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Uttarakhand Dehradun : उत्तराखंड के वन क्षेत्रों के संरक्षण और विकास के लिए इस वर्ष एक बड़ी उपलब्धि सामने आई है। केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए राज्य सरकार की ओर से भेजी गई कैंपा (CAMPA) की 439.50 करोड़ रुपये की वार्षिक कार्ययोजना को शत-प्रतिशत मंजूरी दे दी है। यह पहली बार है जब राज्य की योजना को बिना किसी संशोधन के पूरी तरह से स्वीकार कर लिया गया है।

 

इस योजना को मंजूरी मिलने से राज्य के वन क्षेत्रों में हरित आवरण बढ़ाने, जैव विविधता के संरक्षण, जल स्रोतों के विकास और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने जैसे कई महत्वपूर्ण प्रयासों को मजबूती मिलेगी।

 

 

 

क्या है कैंपा योजना?

 

कैंपा (Compensatory Afforestation Fund Management and Planning Authority) एक राष्ट्रीय स्तर की योजना है, जिसका उद्देश्य उन वनों की भरपाई करना है जो विकास परियोजनाओं के लिए काटे जाते हैं। इसके तहत केंद्र और राज्य स्तर पर जमा होने वाली धनराशि का उपयोग वृक्षारोपण, वन सुधार, जैव विविधता संरक्षण, जल स्रोतों की देखरेख, और वन्यजीव-मानव संघर्ष को कम करने जैसे कार्यों में किया जाता है।

 

 

 

एक ऐतिहासिक मंजूरी

 

हाल ही में दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय कैंपा की कार्यकारी समिति की बैठक में उत्तराखंड सरकार द्वारा प्रस्तुत 439.50 करोड़ रुपये की योजना को सभी मानकों पर उत्तीर्ण पाया गया। समिति ने इसे पूरी तरह स्वीकृति दी, जो अपने आप में राज्य के लिए एक बड़ा मानदंड स्थापित करता है।

 

इससे पहले मई माह में पहले चरण के तहत 235.30 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत होकर राज्य को प्राप्त हो चुकी है, जिसे तुरंत वन विभाग को सौंप दिया गया था। अब शेष योजना भी पूरी तरह से स्वीकृत हो गई है।

 

 

 

मुख्यमंत्री और वन मंत्री ने जताया आभार

 

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मंजूरी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह निर्णय उत्तराखंड के पर्यावरणीय संरक्षण के लिए मील का पत्थर साबित होगा। इससे राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में वन विस्तार, भूमि सुधार और जल संरक्षण की दिशा में चल रहे प्रयासों को नया बल मिलेगा।

 

राज्य के वन मंत्री सुबोध उनियाल ने भी इस उपलब्धि के लिए वन विभाग और कैंपा टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा कि अब विभाग की जिम्मेदारी बनती है कि इस राशि का समयबद्ध और गुणवत्तापूर्ण तरीके से उपयोग हो। मंत्री ने उम्मीद जताई कि सभी योजनाएं निर्धारित समय-सीमा के भीतर पूर्ण की जाएंगी।

 

 

 

राज्य के लिए क्यों अहम है यह स्वीकृति?

 

उत्तराखंड के प्रमुख वन संरक्षक और कैंपा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. समीर सिन्हा ने बताया कि यह पहली बार है जब राज्य द्वारा भेजी गई योजना को बिना किसी बदलाव के पूरी तरह स्वीकृति मिली है। इससे पहले वर्ष 2023-24 में 424.46 करोड़ रुपये की मांग के मुकाबले 383.25 करोड़ रुपये तथा 2024-25 में 408 करोड़ रुपये के मुकाबले 369.25 करोड़ रुपये ही स्वीकृत हुए थे।

 

इस वर्ष की पूरी मंजूरी से स्पष्ट है कि राज्य सरकार की योजना, कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर केंद्र सरकार का भरोसा मजबूत हुआ है।

 

 

 

किन कार्यों पर खर्च होगी यह राशि?

 

इस योजना के तहत निम्नलिखित क्षेत्रों में विशेष कार्य किए जाएंगे:

 

वृक्षारोपण और वनीकरण: उन क्षेत्रों में जहां जंगल नष्ट हो चुके हैं या वन क्षेत्र कमजोर है, वहां बड़े पैमाने पर पौधरोपण किया जाएगा।

 

वन सुधार और संरक्षण: पुराने और क्षतिग्रस्त वन क्षेत्रों को फिर से विकसित किया जाएगा।

 

जैव विविधता संरक्षण: वन्य प्राणियों, पौधों और पारिस्थितिक तंत्र को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी उपाय किए जाएंगे।

 

मानव-वन्यजीव संघर्ष कम करना: पहाड़ी क्षेत्रों में अक्सर जंगली जानवरों और ग्रामीणों के बीच संघर्ष की स्थिति बनती है। इसके समाधान के लिए बाड़बंदी, निगरानी तंत्र और राहत उपायों पर जोर दिया जाएगा।

 

जल स्रोतों का संरक्षण: वनों से निकलने वाले जलस्रोतों और झरनों की मरम्मत और संरक्षण पर कार्य होगा।

 

स्थानीय सहभागिता और रोजगार: ग्रामीण क्षेत्रों में वन संरक्षण के कार्यों में स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी, जिससे उन्हें रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे।

 

 

 

 

निष्कर्ष

 

उत्तराखंड को कैंपा योजना के तहत मिली 439.50 करोड़ रुपये की यह मंजूरी न केवल राज्य के वन क्षेत्रों के लिए वरदान साबित होगी, बल्कि इसके माध्यम से पर्यावरणीय संतुलन, ग्रामीण विकास और जैविक विविधता को भी मजबूती मिलेगी। यह राज्य सरकार की योजनाबद्ध और पारदर्शी कार्यप्रणाली का परिणाम है कि पहली बार इतनी बड़ी राशि को बिना किसी आपत्ति के स्वीकृति मिली है।

 

अब निगाहें इस बात पर होंगी कि विभाग इस राशि का उपयोग कितनी प्रभावी और ईमानदा

री से करता है, ताकि पहाड़ों का हरा स्वभाव हमेशा सुरक्षित रह सके।

 

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