देहरादून। उत्तराखंड में कचरे के ढेर लगातार बढ़ते जा रहे हैं। प्रदेश की 50 से अधिक डंपिंग साइटों पर लगभग 22.85 लाख मीट्रिक टन पुराना कचरा जमा है, लेकिन अब तक केवल 6.17 लाख मीट्रिक टन (करीब 27%) का ही निस्तारण किया जा सका है। इस स्थिति पर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण और स्वच्छ भारत मिशन दोनों चिंता जता चुके हैं।

 

देहरादून और हरिद्वार सबसे बड़ी चुनौती

 

राज्य की सबसे गंभीर स्थिति देहरादून और हरिद्वार की है। राज्य की कुल आबादी का केवल 11% इन दोनों जिलों में रहता है, लेकिन यहां से निकलने वाला कचरा प्रदेश के कुल अनिस्तारित कचरे का लगभग 81% है।

 

देहरादून – 7.14 लाख मीट्रिक टन

 

हरिद्वार – 3.30 लाख मीट्रिक टन

 

 

अल्मोड़ा में काम शुरू ही नहीं

 

अल्मोड़ा जिले में पुराने कचरे के निस्तारण का कार्य अब तक शुरू नहीं हो पाया है। यहां पूरा कचरा डंपसाइटों पर पड़ा हुआ है, जिससे पर्यावरण और स्थानीय स्वास्थ्य दोनों पर खतरा बढ़ गया है।

 

कुछ जिलों ने बेहतर प्रदर्शन किया

 

सभी जगह हालात खराब नहीं हैं। रिपोर्ट के अनुसार:

 

चमोली – 90% निस्तारण

 

रुद्रप्रयाग – 100%

 

ऊधम सिंह नगर – 93%

 

नैनीताल – 61%

 

 

विभिन्न जिलों में कचरे का आंकड़ा (मीट्रिक टन में)

 

टिहरी – 14,308

 

अल्मोड़ा – 21,636

 

बागेश्वर – 20,650

 

चंपावत – 26,608

 

नैनीताल – 79,500

 

पिथौरागढ़ – 39,508

 

 

पर्यावरण और स्वास्थ्य पर असर

 

अनिस्तारित कचरा सिर्फ जगह नहीं घेर रहा, बल्कि कई खतरनाक परिणाम पैदा कर रहा है।

 

ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से जलवायु संकट गहराता जा रहा है।

 

लीचेट में मौजूद रसायन नदियों और झीलों को प्रदूषित कर जलीय जीवन पर असर डाल रहे हैं।

 

कचरे से पनपने वाले कीट और जीवाणु संक्रामक बीमारियों को जन्म देते हैं।

 

शहरों में श्वसन संबंधी रोग बढ़ रहे हैं।

 

जंगलों और वन्यजीवों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

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