन-जागरूकता और निगरानी की आवश्यकता
विशेषज्ञों का कहना है कि तीर्थयात्रियों को इन नकली उत्पादों से सावधान रहना चाहिए। किसी भी वस्तु को खरीदने से पहले उसकी प्रमाणिकता की जांच करना आवश्यक है। इसके अलावा, राज्य सरकार और वन विभाग को चाहिए कि वे तीर्थ स्थलों पर निगरानी बढ़ाएं, स्थायी चेक पोस्ट बनाएं और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें।
इस मुद्दे का समाधान केवल प्रशासनिक कदमों से नहीं होगा, बल्कि आम जनता की जागरूकता और सहभागिता से ही इन अवैध गतिविधियों
पर लगाम लगाई जा सकती है।