Shivratri 2022 : देश मैं ही नहीं विदेशों में भी भगवान शिव के भक्त फैले हुए हैं और भगवान शिव के भक्तों के लिए शिवरात्रि का दिन सबसे बड़ा महा पर्व होता है और न सिर्फ शिव भक्तों के लिए बल्कि हिंदू धर्म को मानने वाले सभी लोगों के लिए शिवरात्रि ( Shivratri 2022 ) का व्रत और शिवरात्रि का दिन बेहद खास होता है शिव पुराण में कहा गया है कई अलग-अलग प्रकार के व्रत अलग-अलग प्रकार के दान कई प्रकार के यज्ञ तप और जाप भी शिवरात्रि ( Shivratri) के व्रत की समानता नहीं कर सकते हैं और अगर कोई मनुष्य अपना ही तो चाहता है तो उसे इस व्रत का अवश्य पालन करना चाहिए इस व्रत को रखने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है चलिए जानते हैं शिवरात्रि ( Shivratri 2022 ) के व्रत की कथा तथा इसकी पूजा की विधि।
शिवरात्रि 2022 कब है (Shivratri 2022)
हिन्दू वर्ष के अनुसार प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि ( Shivratri) और न सिर्फ शिव भक्तों के लिए बल्कि हिंदू धर्म को मानने वाले सभी लोगों के लिए शिवरात्रि ( Shivratri 2022 ) का व्रत होता है अगर बात करें अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार तो साल 2022 में शिवरात्रि ( Shivratri 2022 Date)1 मार्च को मनाई जाएगी।
शिवरात्रि में पूजा को विधि ( shivratri puja vidhi )
वैसे तो भगवान शिव का नाम ही भोलेनाथ है और अगर आप बिना किसी लाग लपेट के सच्चे मन से भी उनकी प्रार्थना करते हैं और व्रत रखते हैं तो भी वह आपसे प्रसन्न होकर आपकी मनोकामना पूर्ण करते हैं लेकिन अगर जो पुराणों में पूजा विधि बताई है उसके तहत आप भगवान शिव की पूजा करते हैं तो आपको और भी अच्छे परिणाम मिलते हैं चलिए जानते हैं शिव पुराण के अनुसार शिवरात्रि ( Shivratri) और न सिर्फ शिव भक्तों के लिए बल्कि हिंदू धर्म को मानने वाले सभी लोगों के लिए शिवरात्रि ( Shivratri) के दिन कैसे करनी चाहिए भगवान शिव की पूजा। शिव पुराण में बताया गया है कि लगातार 14 वर्षों तक अगर शिवरात्रि ( Shivratri) का व्रत रखा जाए तो आपको मनवांछित फल की प्राप्ति होती है शिवरात्रि के दिन सुबह उठकर नित्य कर्म करें और उसके बाद स्नान करके शिवाले जरूर जाएं और वहां विधि पूर्वक भगवान शिव की पूजा करें शिवरात्रि ( Shivratri) के दिन दिव्य कमंडल जरूर बनाना चाहिए दिव्य कमंडलके मध्य भाग में लिंगतोभद्र नाम का मंडल बनाएं और उसके भी अंदर सर्वतो भद्र नामक मंडल की रचना करें इसके बाद वस्त्र दक्षिणा फल के साथ प्रजापत्य नामक सोने या तांबे के कलश की स्थापना इस मंडप के मध्य में करें। भगवान शिव और पार्वती की एक स्वर्ण से बनी प्रतिमा अपने पास अवश्य रखें और जिस पुरुष ने व्रत रखा है वह इस प्रतिमा को पूजा स्थल पर स्थापित करें दक्षिण भाग में भगवान शिव की प्रतिमा को रखें तो वही वाम भाग में माता पार्वती की प्रतिमा को रखें और शिवरात्रि ( Shivratri) में पूरे भक्ति भाव से भगवान शिव का पूजन करें जिससे कि आपको अवश्य आपको मनवांछित फल की प्राप्ति होगी।
