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Rampur Tiraha kand: साल 1994 का अक्टूबर महीना, उत्तराखंड आंदोलन अपने चरम पर था, राज्य आंदोलनकारी और उत्तराखंड वासी अलग राज्य प्राप्त करने के लिए एकजुट हो चुके थे।वे उस समय की मुलायम सरकार के समक्ष बिल्कुल भी झुकने को तैयार नही थे। मसूरी और खटीमा गोलीकांड के बाद से लोगों में सरकार के खिलाफ आक्रोश था और वे अब आंदोलन के लिए दिल्ली कूच कर रहे थे।लेकिन जब उत्तराखंड राज्य के निहत्ते आंदोलनकारी दिल्ली के लिए रवाना होते है और मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर पहुंचते है तभी कुछ ऐसा (Rampur Tiraha kand) होता है जिसने पूरे उत्तर प्रदेश के इतिहास को बदल दिया,जिसने तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को जनता का विलेन बना दिया और जिसने उत्तराखंड के लोगों के अंदर की आग को इतना भड़का दिया की उन्हौने उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड राज्य को अलग करके ही चैन की सास ली।

जानिए क्या था रामपुर तिराहा कांड (Rampur Tiraha kand)

बात है साल 1989 की उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों के लिए सरकारी नौकरियों में 15 प्रतिसत आरक्षण की व्यवस्था की गई थी लेकिन जब मंडल कमीशन लागू हुआ तो ये सीमा बढ़कर 27 प्रतिशत हो गयी। उतर प्रदेश के पहाड़ी इलाको और वर्तमान के उत्तराखंड में रह रहे लोगों को इससे लगने लगा की पहाड़ में नौकरियों में प्लेन्स के लोगों का कब्जा हो जाएगा। जिस कुमाऊं गढ़वाल के लोग जाने ही जाते है फौज और पुलिस की नौकरी के लिए वो भी उनसे छीन जाएंगी।इसी डर के कारण कुमाऊं गढ़वाल के लोग अलग पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की मांग करने लगे। आंदोलन कर रहे उत्तराखंड के लोगों के साथ तत्कालीन मुलायम सरकार ने जो बर्बरता दिखाई उसे देखकर लगता है कि मानों आंदोलन कारी अलग राज्य नही बल्कि अलग देश की मांग कर रहे हो।वैसे तो उत्तराखंड आंदोलन के दौरान 7 गोलीकांड हुए।लेकिन इसमें 2 अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर हुई घटना (Rampur Tiraha kand) गोलीकांड से कई गुना अधिक थी। दिल्ली प्रदर्शन करने जा रहे आंदोलनकारियों पर गोलियां और लाठियां चलाई गई,महिलाओं संग बलात्कार हुआ और आंदोलनकारियों संग वो सबकुछ हुआ जिसकी एक लोकतांत्रिक देश में कल्पना भी नही की जा सकती है।

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लल्लनटॉप से बात करते हुए एक आंदोलनकारी ने बताया की ” दिल्ली के लिए रवाना हुई दो सौ से ज्यादा बसें रामपुर तिराहे पर पहुंची थी। जितने जवान थे उससे कई ज्यादा लोग सादे कपड़ों में रामपुर तिराहे (Rampur Tiraha kand) पर मौजूद थे।फौज से छुट्टी आये लोग ,ट्रेड यूनियनों के लोग,महिलाएं सभी इस भीड़ में शामिल थे। जब पुलिस द्वारा लोगों को आगे बढ़ने से रोका गया तो पब्लिक भड़क गई और पत्थरबाजी शुरू कर दी। जिसके बाद आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज हुआ,गोलियां चलाई गई,महिलाओं के साथ अभद्रता आप सोच सकते है वो सब हुई।

रामपुर तिराहा कांड ( Rampur Tiraha kand ) की रात में पुलिस उस तरफ जाने वाली गाड़ियों में गोलियां और लाठियां बरसा रही थी,गाड़ियां भी जल दी गयी,वहां के यानी मुजफ्फरनगर के लोगों ने हमारी मदद की,रहने को जगह और खाना दिया।मुजफ्फरनगर के लोग अगर मदद नही करते तो मरने वालों की गिनती और अधिक होती।

लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि इतना कुछ हो जाने के बाद भी इस रामपुर तिराहा कांड (Rampur Tiraha kand) के आरोपियों पर आज तक सजा नही हो पाई है। जब (Rampur Tiraha kand) पर FIR दर्ज होती है तो उसमें बताया जाता है कि आंदोलनकारियों ने दुकानें और गाड़ियां जला दी जिसके बाद फायरिंग का आदेश देना पड़ा जिसमें 6 लोगों की जान गई वहीं 1995 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जब सीबीआई जांच का आदेश दिया तो तब 28 पुलिस वालों पर बदसलूकी डकैती हिंसा बलात्कार और महिलाओं के साथ सार्वजनिक रूप से अभद्रता का केस दर्ज हुआ।

इसके बाद मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव रिटायर्ड जस्टिस जहीर हसन से रामपुर तिराहा कांड (Rampur Tiraha kand) की जांच करवाते हैं और जांच में बड़ी ही सहजता से ये कह दिया जाता है कि मौके की नजाकत को देखते हुए बल प्रयोग किया गया जो कि बिल्कुल सही था रबर बुलेट फायर किए गए जिससे अनावश्यक रूप से प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई। उत्तराखंड राज्य बना तो उत्तराखंड हाइकोर्ट के द्वारा तत्कालीन मुजफ्फरनगर के डीएम अंनत कुमार सिंह को नामजद किया। दो पुलिस वालों को जनता पर गोली चलाने का दोषी मानते हुए 2 साल की सजा और एक को 7 साल की सजा सुनाई।

दुर्भाग्य देखिए कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों राजनीतिक पार्टियों इस कांड (Rampur Tiraha kand) पर चुनावी रोटियां तो सेकी लेकिन इस मामले में कभी गम्भीरता से जांच कराने की कोशिश नही की तभी मासूम जनता के हत्यारों को सजा नही मिल पाई।सजा तो छोड़िए बल्कि कई आरोपियों को प्रोमोशन दे दिया गया। राज्य आंदोलनकारी कहते है कि बीजेपी उत्तराखंड राज्य बनाने का श्रेय लेती है लेकिन इस कांड (Rampur Tiraha kand) के आरोपी डीएम को अपनी सरकार में निजी सचिव नियुक्त करती है।हवलदार से लेकर एसपी तक का कुछ भी नही बिगड़ा।

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आज उत्तराखंड को बने हुए 20 साल पूरे होने जा रहे है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि जिस उत्तराखंड राज्य को बनाने के लिए हमारे पूर्वजों ने, हमारे वीर आंदोलनकारियों ने अपनी जान तक कुर्बान करदी क्या वो उत्तराखंड आज उनके सपनों का उत्तराखंड बन रहा है। जिस रोजगार के लिए, जिन हकों हकूकों के लिए उत्तराखंड के लोगों ने आंदोलन शुरू कर दिया था क्या वो उत्तराखंड वासियों को मिल रहा है, क्या उत्तराखंड का विकास उस रफ्तार से हो रहा है जिसकी कल्पना राज्य बनते समय की गई थी।अगर आप इन सभी प्रश्नों का सकारात्मक उत्तर खोजने की कोशिश करेंगें तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी।क्योंकि राज्य बनने के दो दसक बाद भी उत्तराखंड का युवा रोजगार के लिए सड़कों पर है, उत्तराखंड के लोग रोजगार के लिए पलायन कर रहे है।उत्तराखंड में भ्र्ष्टाचार और भृष्टाचारी भी अच्छे से फल फूल रहे है।

अभी भी कई गांव ऐसे है जहां सड़क नही पहुंची,कई गांव ऐसे है जो स्वास्थ्य सेवाओं के कोसों दूर है। बाहर के लोग उत्तराखंड के जल जंगल जमीन पर अपना कब्जा जमा रहे है, पहाड़ के लोग ही खुद अपनी संस्कृति को गौड़ समझकर उसे पीछे छोड़ रहे है ।ऐसे में हम कैसे कहें कि हमारे उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के सपनो का उत्तराखंड बन रहा है। ऐसा नही है कि राज्य बनने के बाद यह सबकुछ बुरा ही हुआ,काम भी हुआ है लेकिन में वो आपको नही बता रहा हु क्योंकि काम जो होता है वो तो आपके नेता आपको बता ही देते है लेकिन क्या नही हुआ ये नही बताते और इसलिए हमारा यानी मीडिया का ये काम है कि जो आपसे यानी जनता से छिपाया जाता है उसे आपको बताएं।

तो ये थी Rampur Tiraha kand की कहानी,अच्छी लगी तो शेयर जरूर करें।

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