मानसून का मौसम जहां एक ओर राहत और हरियाली लेकर आता है, वहीं दूसरी ओर बीमारियों का खतरा भी काफी बढ़ा देता है। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय इलाकों में हो रही लगातार भारी बारिश ने नमी का स्तर इतना बढ़ा दिया है कि कई तरह के जीवाणु (बैक्टीरिया) और परजीवी (पैरासाइट्स) अधिक सक्रिय हो गए हैं। हाल के दिनों में राज्य के कई अस्पतालों में ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ी है, जिन्हें मस्तिष्क संक्रमण यानी ब्रेन इंफेक्शन की शिकायत है।

 

विशेषज्ञों का कहना है कि बारिश के इस मौसम में एक विशेष प्रकार का परजीवी बैक्टीरिया वातावरण में बहुत तेजी से फैल रहा है। यह न केवल हवा में मौजूद होता है, बल्कि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से भी दूसरे के शरीर में प्रवेश कर सकता है। एक बार जब यह शरीर में प्रवेश कर जाता है, तो यह रक्त प्रवाह के जरिए मस्तिष्क तक पहुंचकर वहां गंभीर संक्रमण फैला सकता है।

 

कैसे फैल रहा है संक्रमण?

 

डॉक्टरों के अनुसार यह परजीवी हवा, संपर्क, नाक और कान के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर सकता है। जब यह बैक्टीरिया मस्तिष्क तक पहुंचता है, तो यह व्यक्ति की चेतना, सोचने-समझने की क्षमता और संज्ञान को प्रभावित करता है।

 

शुरुआत में मरीज को सामान्य सिरदर्द, बुखार और उल्टी जैसे लक्षण दिखते हैं, लेकिन अगर समय पर इलाज न मिले, तो यह संक्रमण गंभीर रूप ले सकता है। रोगी की स्थिति इतनी बिगड़ सकती है कि उसे बेहोशी, भ्रम और न्यूरोलॉजिकल समस्याएं होने लगती हैं।

 

ट्यूबरकुलर मैनिन्जाइटिस के मामले बढ़े

 

देहरादून स्थित दून अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सकों ने बताया कि हाल ही में अस्पताल में हर दिन 7 से 8 मरीज ऐसे आ रहे हैं, जिनमें मस्तिष्क संक्रमण के लक्षण पाए जा रहे हैं। जांच के बाद इनमें से अधिकांश मामलों को ट्यूबरकुलर मैनिन्जाइटिस के रूप में पहचाना गया है।

 

यह बीमारी मुख्य रूप से टीबी के बैक्टीरिया मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के कारण होती है, जो मस्तिष्क की झिल्लियों (मेनिंजेस) में सूजन पैदा करता है। बारिश के दौरान यह बैक्टीरिया अधिक सक्रिय हो जाता है, और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को जल्दी अपना शिकार बनाता है।

 

पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक खतरा

 

हालांकि यह संक्रमण कहीं भी हो सकता है, लेकिन उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों से इसके अधिक मामले सामने आ रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि इन क्षेत्रों में लगातार अधिक बारिश, आर्द्रता, और सीमित स्वास्थ्य सुविधाएं इस बीमारी के तेजी से फैलाव में बड़ी भूमिका निभा रही हैं।

 

गांवों में कई बार कान या नाक के संक्रमण को लोग नजरअंदाज कर देते हैं, जो बाद में मस्तिष्क तक संक्रमण पहुंचाने का कारण बनता है। इसके अलावा, अस्वच्छ जल, सीलनयुक्त मकान और खुले में रहने वाले पशु भी इस बैक्टीरिया के वाहक बन सकते हैं।

 

बचाव के उपाय क्या हैं?

 

चिकित्सकों की मानें तो इससे बचाव के लिए सावधानी सबसे बड़ा हथियार है। नाक, कान और गले के किसी भी संक्रमण को हल्के में न लें। यदि लंबे समय से कान बह रहा है या बुखार और सिरदर्द लगातार बना हुआ है, तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।

 

इसके साथ ही बारिश के मौसम में खुद को और अपने घर को साफ-सुथरा रखें। नमी को दूर रखने की कोशिश करें, गीले कपड़े न पहनें और फंगस या सीलन वाली जगहों से दूर रहें।

 

क्या कहती हैं मेडिकल गाइडलाइन्स?

 

स्वास्थ्य विभाग ने भी इस मुद्दे पर सतर्कता बरतने की सलाह दी है। अस्पतालों को निर्देश दिए गए हैं कि मस्तिष्क संबंधी लक्षणों के साथ आने वाले हर मरीज की गंभीरता से जांच करें और तुरंत इलाज शुरू किया जाए। इसके अलावा, आम जनता को भी जानकारी दी जा रही है कि वे किसी भी तरह के न्यूरोलॉजिकल लक्षण को नजरअंदाज न करें।

 

किन लोगों को ज्यादा खतरा?

 

बच्चों और बुजुर्गों को

 

टीबी से पहले ग्रसित रह चुके लोगों को

 

कमजोर इम्युनिटी वाले व्यक्तियों को

 

लंबे समय से कान या साइनस की बीमारी वाले रोगियों को

 

 

निष्कर्ष

 

मानसून सिर्फ पानी की बौछार ही नहीं लाता, बल्कि अपने साथ कई संक्रमणों को भी लेकर आता है। मस्तिष्क संक्रमण जैसे गंभीर रोग, अगर समय रहते पहचाने न जाएं, तो जानलेवा साबित हो सकते हैं। ऐसे में हर व्यक्ति की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने स्वास्थ्य को लेकर सजग रहे, साफ-सफाई बनाए रखे और किसी भी लक्षण को हल्के में न ले।

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