शिवरात्रि के व्रत की कथा ( shivratri story )
शिवरात्रि ( Shivratri) का व्रत रखने पर आपको किस प्रकार के लाभ होते हैं अगर आप इस बात का पता लगाना चाहते हैं तो आपको एक कहानी अवश्य पढ़नी चाहिए शिव पुराण मैं सूत जी ऋषि यों को इससे संबंधित एक कहानी सुनाते हैं वे बताते हैं कि प्राचीन समय में गुरुद्रुह नाम का एक भील हुआ करता था जो जंगल में रहता था का परिवार बहुत बड़ा था और वह बेहद क्रूर स्वभाव का भी था और हमेशा पॉप और क्रूरता पूर्वक कार्य किया करता था वह अपने और अपने परिवार की भूख मिटाने के लिए वन में जाकर हिरणों का शिकार किया करता था बचपन से जवान होने तक उसने कभी कोई शुभ कार्य नहीं किया था लेकिन एक शिवरात्रि ( Shivratri) के दिन उसने अनजाने में कुछ ऐसे काम किए जिससे उसके सारे पाप नष्ट हो गए और न सिर्फ नष्ट हो गए बल्कि भगवान शिव ने भी उसे दर्शन दिए।
क्या किया गुरुद्रुह ने की हो गए शिवजी के दर्शन
1 दिन शिवरात्रि ( Shivratri) थी क्योंकि गुरुद्रुह जंगल में रहा करता था तो उसे नहीं पता था कि आज शिवरात्रि है शिवरात्रि ( Shivratri) के दिन उसका पूरा परिवार भूखा था और वे उससे मांग कर रहे थे कि वह उनके लिए कुछ खाने को लाए भूख से पीड़ित उसकी पत्नी उस से गुहार लगा रही थी की हमें कुछ खाने को दो पत्नी की इस प्रकार की याचना से वह व्याकुल हो गया और अपना धनुष उठा कर जंगल की ओर चल दिया और हिरणों के शिकार के लिए जंगल में इधर उधर भटकने लगा सूर्यास्त हो गया था लेकिन उसे एक भी हिरण नहीं मिला था वह बड़ा दुखी होता है और कहता है कि अब मैं कहां जाऊं अगर मुझे आज कुछ नहीं मिला तो मेरे बच्चे भूखे मर जाएंगे मेरे माता-पिता का क्या होगा मेरी पत्नी का न जाने क्या हाल हुआ होगा इसलिए मुझे कुछ ना कुछ तो लेकर ही जाना होगा।
इतना सोचते सोचते वह एक जलाशय के करीब पहुंच जाता है और सोचता है कि कोई ना कोई जीव यहां पानी पीने के लिए जरूर आएगा और मैं उसी का वध करके अपने परिवार की भूख मिटा लूंगा वह पास के ही एक पेड़ की टहनी पर बैठ जाता है और किसी जानवर के आने का इंतजार करता है जिस पेड़ पर वह चढ़ा होता है वह बेल का पेड़ होता है और उसके ठीक नीचे एक शिवलिंग होता है रात का पहला पहर शुरू हो जाता है और उसके हाथ अभी तक कुछ नहीं लगा होता है लेकिन तभी वह एक हिरणी को आते हुए देखता है उसको आते देख कर गुरुद्रुह को बड़ा हर्ष होता है वह अपना धनुष उठाता है और उस पर बाण चढ़ाता है और जो ऐसा करता है तो उसके घड़केसे डीजे पूरा जल और बेलपत्र शिवलिंग पर गिर जाते हैं और इससे शिवरात्रि ( Shivratri) के दिन अनजाने में ही सही लेकिन वह पहले पहर की पूजा संपन्न कर लेता है और उसके इस अनजाने कार्य से ही उसके कहीं पाप नष्ट हो गए।
