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Uttarakhand :उत्तराखंड में होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर राज्य सरकार ने आरक्षण का फार्मूला तय कर दिया है। इस फैसले के तहत विभिन्न वर्गों को प्रतिनिधित्व देने के उद्देश्य से आरक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है।

 

राज्य सरकार के नए प्रावधानों के अनुसार, जिला पंचायत अध्यक्ष के कुल 13 पदों में से:

 

अनुसूचित जाति (SC) के लिए 2 पद

 

अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 2 पद आरक्षित रहेंगे।

 

 

हालांकि, अनुसूचित जनजाति (ST) को आरक्षण नहीं दिया गया है, जिसका प्रमुख कारण राज्य में ST वर्ग की जनसंख्या का कम होना बताया गया है।

 

यह आरक्षण प्रणाली हरिद्वार जिले को छोड़कर राज्य के बाकी 12 जिलों में लागू की जाएगी। हरिद्वार को इस आरक्षण योजना से बाहर रखा गया है, संभवतः जनसंख्या और प्रशासनिक संरचना के कारण।

 

 

 

आरक्षण की विस्तृत सूची (प्रस्तावित वर्गीकरण के अनुसार):

 

अनुसूचित जाति (SC)

 

अन्य पिछड़ा वर्ग – महिला (OBC महिला)

 

अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)

 

महिला – सामान्य वर्ग

 

 

यह आरक्षण प्रणाली सुनिश्चित करेगी कि सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के साथ-साथ महिलाओं को भी पंचायत स्तर पर प्रतिनिधित्व मिले और प्रशासनिक निर्णयों में उनकी भागीदारी हो।

 

 

 

त्रिस्तरीय पंचायत संरचना और जिम्मेदार अधिकारी

 

राज्य सरकार ने पंचायत चुनावों के सुचारु संचालन के लिए प्रशासनिक जिम्मेदारियों का वितरण भी स्पष्ट कर दिया है। तीन स्तर की पंचायतों – जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत और ग्राम पंचायत – के लिए अलग-अलग अधिकारियों को नियुक्त किया गया है:

 

1. जिला पंचायत

 

उत्तरदायी अधिकारी: जिलाधिकारी (District Magistrate)

 

इनका दायित्व होगा कि वे जिला पंचायत चुनाव की संपूर्ण प्रक्रिया की निगरानी करें और सुनिश्चित करें कि सभी प्रावधानों का पालन हो।

 

 

2. क्षेत्र पंचायत

 

उत्तरदायी अधिकारी: उप जिलाधिकारी (Sub-Divisional Magistrate – SDM)

 

एसडीएम स्तर पर चुनाव की तैयारी, मतदाता सूची, नामांकन प्रक्रिया और निष्पक्ष चुनाव संपन्न करवाना प्रमुख दायित्व होगा।

 

 

3. ग्राम पंचायत

 

उत्तरदायी अधिकारी: सहायक खंड विकास अधिकारी (ABDO)

 

यह अधिकारी ग्राम पंचायत चुनाव के संचालन, मतगणना, और रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी संभालेंगे।

 

 

 

 

निष्कर्ष:

 

राज्य सरकार का यह प्रयास पंचायत चुनावों को पारदर्शी, समावेशी और सुव्यवस्थित बनाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा सकता है। आरक्षण नीति के माध्यम से समाज के हाशिए पर खड़े वर्गों को आगे लाने की कोशिश की जा रही है, वहीं प्रशासनिक स्तर पर स्पष्ट जिम्मेदारियों का निर्धारण चुनावों की पारदर्शिता और प्रभावशीलता को मजबूत करेगा।

 

हालांकि अनुसूचित जनजाति (ST) को आरक्षण से वंचित रखा जाना एक संवेदनशील विषय बन सकता है, लेकिन इसके पीछे जनसंख्या का तर्क दिया गया है।

 

अब देखना यह होगा कि यह आरक्षण प्रणाली और प्रशासनिक तैयारियां राज्य के पंचायत चुनावों को किस हद तक निष्पक्ष और सफल बनाती हैं।

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