उत्तरकाशी ज़िले के धराली क्षेत्र की आपदा में होटल व्यवसायी भूपेंद्र पंवार का सब कुछ तबाह हो गया। अप्रैल में उन्होंने जीवन भर की कमाई लगाकर सेब के बागानों के बीच एक दो-मंज़िला होम स्टे बनाया था, लेकिन महज़ पांच महीने बाद यह सपना चंद सेकंड में मलबे में बदल गया। 5 अगस्त की दोपहर, जब वे होटल के बाहर खड़े थे, तभी मुखबा गांव से भागने की आवाज़ें और सीटियों की ध्वनि सुनाई दी। वह और चार अन्य लोग तुरंत हर्षिल की ओर दौड़ पड़े, पीछे एक कार चालक भी अपनी जान बचाने में सफल हुआ। महज़ दो-तीन सेकंड की देरी उन्हें भी प्रलय में बहा ले जाती।
आपदा के बाद भूपेंद्र को तीसरे दिन गांव के लोगों से भोजन मिला और कपड़े तक दूसरों से उधार लेने पड़े। उन्होंने कहा कि यह अनुभव उन्हें अपने ही गांव में बोझ जैसा महसूस कराने वाला था। पहले टैक्सी चलाकर जमा की गई पाई-पाई से बने होम स्टे की बर्बादी ने उनकी आर्थिक नींव हिला दी।
धराली में राहत और बचाव कार्य तेज़ी से जारी हैं। शुक्रवार सुबह मातली से हर्षिल के लिए चार यूकाडा हेलिकॉप्टर रवाना हुए, जबकि चिनूक, एमआई-17 और आठ निजी हेलिकॉप्टर भी ऑपरेशन में जुटे हैं। वायु सेना के चिनूक से गुरुवार को भारी मशीनरी हर्षिल पहुंचाई गई और अब तक हर्षिल, नेलांग व मताली से 657 लोगों को सुरक्षित निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा चुका
है।