उत्तराखंड के 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तैयारियां तेज हो गई हैं। हरिद्वार को छोड़कर शेष सभी जिलों में चुनावी प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए पंचायत सीटों के आरक्षण संबंधी प्रस्तावों का अनंतिम प्रकाशन कर दिया गया है। अब इन प्रस्तावों पर प्राप्त आपत्तियों का निस्तारण शुरू हो गया है, जिसकी सुनवाई 16 और 17 जून को जिला स्तरीय अधिकारियों द्वारा की जा रही है। इसके बाद 18 जून को संशोधित और अंतिम आरक्षण सूची का प्रकाशन किया जाएगा।

 

हरिद्वार को क्यों छोड़ा गया?

 

हरिद्वार जिला अलग श्रेणी में आता है क्योंकि वहां पंचायतों का कार्यकाल अलग है। इसलिए इस बार की त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव प्रक्रिया में हरिद्वार शामिल नहीं है। बाकी 12 जिलों — जैसे देहरादून, टिहरी, पौड़ी, चमोली, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ आदि — में चुनावी तैयारियां जोरों पर हैं।

 

3000 से अधिक आपत्तियां दर्ज, बढ़ा ग्रामीणों में असंतोष

 

राज्य भर से पंचायत आरक्षण व्यवस्था पर 3000 से भी अधिक आपत्तियां आई हैं। अधिकतर आपत्तियां इस बात को लेकर हैं कि कई ग्राम पंचायतों को लगातार दूसरी बार भी एक ही श्रेणी के अंतर्गत आरक्षित कर दिया गया है, खासकर महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों को लेकर ग्रामीणों में असंतोष देखने को मिला है।

 

कुछ ग्रामीणों ने यह भी मांग की है कि जो सीटें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित हैं, उन्हें इस बार सामान्य वर्ग के लिए खोला जाए। वहीं, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लोगों ने भी कई पंचायतों में OBC आरक्षण लागू करने की मांग उठाई है।

 

विभागीय सफाई: आरक्षण शासनादेश के अनुरूप

 

इस संबंध में विभागीय अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि पंचायतों का आरक्षण राज्य सरकार द्वारा जारी शासनादेशों और तय मानकों के अनुसार किया गया है। प्राप्त सभी आपत्तियों की निष्पक्षता के साथ जांच की जाएगी और जहां जरूरी होगा, वहां आवश्यक संशोधन किए जाएंगे। अधिकारी यह भी कह रहे हैं कि पूर्व के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए किसी भी प्रकार की अनियमितता नहीं बरती जाएगी।

 

जिलावार आपत्तियों की स्थिति

 

सबसे अधिक आपत्तियां ऊधमसिंह नगर जिले से आई हैं, जहां से कुल 800 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए हैं। इसके बाद उत्तरकाशी (383), पौड़ी (354), चंपावत (337), देहरादून (302), टिहरी (297), अल्मोड़ा (294), पिथौरागढ़ (277), चमोली (213), और रुद्रप्रयाग (90) से भी आपत्तियां दर्ज की गई हैं।

 

प्रशासन की दो दिन की सुनवाई प्रक्रिया

 

इन हजारों आपत्तियों की सुनवाई जिलाधिकारियों की अध्यक्षता में 16 और 17 जून को की जा रही है। हर जिले में संबंधित अधिकारियों ने आपत्तियां दर्ज करने वाले व्यक्तियों को बुलाकर व्यक्तिगत रूप से पक्ष रखने का अवसर दिया है। अधिकारी दस्तावेजों की समीक्षा कर यह तय करेंगे कि कौन-सी आपत्तियां सही हैं और किनका निस्तारण करना आवश्यक नहीं है।

 

18 जून: आरक्षण प्रस्ताव का अंतिम प्रकाशन

 

तमाम सुनवाई प्रक्रिया के बाद 18 जून को पंचायत सीटों के आरक्षण का अंतिम और संशोधित प्रकाशन कर दिया जाएगा। यह सूची तय करेगी कि किन पंचायतों में किस वर्ग — जैसे महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी या सामान्य — को प्रतिनिधित्व मिलेगा।

 

इसके बाद क्या?

 

18 जून को आरक्षण की अंतिम सूची प्रकाशित होते ही राज्य निर्वाचन आयोग पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी करने की तैयारी करेगा। अधिसूचना के जारी होते ही नामांकन प्रक्रिया शुरू हो जाएगी और ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के लिए नामांकन दाखिल किए जा सकेंगे।

 

निष्कर्ष

 

उत्तराखंड में पंचायत चुनाव न केवल स्थानीय लोकतंत्र की बुनियाद हैं, बल्कि यह प्रक्रिया ग्रामीण क्षेत्रों के विकास की दिशा तय करती है। आरक्षण व्यवस्था को लेकर लोगों की चिंताएं जायज हो सकती हैं, लेकिन प्रशासन ने विश्वास दिलाया है कि सभी आपत्तियों का निष्पक्ष निस्तारण किया जाएगा। अब सभी की नजरें 18 जून पर टिकी हैं, जब अंतिम सूची आएगी और चुनावी प्रक्रिया को औपचारिक रूप से गति मिलेगी।

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