देहरादून। उत्तराखंड में विवाह और लिव-इन संबंधों से जुड़े नियम अब और कड़े कर दिए गए हैं। विधानसभा में पेश किए गए समान नागरिक संहिता (संशोधन) विधेयक के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति शादी के समय अपनी पहचान छिपाता है या झूठ बोलकर धोखा देता है, तो ऐसी शादी अमान्य मानी जाएगी।

 

लिव-इन संबंधों को लेकर भी सख्ती बरती गई है। यदि कोई नाबालिग के साथ लिव-इन में रहता है, तो उसे छह माह तक की सजा और 50 हजार रुपये तक का जुर्माना भरना होगा। वहीं, बल, दबाव या धोखे से बनाए गए विवाह या लिव-इन संबंधों पर सात साल तक की सजा और जुर्माना तय किया गया है। नियमों के उल्लंघन पर वसूला जाने वाला जुर्माना भू-राजस्व की बकाया राशि की तरह वसूला जाएगा।

 

नए संशोधन में यह भी जोड़ा गया है कि लिव-इन संबंध समाप्त होने पर उसका प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा। साथ ही, नवविवाहित जोड़ों को विवाह पंजीकरण के लिए एक वर्ष तक का समय दिया जाएगा। विधेयक में कानूनी भाषा को भी सरल किया गया है—जैसे “सीपीसी” की जगह “भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता” और “दंड” की जगह “जुर्माना” शब्द का प्रयोग किया जाएगा।

 

पद और नियुक्ति से जुड़े नियमों में बदलाव कर अब अपर सचिव स्तर के अधिकारी को भी रजिस्ट्रार जनरल बनाने का प्रावधान किया गया है। झूठे या फर्जी दस्तावेजों पर भारतीय न्याय संहिता के तहत कार्रवाई की जाएगी।

 

तलाक के प्रावधानों में भी संशोधन हुआ है। अब यदि पति विवाह के बाद रेप, मृत यौनाचार या पशु विकृति जैसे अपराध करता है, तो पत्नी इसे तलाक का आधार बना सकती है। नाबालिग से विवाह “बाल विवाह निषेध अधिनियम” के तहत अपराध माना जाएगा, और पति-पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह करना भी दंडनीय अपराध होगा।

 

संशोधित विधेयक में दो नई धाराएं जोड़ी गई हैं—इसके तहत विवाह, लिव-इन और उत्तराधिकार संबंधी पंजीकरण को रद्द करने का अधिकार अब रजिस्ट्रार जनरल को होगा। साथ ही, नियमों के उल्लंघन पर लगने वाले जुर्माने की वसूली भी भू-राजस्व की बकाया वसूली की

तरह होगी।

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