लेकिन जैसे ही हिरणी ने पेड़ की ओर देखा तो वह बहुत ही भयभीत हो गई उसने से प्रश्न किया क्या तुम मुझे सच सच बताओगे कि मेरे साथ क्या करने वाले हो। हिरणी की यह बात सुनकर गुरुद्रुह ने प्रत्युत्तर दिया और कहां कि मेरा परिवार भूखा है इसलिए मैं तुम्हारा व्रत करूंगा और तुम्हारे मांस से अपने परिवार की भूख मिटा लूंगा इन वचनों को कहते हुए भील ने अपने धनुष पर बाण भी चढ़ा लिया था अपनी मृत्यु को निकट देखकर पहले तो हिरणी भयभीत हो गई लेकिन फिर उसने थोड़ा विचार किया और बोली मेरे इस अनर्थ कारी शरीर के लिए इससे बड़े सुख की बात क्या होगी कि यह तुम्हारे परिवार की भूख मिटाएगा और इससे तुम्हें सुख की प्राप्ति होगी इससे अधिक पुण्य का कार्य कोई हो ही नहीं सकता इस उपकार से जो पुण्य मुझे प्राप्त होगा उसका वर्णन मैं 100 वर्षों में भी नहीं कर सकती लेकिन मेरी भी कुछ बच्चे हैं और वे अकेले हैं मैं उन्हें अपने पति और बहन को सौंप आती हूं वह कहती है कि तुम मेरी इस बात को झूठ मत मानो मैं तुम्हारे पास जरूर आऊंगी सच पर ही यह धरती टिकी हुई है।
लेकिन गुरुद्रुह हिरणी की बात मानने से इंकार कर देता है इसके बाद वह एक प्रयास और करती हैं वह कहती है कि मैं शपथ खाकर जाती हूं कि अपने घर जाकर अपने बच्चों को अपने स्वामी को सौंप कर मैं जरूर तुम्हारे पास आऊंगी और अगर नहीं आई तो मुझे वही पाप लगेगा जो एक ब्राह्मण को तीनों काल संध्या नहीं करने पर लगता है जो एक ब्राह्मण को वेद बेचने पर लगता है अगर कोई पत्नी पति की आज्ञा का उल्लंघन करें तो उसे जो पाप लगता है वही मुझे लगेगा जो व्यक्ति भगवान शिव को नहीं मानता और उन से अलग होकर रहता है जो धर्म को लगता है जो पाप करता है उन्हें जो पाप लगता है वही मुझे भी लगेगा।
हिरणी यह सब शपथ सुनकर गुरुद्रुह कुछ पल शांत रहा और फिर बोला चलो ठीक है तुम घर जाओ लेकिन वापस जरूर आना शिकारी की यह बात सुनकर हिरणी बहुत प्रसन्न होती है वह पानी पीती है और अपने बच्चों के पास वापस लौट जाती हैं अब रात का पहला पहर ऐसे ही बीत जाता है और हिरणी वापस नहीं आती है लेकिन इस बार उसकी दूसरी बहन आ जाती है वह भी जल पीने के लिए जाती है और शिकारी को बाण तानी हुए देखकर डर जाती है अब जब गुरुद्रुह धनुष पर बाण चढ़ाता है तो पहले की ही तरह भगवान शिव के शिवलिंग के ऊपर जल और बेलपत्र गिरते हैं इससे शिवरात्रि ( Shivratri) की रात्रि को वह शिकारी अनजाने में ही दूसरे पहर की पूजा भी कर लेता है अब अपनी बहन की ही तरह शिकारी को देखकर वह हिरणी भी डर जाती है और पूछती है कि तुम मेरे साथ क्या करने वाले हो तो शिकारी वही जवाब देता है जो उसने पहली बहन को दिया था।
शिकारी की बात सुनकर यह हिरणी भी कहती है कि मेरा यह स्वस्थ शरीर तुम लोगों के काम आएगा इससे बड़ा शुभ कार्य कुछ नहीं हो सकता अगर यह शरीर किसी परोपकार में काम नहीं आता तो यह व्यर्थ ही जाता और ऐसी ही कई बातें करते हुए वह गुरुद्रुह से निवेदन करती है कि वह एक बार वह अपने बच्चों को अपने स्वामी को सौंप आएगी तो उसके बाद वह उसका वध कर ले लेकिन इस बार शिकारी मानने को तैयार नहीं होता है वह कहता है कि मुझे तुम्हारी इन बातों पर विश्वास नहीं है इस पर वह हिरणी भगवान विष्णु की कसम