देहरादून: उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी एक बार फिर से विवादों के घेरे में आ गए हैं। उन पर बागवानी, जैविक खेती, विदेश दौरों और निर्माणाधीन सैन्य धाम के कार्यों में गड़बड़ी और अनियमितता के आरोप लगे हैं। इसके साथ ही, उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का मामला भी कोर्ट के संज्ञान में आया है। नैनीताल हाईकोर्ट ने मंत्री को 23 जुलाई तक अपना पक्ष रखने के निर्देश दिए हैं।
यह मामला गुरुवार को उच्च न्यायालय की एकल पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए प्रस्तुत किया गया। यह पीठ न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की थी, जो अपने सेवानिवृत्ति से पूर्व अंतिम कार्यदिवस पर इस महत्वपूर्ण याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। अदालत ने याचिकाकर्ता से भी इस संबंध में उत्तर देने को कहा है, और अगली सुनवाई की तिथि 23 जुलाई निर्धारित की गई है।
क्या हैं आरोप?
इस मामले की शुरुआत देहरादून निवासी और आरटीआई कार्यकर्ता विकेश सिंह द्वारा दायर की गई याचिका से हुई है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि गणेश जोशी ने अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए सरकारी धन का अनुचित तरीके से इस्तेमाल किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने आरोप लगाया कि मंत्री ने बागवानी और जैविक खेती से जुड़े सरकारी कार्यक्रमों के बहाने विदेश यात्राएं कीं, जो कि सरकारी निधि पर की गईं, लेकिन उनका कोई प्रत्यक्ष लाभ राज्य को नहीं मिला।
याचिका में यह भी कहा गया है कि देहरादून में निर्माणाधीन सैन्य धाम परियोजना में भी गंभीर अनियमितताएं हुई हैं। आरोप है कि कार्यों की लागत और गुणवत्ता के बीच भारी अंतर है, जिससे यह संदेह उत्पन्न होता है कि सार्वजनिक धन का दुरुपयोग हुआ है।
संपत्ति विवाद
याचिकाकर्ता ने अपने आरोपों में मंत्री की संपत्ति की भी जांच की मांग की है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव के दौरान मंत्री गणेश जोशी ने अपने नामांकन पत्र के साथ जो शपथपत्र दाखिल किया था, उसमें उनकी कुल संपत्ति नौ करोड़ रुपये दर्शाई गई थी। याचिकाकर्ता का दावा है कि मंत्री की घोषित संपत्ति और वास्तविक जीवनशैली में बड़ा अंतर है, जिससे यह प्रतीत होता है कि उनके पास आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति है।
कोर्ट का रुख
हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि मंत्री गणेश जोशी को 23 जुलाई तक अपने ऊपर लगे आरोपों पर विस्तृत जवाब दाखिल करना होगा। साथ ही, कोर्ट ने याचिकाकर्ता से भी मांगे गए बिंदुओं पर उत्तर देने को कहा है, ताकि मामले में निष्पक्ष निर्णय लिया जा सके।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अगली सुनवाई की तिथि 23 जुलाई को होगी और तब तक सभी पक्षों को अपना पक्ष स्पष्ट करना होगा। यह मामला राज्य सरकार और प्रशासन के लिए भी संवेदनशील माना जा रहा है, क्योंकि यह सीधे एक मौजूदा मंत्री की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर सवाल उठाता है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
फिलहाल इस मामले पर मंत्री गणेश जोशी की ओर से कोई औपचारिक बयान सामने नहीं आया है। लेकिन राजनीतिक हलकों में इस याचिका को लेकर हलचल जरूर है। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को सरकार की जवाबदेही से जोड़ते हुए कड़ी टिप्पणी की है। उनका कहना है कि यदि मंत्री दोषी पाए जाते हैं, तो सरकार को नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उचित कदम उठाने चाहिए।
वहीं, कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक बड़ा नैतिक और प्रशासनिक मुद्दा बन सकता है, खासकर तब जब मामला सार्वजनिक धन और सैनिक सम्मान जैसे संवेदनशील विषयों से जुड़ा हो।
आगे की राह
अब सभी की निगाहें 23 जुलाई पर टिकी हैं, जब मंत्री अपना पक्ष अदालत के समक्ष प्रस्तुत करेंगे। यदि कोर्ट को मंत्री के जवाब में संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं मिलता, तो यह मामला जांच एजेंसियों को भी सौंपा जा सकता है। ऐसे में मंत्री गणेश जोशी के राजनीतिक भविष्य पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है।
यह मामला एक बार फिर से यह प्रश्न उठाता है कि सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों की पारदर्शिता और जवाबदेही कितनी महत्वपूर्ण है। साथ ही यह भी कि जनप्रतिनिधियों की संपत्ति की जांच और घोषणाएं कितनी विश्व
सनीय और जांच योग्य होनी चाहिए।