Maa kali story : मां काली ( Maa kali ) माता दुर्गा के अलग-अलग अवतारों में से एक है. मां काली ने कई असुरों का वध किया। मां काली को महिला शक्ति का उदाहरण भी माना जाता है. मां काली ( Maa kali ) हमेशा से ही उनके भयानक रूप को लेकर लोगों के आकर्षण का केंद्र रही है. जो भी उनका चित्र देखता है, उनके बारे में जरूर जानना चाहता है. इसीलिए आज हम आपको बताएंगे मां काली के उत्पत्ति की कहानी।
क्या है मां काली के जन्म की कहानी (Maa kali story)
माता काली ( Maa kali ) की उत्पत्ति को लेकर शिवपुराण के उमा संहिता में देखने को मिलता है. शिव पुराण में सूत जी और उनके शिष्यों के बीच मां काली ( Maa kali ) के उत्पत्ति की कहानी का जिक्र होता है. जब सूतजी से उनके शिष्य माता दुर्गा के अलग-अलग अवतारों की कहानी सुन रहे होते हैं, तभी सूत जी माता काली ( Maa kali ) की उत्पत्ति की कहानी सुनाना शुरू करते हैं।
वह बताते हैं पूर्व काल में महर्षि मेधा हुआ करते थे. एक बार राजा सुरथ ने भी उनसे यही प्रश्न किया था, जो कहानी राजा सुरथ को बताई गई थी वही यहां भी बताई गई है. ऋषि कहते हैं पूर्व काल में विरथ नाम के एक राजा हुआ करते थे,उनके एक पुत्र थे जिनका नाम सुरथ था.सूरथ एक पराक्रमी राजा थे. पराक्रमी होने के साथ-साथ वे विद्वान, देवी भक्त, सत्य का साथ देने वाले और दान देने में भी सबसे आगे रहा करते थे। राजा सुरथ को इंद्र के समान तेजस्वी माना जाता था. जब वह पृथ्वी पर शासन कर रहे थे तो उनके कई दुश्मन भी हुए. जो राजा सुरथ के विपक्षी हुआ करते थे उनकी संख्या 9 थी वह राजा भी बहुत पराक्रमी थे वह राजा भी राजा सुरथ से उनका राज का छीन ना चाहते थे, इसलिए उन्होंने राजा सुरथ पर हमला कर दिया। दोनों सेनाओं के बीच युद्ध हुआ और अंत में राजा सुरथ को हार का सामना करना पड़ा। हार के बाद राजा सुरथ के छात्रों ने उनसे उनका सारा राजकाज छीन लिया।
इसके बाद राजा सुरथ के शत्रुओं के द्वारा उन्हें उनकी राजधानी कोलपुरी से निकाल दिया गया. इसके बाद राजा सूरथ अपनी दूसरी पुरी में जाते हैं. वहां वह अपने मंत्रियों के साथ मिलकर राज्य संभालते हैं, लेकिन उनके शत्रु यहां भी उन पर हमला कर देते हैं और वह यहां भी युद्ध हार जाते हैं. इस बार राजा सुरथ के सभी मंत्री भी उनका साथ छोड़ देते हैं और उनके विपक्षियों से मिल जाते हैं. राजा युद्ध हारते हैं तो उन सभी मंत्रियों के द्वारा बचा हुआ सारा धन अपने कब्जे में ले लिया जाता है. इसके बाद राजा बहुत परेशान होते हैं और वह शिकार का बहाना बनाते हुए नगर छोड़कर बाहर वन में चले जाते हैं। जब राजा वन में घूम रहे होते हैं तो उन्हें एक श्रेष्ठ मुनि का आश्रम दिखाई देता है आश्रम का दृश्य बहुत ही मन मोहित करने वाला था। आश्रम के चारों ओर फूलों के बगीचे थे जो बेहद ही खूबसूरत लग रहे थे. आश्रम के चारों ओर वेद मंत्रों की ध्वनि गूंज रही थी, जो शांति प्रदान करने वाली थी. ऋषि यों के शिक्षकों के द्वारा आश्रम को बेहद सुरक्षित बनाया गया था। जब राजा मुनीश्वर मेघा के आश्रम में प्रवेश करते हैं तो मुनीश्वर मेघा उनका आदर सत्कार करते हैं उन्हें आसन पर बिठाकर अन्न और जल का पान कराते हैं.