खाती है और कहती है कि अगर मैं तुम्हारे पास लौट कर ना आऊं तुम मुझे वही पाप लगे जो वचन देकर पलट जाए जो वैदिक धर्म का उल्लंघन करें जो भगवान शिव की निंदा करें और भगवान विष्णु का भक्त हो जो अपने माता पिता का श्राद्ध ना करें और जो पुरुष अपनी विवाहिता स्त्री को छोड़कर किसी अन्य स्त्री के साथ जाए उसको लगता है। हिरणी कि यह सब बातें सुनकर इस बार फिर शिकारी का कठोर हो गई पसीज गया और उसने उसे घर जाने की इजाजत दे दी लेकिन साथ ही यह वचन भी लिया कि तुझे वापस आना होगा।
देखते ही देखते रात का दूसरा पहर भी बीत गया और यह हिरणी नहीं आई अब और शिकारी निराश हो गया और जैसे ही तीसरा पहर शुरू हुआ तो जलाशय के पास एक और हिरण हो गया हिरण को मारने के लिए जैसे ही शिकारी बाण धनुष पर लगाता है तो फिर पेड़ से जल और बेलपत्र गिरते हैं और शिवरात्रि ( Shivratri) की रात्रि में तीसरे पहर की भी पूजा हो जाती है अभी तक इस शिकारी के अधिकतर पाप नष्ट हो चुके थे अब इस बार भी जब हिरण शिकारी को देखता है तो वह डर जाता है वह पूछता है की कि तुम मेरे साथ क्या करने वाले हो तो वही जवाब देता है जो उसने पहले हिरणियों को दिए थे। शिकारी की यह बात सुनकर फिर से हिरण उसी प्रकार से बोलता है कि मैं धन्य हूं मेरा शरीर है आप लोगों की तृप्ति के काम आएगा अगर मैं कोई परोपकार नहीं करता तो मैं नरक जाने का अधिकारी होता मैं आपके पास जरूर आऊंगा लेकिन मुझे एक बार अवसर दें कि मैं अपने बच्चों को उनकी माता के पास छोड़ आऊं।
क्योंकि शिकारी अभी तक शिवरात्रि ( Shivratri) में तीन पहर की पूजा कर चुका था और उसके पाप नष्ट हो चुके थे और उसका हृदय शुद्ध हो गया था इसलिए वह इस हिरण को भी जाने की इजाजत दे देता है लेकिन वह इतना कहता है कि तुमसे पहले भी दो हिरणियां यहां आई थी और उन्होंने भी यही वादा किया था लेकिन वह वापस लौट कर नहीं आई यह सुनकर हिरण फिर से प्रतिज्ञा लेता है और अपनी प्रतिज्ञा को सच्ची बतलाता है वह कहता है कि अगर मैं तुम्हारे पास ना हो तो मुझे वही पाप लगे जो संध्याकाल में मैथून करने पर लगता है जो शिवरात्रि ( Shivratri) के दिन पूजन करने पर लगता है जो झूठी गवाही देने पर लगता है वही मुझे भी लगे। इसके बाद वो शिकारी उस हिरण को भी जाने देता है।
शिकारी की यह बात सुनकर हिरण अपने आश्रम लौटता है वहां पहले से उसकी पत्नी और पत्नी की बहन मौजूद होती है साथ में उनके बच्चे भी मौजूद होते हैं तीनों ने उन कहानियों को सुना जो सभी के साथ घटित हुई हैं तो हिरणी जो सबसे पहले शिकारी के पास पहुंची थी वह कहती है कि सबसे पहले मैं ही उसे वचन देकर आई थी इसलिए मैं चली जाती हूं वैसे भी बिना पिता के बालक कैसे रहेंगे इतने में छोटी बहन कहती है कि बहन में तुम्हारी सेविका हूं और तुम अपने स्वामी के साथ बच्चों को संभालो मैं शिकारी के पास चली जाती हूं तभी हिरण कहता है कि बिन माता के बालक कैसे जिएंगे अब दोनों यही रहे मैं उस शिकारी के पास जाता हूं तीनों ही विचार विमर्श करते हैं