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Someshwar Uttarakhand : उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद स्थित सोमेश्वर क्षेत्र में बीते कुछ समय से वन्यजीवों की बढ़ती सक्रियता ने लोगों की नींद उड़ा दी है। खासकर बमनफल्या और नारनतोली गांव के निवासियों के लिए तेंदुआ अब आतंक का दूसरा नाम बन चुका है। एक सप्ताह के भीतर ही तेंदुआ चार मवेशियों को अपना निवाला बना चुका है, जिससे ग्रामीणों में दहशत का माहौल फैल गया है।

 

तेंदुए की बढ़ती सक्रियता

 

बमनफल्या और नारनतोली गांव, जो घने जंगलों के निकट बसे हुए हैं, वहां हाल के दिनों में तेंदुए की चहल-कदमी बढ़ती जा रही है। यह क्षेत्र पहले भी वन्यजीवों की गतिविधियों के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन इस बार स्थिति अधिक गंभीर नजर आ रही है। लगातार मवेशियों के शिकार की घटनाओं ने ग्रामीणों की चिंता को बढ़ा दिया है। लोग अब रात को ही नहीं, दिन में भी खेतों और बाहर जानवरों को छोड़ने से डर रहे हैं।

 

वन विभाग की तत्परता

 

घटनाओं की जानकारी मिलते ही वन विभाग सक्रिय हो गया। क्षेत्र के वन क्षेत्राधिकारी मनोज कुमार लोहनी ने बताया कि तेंदुए की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए इलाके में ट्रैप कैमरे लगाए गए हैं। ये कैमरे रात और दिन दोनों समय की गतिविधियों को रिकॉर्ड करते हैं, जिससे तेंदुए की पहचान, उसकी गतिविधियों का समय और स्थान तय किया जा सके।

 

इसके साथ ही वन विभाग की टीम गांव-गांव जाकर गश्त कर रही है ताकि किसी भी आपात स्थिति से निपटा जा सके। गश्ती दल में अनुभवी वनकर्मी और ट्रैकर शामिल किए गए हैं, जो तेंदुए के पदचिन्हों और उसकी चाल को समझ कर उसे पकड़ने की रणनीति तैयार करेंगे।

 

स्थानीय लोग और जनप्रतिनिधियों की सहभागिता

 

वन विभाग के साथ-साथ क्षेत्रीय लोग भी सुरक्षा को लेकर सजग हो गए हैं। गश्त में स्थानीय लोग जैसे मनमोहन सिंह बोरा, ललिता बिष्ट, रमेश कुमार, धीरेंद्र कुमार उप्रेती, और नीरज सिंह बिष्ट सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। इन लोगों ने ग्रामीणों को सतर्क रहने, बच्चों को अकेले बाहर न भेजने और मवेशियों को खुले में न छोड़ने की सलाह दी है।

 

ग्रामीणों में डर और आक्रोश

 

ग्रामीणों का कहना है कि यह पहला मौका नहीं है जब इस तरह की घटनाएं हुई हैं। बीते वर्षों में भी तेंदुआ कई बार मवेशियों को उठाकर ले जा चुका है, लेकिन इस बार उसकी हिम्मत ज्यादा बढ़ती दिख रही है। अब तेंदुआ आबादी वाले क्षेत्र में भी दिखाई देने लगा है।

 

एक स्थानीय किसान ने बताया, “हमारे पास खेती और पशुपालन ही आजीविका का साधन है। अगर मवेशी ही सुरक्षित नहीं रहेंगे, तो हम क्या खाएंगे?” इस तरह की घटनाएं उनके जीवन को असुरक्षित बना रही हैं।

 

सरकारी मदद की मांग

 

ग्रामीणों ने वन विभाग और जिला प्रशासन से मांग की है कि तेंदुए को जल्द से जल्द पकड़कर दूर जंगल में छोड़ा जाए या किसी वन्यजीव रेस्क्यू सेंटर में भेजा जाए। इसके अलावा जिन लोगों के मवेशी मारे गए हैं, उन्हें मुआवजा देने की भी मांग की गई है।

 

वन्यजीव संरक्षण बनाम मानव जीवन

 

यह घटना एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि क्या हम वन्यजीवों के संरक्षण के साथ मानव जीवन की सुरक्षा भी सुनिश्चित कर पा रहे हैं? जंगलों के कटने और इंसानी बस्तियों के बढ़ते विस्तार ने वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को सीमित कर दिया है। ऐसे में वे भोजन की तलाश में आबादी वाले इलाकों की ओर रुख कर रहे हैं।

 

यह न केवल मनुष्यों के लिए खतरनाक है, बल्कि जानवरों के लिए भी। जब वन्यजीव आबादी में प्रवेश करते हैं, तो कई बार उन्हें मारने की नौबत आ जाती है, जिससे वन्यजीव संरक्षण की भावना को भी ठेस पहुंचती है।

 

आगे की राह

 

वन विभाग की ओर से ट्रैप कैमरे और गश्ती दल तेंदुए की पहचान और गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही तेंदुए को पकड़ लिया जाएगा। लेकिन इसके साथ ही जरूरी है कि स्थायी समाधान की ओर भी ध्यान दिया जाए।

 

जैसे:

 

जंगलों के आसपास की बस्तियों में सोलर फेंसिंग या सेंसर आधारित अलार्म सिस्टम लगाया जाए।

 

गांवों के पास वन चौकी स्थापित की जाए जो तुरंत कार्रवाई कर सके।

 

वन्यजीवों के लिए जंगलों में प्राकृतिक आहार की व्यवस्था की जाए ताकि वे आबादी की ओर न आएं।

 

 

 

 

निष्कर्ष

 

सोमेश्वर के बमनफल्या और नारनतोली गांव में तेंदुए का आतंक सिर्फ एक क्षेत्रीय समस्या नहीं, बल्कि एक बड़ी पारिस्थितिक चुनौती का हिस्सा है। जब तक मानव और प्रकृति के बीच संतुलन नहीं बनेगा, ऐसी घटनाएं होती रहेंगी। वन विभाग और प्रशासन को मिलकर ऐसे उपाय करने होंगे, जिससे मानव जीवन भी सुर

क्षित रहे और वन्यजीवों का संरक्षण भी सुनिश्चित हो।

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