देहरादून: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज देहरादून में आयोजित एक विशेष कार्यशाला में कहा कि प्राकृतिक आपदाओं को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता, लेकिन समय रहते उचित तैयारी करके उनके प्रभाव को जरूर कम किया जा सकता है। यह कार्यशाला उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) की ओर से आयोजित की गई थी, जिसका उद्देश्य मानसून से पहले सभी संबंधित विभागों को आपदा प्रबंधन की दिशा में सजग और सक्षम बनाना था।
मुख्यमंत्री धामी ने अपने संबोधन में कहा, “हम आपदाओं को पूरी तरह से नियंत्रित नहीं कर सकते, लेकिन यह हमारे हाथ में है कि हम उनकी तीव्रता और असर को कैसे कम करें। इसके लिए ज़रूरी है कि हम पहले से ही सभी जरूरी तैयारियाँ कर लें।” उन्होंने बताया कि प्रशासन के सभी विभाग इस दिशा में गंभीरता से कार्य कर रहे हैं और मानसून से पहले हर स्तर पर तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
कार्यशाला का उद्देश्य और महत्व
यह कार्यशाला विशेष रूप से राज्य में आने वाले मानसून और उससे जुड़ी संभावित आपदाओं को ध्यान में रखकर आयोजित की गई थी। पहाड़ी राज्य होने के कारण उत्तराखंड में हर साल भूस्खलन, बादल फटने, बाढ़ और भूकंप जैसी आपदाएं सामान्य बात हैं। ऐसे में समय रहते चेतावनी प्रणाली, राहत और बचाव कार्य, तथा सामुदायिक जागरूकता को मजबूत करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
कार्यशाला में आपदा प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की गई। इसमें राहत कार्यों की गति, संसाधनों की उपलब्धता, विभागों के बीच समन्वय और ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में जागरूकता अभियान जैसी कई ज़रूरी बातों पर ध्यान दिया गया।
सीएम धामी की अपील
सीएम धामी ने कहा कि आपदा प्रबंधन केवल प्रशासन या सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह सामूहिक प्रयास से ही संभव है। उन्होंने आम नागरिकों से अपील की कि वे भी जागरूक रहें और किसी भी आपदा की स्थिति में घबराने के बजाय सूझ-बूझ से काम लें।
उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा चेतावनी तंत्र को और मजबूत किया जा रहा है, ताकि किसी भी आपदा के आने से पहले लोगों को सतर्क किया जा सके। इसके अलावा, राहत व बचाव दलों को प्रशिक्षित किया जा रहा है और आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित किया जा रहा है।
राज्य सरकार की तैयारियां
मुख्यमंत्री ने जानकारी दी कि राज्य सरकार ने आपदा से निपटने के लिए एक विस्तृत कार्य योजना तैयार की है। इसके तहत प्रत्येक जिले में कंट्रोल रूम स्थापित किए जा रहे हैं, जो चौबीसों घंटे सक्रिय रहेंगे। साथ ही, हेलीकॉप्टर, बचाव दल, डॉक्टरों की टीम और जरूरी दवाइयों की व्यवस्था पहले से ही सुनिश्चित की जा रही है।
उन्होंने बताया कि जल संसाधन, वन विभाग, स्वास्थ्य विभाग, पुलिस और जिला प्रशासन – सभी संबंधित विभागों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि वे अपने-अपने क्षेत्र में समन्वय बनाकर कार्य करें। खासकर उन इलाकों में विशेष सतर्कता बरती जा रही है, जो भूस्खलन और बाढ़ की दृष्टि से संवेदनशील माने जाते हैं।
तकनीक का उपयोग
धामी ने यह भी बताया कि अब आपदा प्रबंधन में तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाया जा रहा है। सैटेलाइट आधारित चेतावनी तंत्र, मोबाइल अलर्ट सिस्टम, ड्रोन से निगरानी और जीआईएस मैपिंग जैसे आधुनिक तकनीकी उपायों को राज्य में लागू किया जा रहा है। इससे राहत कार्य और अधिक प्रभावी हो पाएंगे।
समुदाय की भागीदारी
कार्यशाला में यह भी विशेष रूप से चर्चा हुई कि आपदाओं के समय स्थानीय समुदाय की भागीदारी कैसे सुनिश्चित की जाए। स्वयंसेवी संस्थाएं, एनसीसी, एनएसएस, स्काउट-गाइड और गांवों में कार्यरत महिला मंगल दल जैसी स्थानीय इकाइयों को प्रशिक्षण देकर आपदा प्रबंधन का हिस्सा बनाया जाएगा।
निष्कर्ष और आगे की कार्रवाई
मुख्यमंत्री ने बताया कि कार्यशाला में उठाए गए सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर निष्कर्ष निकालने के बाद उन्हें लागू किया जाएगा। राज्य सरकार इस पर सख्ती से काम करेगी ताकि भविष्य में किसी भी आपदा के समय नुकसान को कम से कम किया जा सके।
उन्होंने कहा, “हमें यह समझना होगा कि प्रकृति से हम नहीं लड़ सकते, लेकिन उसके साथ संतुलन बनाकर जीने की राह जरूर खोज सकते हैं।”
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निष्कर्ष:
उत्तराखंड जैसे आपदा संभावित राज्य में, पहले से की गई तैयारी ही भविष्य में जान-माल के नुकसान को कम कर सकती है। मुख्यमंत्री धामी की इस पहल से यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार आपदाओं को लेकर गंभीर है और जनहित में हर संभव कदम उठा रही है। इस प्रकार की कार्यशालाएं न केवल सरकारी अमले को सजग बनाती हैं, बल्कि आम नागरिकों में भी सतर्कता और
जागरूकता लाने में सहायक सिद्ध होती हैं।