हरिद्वार में सावन का महीना आते ही पूरा वातावरण शिवभक्ति में रंग जाता है। गंगाजल के प्रति श्रद्धा और भगवान शिव के प्रति समर्पण का ऐसा दृश्य हर साल कांवड़ मेले के रूप में दिखाई देता है, लेकिन जैसे-जैसे मेला अपने चरम की ओर बढ़ता है, वैसे-वैसे इसमें डाक कांवड़ यात्रा की शुरुआत इसे एक नई गति और ऊर्जा प्रदान करती है। इस वर्ष डाक कांवड़ यात्रा की शुरुआत शुक्रवार से हो चुकी है और इसके साथ ही कनखल क्षेत्र के बैरागी कैंप में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ पड़ी है।

डाक कांवड़, पारंपरिक कांवड़ यात्रा का ही एक विशेष रूप है, जिसमें शिवभक्त गंगाजल को सामान्य यात्रियों की अपेक्षा कहीं अधिक तेज़ी से अपने गंतव्य तक पहुंचाते हैं। डाक कांवड़ियों के वाहन जैसे बाइक, कार, जीप, ट्रक आदि विशेष रूप से तैयार किए जाते हैं, और इन वाहनों को हरिद्वार के सिंहद्वार से नियंत्रित तरीके से रवाना किया जा रहा है। प्रशासन की ओर से डाक कांवड़ियों के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं, जिससे उनकी यात्रा सुरक्षित, सुगम और व्यवस्थित हो सके।

इस बार का कांवड़ मेला कई मायनों में ऐतिहासिक बनता जा रहा है। प्रशासनिक आंकड़ों के अनुसार, केवल पांच दिनों में ही लगभग 1 करोड़ 16 लाख 90 हजार शिवभक्त हरिद्वार से गंगाजल लेकर अपने-अपने गंतव्यों की ओर निकल चुके हैं। यह आंकड़ा पिछले वर्ष की तुलना में दोगुना से भी अधिक है, जब मात्र 49 लाख 40 हजार श्रद्धालु ही पांच दिनों में पहुंचे थे। इस जबरदस्त बढ़ोतरी ने न सिर्फ प्रशासन को और अधिक सतर्कता बरतने पर विवश किया है, बल्कि यह यह भी दर्शाता है कि आस्था का यह ज्वार दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है।

डाक कांवड़ यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता उसकी गति और अनुशासन है। जहां सामान्य कांवड़िए अपने कंधों पर कांवड़ रखकर धीरे-धीरे यात्रा करते हैं, वहीं डाक कांवड़िए तेजी से वाहन के माध्यम से गंगाजल को ले जाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। इस यात्रा का उद्देश्य न केवल भक्ति है, बल्कि यह एक मानसिक और शारीरिक अनुशासन का भी परिचय देती है। यात्रियों के लिए खानपान, विश्राम, प्राथमिक उपचार और ट्रैफिक नियंत्रण जैसी व्यवस्थाओं में कोई कमी न हो, इसके लिए स्थानीय प्रशासन पूरी मुस्तैदी से कार्यरत है।

बैरागी कैंप, जो आमतौर पर कुंभ, अर्द्धकुंभ और अन्य बड़े स्नान पर्वों के दौरान इस्तेमाल में लाया जाता है, इस बार पूरी तरह से डाक कांवड़ियों के लिए समर्पित कर दिया गया है। यहां पर अस्थायी शिविर, चिकित्सा सुविधा, मोबाइल टॉयलेट, पानी की व्यवस्था और सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है, जिससे श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की परेशानी न हो।

दिल्ली, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे क्षेत्रों से डाक कांवड़ियों की सबसे अधिक आमद दर्ज की गई है। इनमें से कई शिवभक्त अपने वाहन को आकर्षक सजावट, जयकारों से गूंजते स्पीकर, और भगवान शिव की झांकियों से सजाकर लेकर आते हैं। यह दृश्य न केवल धार्मिक है, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत समृद्ध और रंगीन होता है।

यात्रा के दौरान सभी कांवड़िए एक ही नियम का पालन करते हैं – पवित्रता, संयम और सेवा। डाक कांवड़ में शामिल लोग एक-दूसरे की मदद करते हैं, ट्रैफिक नियमों का पालन करते हैं और सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करते हैं। कई स्वयंसेवी संगठन, स्थानीय संस्थाएं और धार्मिक ट्रस्ट इस सेवा कार्य में दिन-रात लगे हुए हैं। भोजन वितरण, जल सेवा, प्राथमिक चिकित्सा और मार्गदर्शन जैसी सेवाएं लगातार उपलब्ध कराई जा रही हैं।

इस वर्ष की डाक कांवड़ यात्रा 22 जुलाई तक चलेगी, और अनुमान है कि हर दिन लाखों श्रद्धालु हरिद्वार पहुंचेंगे। इतनी बड़ी संख्या में भीड़ को संभालना प्रशासन के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है, लेकिन अब तक की व्यवस्थाएं यह दर्शा रही हैं कि अधिकारियों ने इस आयोजन को बेहद कुशलता से संचालित किया है।

इस भव्य यात्रा में जहां एक ओर आस्था की गूंज है, वहीं दूसरी ओर यह उत्तर भारत की सांस्कृतिक शक्ति और सामाजिक एकता का भी प्रतीक बनकर उभर रही है। युवा, बुज़ुर्ग, महिलाएं, बच्चे – सभी वर्गों के लोग इस यात्रा में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। उनके चेहरों पर भक्ति की चमक और कदमों में शिव नाम की शक्ति दिखाई देती है।

डाक कांवड़ न केवल एक तीर्थ यात्रा है, बल्कि यह अनुशासन, सामूहिक चेतना और धार्मिक एकता का जीवंत उदाहरण भी है। यह मेला हर साल हमें यह सिखाता है कि जब आस्था और व्यवस्था साथ मिलती हैं, तो किसी भी आयोजन को सफल बनाया जा सकता है।

 

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