उत्तराखंड के पर्वतीय जिले टिहरी गढ़वाल में मौसम ने एक बार फिर कहर बरपाया है। बीती देर रात नई टिहरी क्षेत्र में मूसलधार बारिश के कारण भारी तबाही मची। लगातार हुई बारिश के चलते कई इलाकों में भूस्खलन हुआ और मलबा सीधे रिहायशी इलाकों में घुस गया। हालात इतने बिगड़ गए कि लोगों के घरों में चार से पांच फीट तक मलबा भर गया। अचानक आई इस आपदा ने स्थानीय लोगों की नींद उड़ा दी और जनजीवन को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया।
बस्ती में सबसे ज्यादा नुकसान
नई टिहरी की एक स्थानीय बस्ती में रहने वाले कई परिवारों को इस आपदा का सीधा प्रभाव झेलना पड़ा। खासकर राजू, रमेश, शिवचरण, सुनील, बबलू और बालेश नामक निवासियों के घर इस मलबे की चपेट में आ गए। उनके कमरों में पानी और मलबा भरने से घर में रखा सारा सामान खराब हो गया। कपड़े, राशन, बिस्तर और जरूरी घरेलू वस्तुएं पूरी तरह से नष्ट हो गईं। कई घरों की दीवारों में दरारें पड़ गईं हैं, और कुछ मकानों की नींव तक कमजोर हो गई है, जिससे उनके पूरी तरह ध्वस्त होने का खतरा मंडरा रहा है।
स्कूल और सड़कें भी प्रभावित
केवल रिहायशी इलाके ही नहीं, बल्कि शिक्षा और परिवहन व्यवस्था पर भी इस आपदा का प्रभाव देखने को मिला। निर्माणाधीन केंद्रीय विद्यालय और पास की आंचल डेयरी के समीप स्थित गदेरे (छोटे नाले) में उफान आने से भारी मलबा सड़क पर बहकर आ गया। इसका परिणाम यह हुआ कि सड़क मार्ग पूरी तरह अवरुद्ध हो गया। स्कूल बस सहित अन्य छोटे-बड़े वाहन बाधित मार्गों के कारण वैकल्पिक रास्तों से मोलधार होते हुए गंतव्य तक पहुंच पाए।
प्रशासन की कार्रवाई और राहत कार्य
घटना की सूचना मिलते ही स्थानीय प्रशासन और आपदा प्रबंधन विभाग की टीम मौके पर पहुंच गई। जेसीबी और अन्य मशीनरी की मदद से मलबा हटाने का कार्य युद्ध स्तर पर शुरू किया गया। फिलहाल प्राथमिक राहत के तौर पर प्रभावित परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया गया है। प्रशासन ने उन्हें भोजन, पानी, और कपड़े जैसी आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध कराई हैं।
स्थानीय प्रशासन ने यह भी बताया कि मलबा हटाने और रास्ता खोलने में अभी कुछ दिन लग सकते हैं, क्योंकि बारिश रुक-रुक कर जारी है और भूस्खलन की संभावना बनी हुई है। जिला प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि वे पहाड़ी क्षेत्रों में अनावश्यक आवाजाही से बचें और किसी भी आपात स्थिति में हेल्पलाइन नंबर पर संपर्क करें।
जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाएं
उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में इस तरह की घटनाएं अब आम होती जा रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून का स्वरूप बदल गया है, जिससे कहीं एक साथ भारी बारिश होती है और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। हाल के वर्षों में टिहरी, उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ जैसे जिलों में आपदाओं की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है।
यह घटना भी इसी कड़ी का हिस्सा प्रतीत होती है, जिसमें अचानक बारिश ने पूरे इलाके की जीवनशैली को बाधित कर दिया। ग्रामीणों का कहना है कि पहले भी बारिश होती थी, लेकिन इतनी विनाशकारी स्थिति नहीं बनती थी। अब हर बारिश डर लेकर आती है — कि कहीं घर न ढह जाए, रास्ते बंद न हो जाएं, या फिर जानमाल का नुकसान न हो।
भविष्य की तैयारी और चेतावनी
इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि पर्वतीय इलाकों में आपदा प्रबंधन की तैयारी को और सुदृढ़ करने की जरूरत है। स्थानीय स्तर पर जल निकासी, मजबूत निर्माण कार्य और चेतावनी तंत्र को दुरुस्त करना अनिवार्य हो गया है। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को आपदा से निपटने के उपाय सिखाए जाने चाहिए।
सरकार और प्रशासन को भी चाहिए कि वे संवेदनशील इलाकों की पहचान करें और वहां पर विकास कार्यों को नियंत्रित व सुनियोजित ढंग से आगे बढ़ाएं, जिससे प्राकृतिक संतुलन बना
रहे और मानवीय क्षति कम हो।