आज के डिजिटल युग में स्मार्टफोन और सोशल मीडिया ने हमारी ज़िंदगी में एक नया आयाम जोड़ा है। खासकर युवाओं में सेल्फी लेने और उसे इंस्टाग्राम, फेसबुक, स्नैपचैट जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अपलोड करने का जुनून इस कदर बढ़ गया है कि अब यह कई बार जानलेवा भी साबित हो रहा है। ज्यादा लाइक्स, शेयर और फॉलोअर्स पाने की होड़ में लोग अपने जीवन की कीमत तक चुकाने को तैयार हो गए हैं।
खासकर उत्तराखंड जैसे पर्यटन स्थलों पर जहां प्राकृतिक सुंदरता हर किसी को आकर्षित करती है, वहां कई पर्यटक जोखिम उठाकर खतरनाक जगहों पर सेल्फी लेने के लिए पहुंच जाते हैं। बीते वर्षों में राज्य में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां सेल्फी लेने के दौरान लोगों की जान चली गई।
खतरे की पहचान और जरूरी कदम
इन्हीं घटनाओं को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड सरकार अब एक ठोस पहल करने जा रही है। राज्य में खतरनाक और संवेदनशील स्थलों को “नो सेल्फी जोन” घोषित किया जाएगा। इसका उद्देश्य न केवल दुर्घटनाओं को रोकना है, बल्कि पर्यटन स्थलों को और अधिक सुरक्षित बनाना भी है।
आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव विनोद कुमार सुमन ने इस संबंध में प्रदेश भर के प्रशासनिक अधिकारियों, जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को निर्देश जारी करते हुए पत्र लिखा है। पत्र में यह भी कहा गया है कि सोशल मीडिया पर प्रसिद्धि पाने के लिए लोग जान की बाज़ी लगा रहे हैं, जो बेहद चिंताजनक है।
किस तरह किए जाएंगे बदलाव?
राज्य सरकार के निर्देशानुसार:
खतरनाक स्थानों की पहचान कर उन्हें “नो सेल्फी जोन” घोषित किया जाएगा।
ऐसे स्थानों पर स्पष्ट संकेतक (warning boards) लगाए जाएंगे ताकि लोग सतर्क रहें।
जिला प्रशासन, स्थानीय निकाय, ग्राम पंचायत और अन्य संबंधित संस्थाएं मिलकर इन क्षेत्रों का नियोजन और विकास करेंगी।
जहां सेल्फी लेना सुरक्षित हो, उन जगहों को “सेफ सेल्फी ज़ोन” के रूप में विकसित किया जाएगा।
इन स्थानों के पास कार पार्किंग, अल्पाहार केंद्र, शौचालय, बैठने की जगह और प्राथमिक चिकित्सा जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाएंगी।
इन ज़ोन का संचालन और देखरेख का जिम्मा स्थानीय लोगों और महिला स्वयं सहायता समूहों को दिया जा सकता है, जिससे उन्हें रोज़गार का अवसर भी मिलेगा।
क्यों जरूरी है यह कदम?
आंकड़ों की बात करें तो हाल के वर्षों में पूरे देश में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां युवाओं ने ऊंचे पुलों, खतरनाक नदी घाटियों, रेल की पटरियों, या ऊंची इमारतों से गिरकर अपनी जान गंवा दी। सेल्फी लेते वक्त ध्यान बंट जाने के कारण वे या तो फिसल जाते हैं, या चलते वाहन या जलधाराओं की चपेट में आ जाते हैं।
उत्तराखंड जैसे पर्वतीय क्षेत्र में यह खतरा और भी ज्यादा है। यहां की ढलानें, ऊबड़-खाबड़ रास्ते और तेज बहाव वाली नदियां दुर्घटनाओं को निमंत्रण देती हैं। इन इलाकों में बिना सुरक्षा के सेल्फी लेना न सिर्फ व्यक्ति के लिए खतरा है, बल्कि प्रशासन के लिए भी एक चुनौती बन जाता है।
जागरूकता भी होगी जरूरी
सरकार की योजना सिर्फ चेतावनी बोर्ड या पाबंदी लगाने तक सीमित नहीं है। लोगों को जागरूक करना भी इस अभियान का अहम हिस्सा होगा। इसके लिए स्कूलों, कॉलेजों, पर्यटन स्थलों और सोशल मीडिया के माध्यम से विशेष “सुरक्षित सेल्फी अभियान” चलाया जाएगा।
पर्यटकों और खासतौर पर युवाओं को यह समझाने की कोशिश की जाएगी कि एक तस्वीर की कीमत उनकी जान नहीं हो सकती। लाइक्स और फॉलोअर्स बाद में भी मिल सकते हैं, लेकिन जान चली गई तो कुछ नहीं बचेगा।
निष्कर्ष
सेल्फी एक सुंदर याद बन सकती है, अगर वह समझदारी और सतर्कता के साथ ली जाए। उत्तराखंड सरकार की यह पहल निश्चित ही समय की ज़रूरत है। “नो सेल्फी जोन” का निर्माण और “सेफ सेल्फी स्पॉट्स” का विकास न सिर्फ पर्यटकों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि पर्यटन को और अधिक व्यवस्थित और जिम्मेदार बनाएगा।
युवाओं से अपील है कि वे सोशल मीडिया की दौड़ में अपनी सुरक्षा से समझौता न करें। एक सेल्फी जितनी जल्दी क्लिक होती है, उतनी ही जल्दी वह जानलेवा भी बन सकती है। स्मार्ट बनें, सतर्क रहें – और
सेल्फी को यादगार बनाएँ, अफसोस का कारण नहीं।