और फिर तय करते हैं कि हम तीनों ही उस शिकारी के पास जाएंगे और बच्चों को पड़ोसियों को सौंप जाएंगे वह ऐसा ही करते हैं वहां शिकारी उनका इंतजार कर रहा होता है अब जैसे ही वे तीनों शिकारी की ओर जाते हैं तो बच्चे भी उनके पीछे-पीछे जाने लगते हैं तीनों को एक साथ आते देखकर शिकारी पहले तो बहुत प्रसन्न होता है और धनुष बाण तैयार कर लेता है और इस वक्त भी बेलपत्र और जल शिवलिंग पर गिरता है और अनजाने में ही सही लेकिन वह शिकारी शिवरात्रि ( Shivratri) में चारों पहर की पूजा संपन्न कर चुका था और इतना करते ही वह शिकारी सभी पाप से मुक्त हो चुका था।
जैसे ही वे तीनों हिरण शिकारी के पास पहुंचते हैं वह कहते हैं कि बिना देर किए आप हमें धन्य कीजिए लेकिन शिव पूजा के प्रभाव से उस शिकारी को ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी थी उसके मन में आया कि यह पशु ज्ञान ना होने के बावजूद भी कितने आदरणीय है और कैसे पुण्य के कार्यों में लगे हुए हैं और मैंने क्या किया मनुष्य जन्म पाकर भी सिर्फ दूसरों को पीड़ा पहुंचाई उनका वध करके अपना भरण पोषण किया मैं अभी तक इतने पाप कर चुका हूं अब मुझे यह भी नहीं पता कि मेरा हश्र क्या होगा मुझे अपने इस जीवन पर एक कार है और ऐसा सोचते हुए वह उन तीनों हिरणों से कहता है कि आप जाइए तुम्हारा जीवन धन्य है।
शिकारी के इतना कहते ही भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं और वह अपने वास्तविक स्वरूप में उसे दर्शन देते हैं और बहुत ही प्रेम से उसके शरीर को छूते हुए उसे कहते हैं कि मैं तुम्हारे इस व्रत से प्रसन्न हूं तुम्हें जो भी वर चाहिए तुम मांग सकते हो वह कहता है कि भगवान आपके दर्शन प्राप्त करके मुझे सब कुछ मिल गया है अब मुझे किसी चीज की चाह नहीं है उसके इस भाव को देखकर भगवान शिव और अधिक प्रसन्न हो जाते हैं और उसे वरदान देते हुए शिकारी को श्रृंगवेरपुर की राजधानी में आश्रय देते हैं और कहते हैं कि बिना किसी बाधा के तुम्हारा वंश आगे बढ़ता रहेगा मनुष्य ही नहीं देवता भी तुम्हारी प्रशंसा करेंगे और आगे चलकर 1 दिन तुम्हारे घर भगवान श्रीराम आएंगे और भी तुम्हारे मित्र बनेंगे मेरी सेवा में लगे रहोगे और आगे चलकर तुम्हें भी मोक्ष की प्राप्ति होगी।
जहां भगवान शिव ने शिकारी को दर्शन दिए थे उस पर्वत का नाम व्यधेस्वर नाम से प्रसिद्ध है कहा जाता है कि यहां पूजा मात्र और दर्शन मात्र से ही आपको मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है आपको बता दें कि यहीं पर भगवान शिव के दर्शन करके वह हिरण भी मोक्ष को प्राप्त हो जाते है। इसलिए अगर आप भी शिवरात्रि ( Shivratri) के दिन भगवान शिव की पूजा पूरे भक्ति भाव से करते हैं तो आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और उसके साथ-साथ आप भी मोक्ष के भागी होते हैं।
Mahadev ki khaani : भगवान शिव और विष्णु में अंतर है या दोनों एक ही है।
तो ये थी शिवरात्रि ( Shivratri) की कथा आपको कैसी लगी जरूर बताइयेगा।