अब कुछ दिन बीत जाते हैं और राजा सुरथ बहुत चिंतित होते हैं. वह मोह में वशीभूत होकर अलग-अलग चीजों के बारे में सोच रहे होते हैं, तभी वहां एक वैश्य आता है जो बेहद दुखी होता है. राजा सुरथ उससे पूछते हैं भाई तुम कौन हो और यहां किस कारण से आए हुए हो और क्यों इतने दुखी दिखाई दे रहे हो. राजा के यह मधुर वचन सुनकर वैश्य रोने लगता है और राजा को बताता है कि वह एक धनी के घर में पैदा हुआ वैश्य है और उसका नाम समाधि है. वह बताता है कि धन के लोभ से उसके पुत्रों और पत्नी के द्वारा उसे घर से निकाल दिया गया है, जिस वजह से वह दुखी होकर वन में चला आया. लेकिन वन में आकर उसे हरदम अपने परिवार की चिंता सताती रहती है. उसे अपनी पत्नी पुत्र पुत्रों भाई भतीजे तथा अन्य परिचितों के कोई समाचार नहीं मिल पाते हैं।
राजा वैश्य की बात को सुनकर अचंभित होते हैं. वे उनसे कहते हैं कि जिन धन के लोभियों और दुराचारियों के द्वारा तुम्हें तुम्हारे ही घर से निकाल दिया गया, तुम क्यों मूर्ख की भांति उनके लिए विलाप कर रहे हो. वैश्य राजा से कहता है कि राजन आपकी बात बिल्कुल ठीक है लेकिन स्नेहपास से भरा हुआ मेरा मन मेरे परिजनों के प्रति मोह को प्राप्त हो रहा है.अब क्योंकि दोनों ही मोह में व्याकुल होते हैं इसलिए दोनों मुनि मेधा के पास पहुंच जाते हैं. राजा और वैश्य मुनि विधा के समक्ष हाथ जोड़कर खड़े होते हैं और उन्हें बताते हैं की भगवन मुझे राज्य लक्ष्मी ने छोड़ दिया। वही इनको इनके परिजनों ने ही धन के लोभ में घर से निकाल दिया, लेकिन इसके बाद भी हम दोनों उनकी ममता से दूर नहीं हो पा रहे. इसका क्या कारण है. हम दोनों का मन मोह से बहुत ही व्याकुल हो रहा हे मुनिवर आप हमारे मोहपासको काटने का काम करें।
महर्षि मेधा राजा और वैश्य दोनों की बात सुनते हैं और उसके बाद वह इसका कारण बताते हैं. वह कहते हैं की सनातन शक्ति स्वरूपा जगदंबा महामाया सबके मन को खींचकर मोह में डालने का काम करती हैं. मनुष्य तो छोड़िए स्वयं ब्रह्मा आदि समस्त देवता भी उनकी माया से मोहित हो जाते हैं और परम तत्व को जान ही नहीं पाते हैं. जगदंबा महामाया ही संपूर्ण विश्व की सृष्टि पालन और संहार करती हैं. ऋषि बताते हैं कि जिनके ऊपर वरदायिनी जगदंबा प्रसन्न होती हैं वही इस मोह के घेरे को पार कर पाता है।
अब ऋषि मेधा की बात सुनकर राजा प्रश्न करते हैं, की हे मुनिवर जो सबको मोहित कर देती हैं वह देवी महामाया ( Maa kali ) हैं कौन और कैसे उनका जन्म हुआ। ऋषि बताते हैं बहुत पहले की बात है यह सारा विश्व जलमग्न हुआ था भगवान विष्णु शेष की शैया पर योग निद्रा का आश्रय लेकर सो रहे थे और तभी उनके कानों से मल निकला और उस मल से ही दो असुरों का जन्म हुआ जिनका नाम मधु और कैटभ पड़ा दोनों ही बेहद ही विशालकाय शरीर वाले असुर थे दोनों ही बेहद दुराचारी और पराक्रमी थे बड़े-बड़े जबड़े देख कर ही ऐसा लगता था कि दोनों अभी पूरे विश्व को चबाकर खा जाएंगे अब भगवान विष्णु ब्रह्मदेव की नाभि से निकले हुए कमल पर विराजमान होते हैं तो जब राक्षसों की नजर ब्रह्मदेव पर पड़ती है तो वे उन पर भी आक्रमण करना चाहते हैं और समस्या यह थी कि भगवान विष्णु उस समय निद्रा में थे इसलिए ब्रह्मा जी माता परमेश्वरी का स्मरण करते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि वह इन दोनों जुड़ जाए असुरों को मोहित करें और भगवान विष्णु को निद्रा से बाहर लाएं।
ब्रह्मदेव की इस प्रार्थना को सुनकर अनेक विधाओं की देवी मानी जाने वाली जगत जननी महाविद्या फाल्गुन मार्क्स के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को तीनों लोगों को मोहित करने वाले शक्ति के रूप में अवतरित होती हैं और उन्हें ही महाकाली ( Maa kali ) के नाम से जाना जाता है अचानक से आकाशवाणी होती है की कमलासन अब डरो मत मैं युद्ध में मौजूद गेटअप को मारूंगी और उन्हें मार कर तुम्हारे कंटक का नाश करूंगी इतना कहकर देवी महामाया भगवान विष्णु के नेत्र और मुख आदि से बाहर निकलती हैं और भगवान ब्रह्मा के पथ पर खड़ी हो जाती हैं जब वह अपने समक्ष दोनों देते मधु और कैटभ को देखती हैं तो उसी समय भगवान विष्णु निद्रा से जाग उठते हैं।
निद्रा से जागने के बाद भगवान विष्णु का मधु के टॉप से 5000 वर्षों तक बहू युद्ध होता है लेकिन तभी महामाया के प्रभाव से मोहित हुए उन दानों के द्वारा भगवान विष्णु से कहा गया कि तुम जो वर चाहो वह हम से मांग सकते हो दैत्यों के मुंह से इस बात को सुनकर भगवान विष्णु उन असुरों से कहते हैं कि अगर तुम मुझसे सच में पसंद हो तो तुम मेरे हाथों मारे जाओ मैं इसके सिवा तुमसे कोई दूसरा वर नहीं मांगूंगा असुर जानते हैं कि इस वक्त पृथ्वी जल में डूबी हुई है इसलिए असुर जब यह बात सुनते हैं तो वह भगवान विष्णु से कहते हैं कि ठीक है तुम हमें मार सकते हो लेकिन हमें ऐसे ही स्थान पर मारो जो जल से भी भीगा ना हो यह सुनकर भगवान विष्णु उन दोनों राक्षसों को अपनी जांघ पर उठाते हैं और अपने सुदर्शन चक्र से उनके मस्तक को काटकर अलग कर देते हैं और इसी प्रसंग को माता काली ( Maa kali ) के उत्पत्ति के प्रसंग के रूप में देखा जाता है।
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तो ये थी मां काली ( Maa kali ) के जन्म की कहानी।