उत्तराखंड की मंडियों में इस समय पहाड़ी मटर की आवक लगभग न के बराबर रह गई है। बे-मौसम बरसात से फसल को भारी नुकसान पहुंचने के कारण उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। फलस्वरूप दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे मैदानी राज्यों से मटर मंगवाया जा रहा है, जिससे बाजार में दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
आम तौर पर पहाड़ी इलाकों में मटर की बुवाई और कटाई का सीजन अगस्त और सितंबर माह में होता है, लेकिन इस बार लगातार हुई बारिश और नमी के कारण खेतों में मटर की फसल सड़ गई। किसानों के अनुसार, मौसम की मार इतनी गहरी रही कि घर के उपभोग के लिए भी मटर नहीं बच पाई।
कुमाऊं की सबसे बड़ी हल्द्वानी नवीन मंडी में इस समय रोजाना केवल 40 से 50 क्विंटल मटर की ही आवक हो रही है, जबकि सामान्य दिनों में यह मात्रा कई गुना अधिक रहती है। मंडी में स्थानीय उत्पादन कम होने और बाहरी राज्यों से सप्लाई पर निर्भरता बढ़ने से मटर की कीमतें आसमान छू रही हैं। फुटकर बाजार में मटर ₹150 से ₹160 प्रति किलो बिक रही है। व्यापारी बताते हैं कि यह मटर दिल्ली और यूपी से आ रही है, जिसका स्वाद पहाड़ी मटर की तुलना में फीका है।
सब्जियों के मौजूदा भाव (रुपये प्रति किलो):
मटर: ₹150–160
बीन: ₹80–100
गोभी: ₹80–100
शिमला मिर्च: ₹60–70
टमाटर: ₹40–50
आलू: ₹30–40
किसानों का कहना है कि रामगढ़, मुक्तेश्वर और धारी क्षेत्रों में मटर की फसल का अधिकांश हिस्सा बरसात से नष्ट हो गया है। फसल की बर्बादी से किसानों में निराशा फैल गई है।
मुक्तेश्वर निवासी नरेश कुमार बताते हैं, “इस बार बारिश ने मटर की पूरी फसल चौपट कर दी। मंडी तक भेजने तो दूर, घर में उपयोग के लिए भी मटर नहीं बची।”
रामगढ़ के किसान दिनेश पांडे का कहना है, “फसल पूरी तरह खराब हो चुकी है। किसानों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है।”
वहीं, मंडी व्यापारी जीवन कार्की ने बताया, “इस समय पहाड़ी मटर की आवक लगभग बंद है। दिल्ली और यूपी से आने वाला मटर ही मंडी में बिक रहा है, जिसके दाम भी काफी बढ़ गए हैं।”
मौसम की मार से प्रभावित इस स्थिति ने न केवल किसानों को चिंता में डाल दिया है, बल्कि उपभोक्ताओं की जेब पर भी सीधा असर पड़ा है।

